मामला लखीमपुर खीरी ज़िले के मितौली थाने की है, जहां बीते शुक्रवार एक पांच वर्षीय बच्ची की हत्या के केस में पूछताछ के लिए उसके पड़ोस में रहने वाले 50 वर्षीय आसाराम को बुलाया गया था. इसी शाम आसाराम की मौत हो गई. उनके परिजनों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के आरोप के बाद दो पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.
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गुजरात राज्य विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि यह बड़ी सार्वजनिक चिंता का विषय है कि गुजरात में हिरासत में मौत की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं. यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह बड़े पैमाने पर उठाया जा रहा है, क्योंकि कई पुलिसकर्मी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में पेश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के बाद पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में 76, मध्य प्रदेश में 49, उत्तर प्रदेश में 41, तमिलनाडु में 40, बिहार में 38, राजस्थान में 32, पंजाब में 31, पश्चिम बंगाल में 30 और दिल्ली में 29 लोगों की मौत हिरासत में हुई है.
असम विधानसभा में पूछे गए एआईयूडीएफ विधायक अशरफुल हुसैन के एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री शर्मा ने यह जानकारी दी है. बीते 24 फरवरी को राज्य के उदलगुरी ज़िले में एक पुलिस एनकाउंटर में डकैत होने के संदेह में एक व्यक्ति की मौत की सीआईडी जांच ने पुष्टि की कि यह ‘ग़लत पहचान’ का मामला था. मृतक एक किसान थे.
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के कुनन गांव के रहने वाले 35 वर्षीय अब्दुल राशिद डार को पिछले साल 15 दिसंबर की उनके घर से 41 राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों ने पुलिस को सूचित किए हिरासत में लिया था. राशिद के परिवार ने हिरासत में उनकी हत्या का आरोप लगाया है, जबकि सेना ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया है.
हैदराबाद पुलिस ने चेन स्नेचिंग के एक मामले में मोहम्मद क़ादिर को पकड़ा था. परिवार का दावा है कि इस घटना से क़ादिर का कोई संबंध नहीं था. मौत से पहले अस्पताल से क़ादिर ने एक वीडियो जारी कर पुलिस हिरासत में प्रताड़ना के आरोप लगाए थे.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच गुजरात में पुलिस हिरासत में 80 लोगों की मौत हुई है. इसके बाद महाराष्ट्र में 76, उत्तर प्रदेश में 41, तमिलनाडु में 40 और बिहार में 38 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में पिछले तीन वर्षों में लगभग 60 फीसदी और पिछले दो वर्षों में 75 फीसदी की वृद्धि देखी गई है. महाराष्ट्र में ऐसे मामलों में दस गुना की वृद्धि हुई है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट में सामने आया है कि वर्ष 2021 में गुजरात में कुल 23 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई, जिनमें से 22 मौतें पुलिस हिरासत या लॉक-अप में तब हुईं जब आरोपी रिमांड पर नहीं थे. इसी अवधि में पूरे देश में इस तरह की 88 मौतें हुईं.
झारखंड के गृह विभाग, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है. इसके मुताबिक़, साल 2018-19 में 167, 2019-20 में 45 और 2020-21 में हिरासत में 54 मौतें हुई हैं.
परिजनों का आरोप है कि 24 वर्षीय जुनैद को ग़लत तरीके से बीते 31 मई को फ़रीदाबाद की साइबर पुलिस ने हिरासत में लिया गया था और इस दौरान उन्हें बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया, जिससे उनकी मौत हो गई. हालांकि पुलिस ने आरोप से इनकार करते हुए कहा है कि जुनैद की मौत किडनी संबंधी दिक्कत की वजह से हुई.
कर्नाटक के कोगडु ज़िले के विराजपेट क़स्बे का मामला. आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने बीते आठ जून को लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने को लेकर मानसिक रूप से विक्षिप्त रॉय डी’सूजा को हिरासत में लिया था. इस दौरान उनके साथ बुरी तरह से मारपीट की गई. इलाज के दौरान 12 जून को उनकी मौत हो गई. मृतक के भाई की शिकायत पर पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले का मामला. एक नाबालिग लड़की के अपहरण के आरोपी दलित युवक की मां की शिकायत के आधार पर तीनों पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हत्या का मामला दर्ज करने के साथ उन्हें निलंबित कर दिया गया है. शिकायतकर्ता का कहना है कि तीनों पुलिसकर्मियों ने उनके बेटे को मारने की मंशा से उसका गला घोंटा और डंडे से बेरहमी से उसकी पिटाई की, जिससे उसकी मौत हो गई.
गुजरात सरकार ने प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस विधायक निरंजन पटेल द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में विधानसभा को बताया कि 2019 में पुलिस हिरासत में 70 मौतें हुईं, जबकि 2020 में 87 लोगों की जान गई थी.