सुप्रीम कोर्ट का संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन, जिसके तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए थे- की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि लगभग 44 वर्षों के बाद इस संवैधानिक संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध कारण या औचित्य नहीं है.

आपातकाल के सबक: सत्ता को चुनौती देता जन आंदोलन कहां है?

वीडियो: इतिहासकार और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अध्यापक ज्ञान प्रकाश की किताब 'इमरजेंसी क्रॉनिकल्स' का हिंदी संस्करण 'आपातकाल आख्यान' नाम से प्रकाशित हुआ है. इस किताब के मद्देनज़र भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय और बहुसंख्यक शासन पर नियंत्रण और संतुलन को लेकर उनसे द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.

बड़ी संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित करने वाले भाजपा के ओम बिड़ला फिर लोकसभा अध्यक्ष बने

लोकसभा अध्यक्ष बनते ही ओम बिड़ला ने 1975 के आपातकाल पर एक बयान पढ़ा और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया. इस पर विपक्ष की आपत्ति के बाद सदन में हंगामा हुआ और कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी गई.

तानाशाही जनतंत्र के भीतर, उसी के सहारे पैदा होती है

जैसे सभ्यता का दूसरा पहलू बर्बरता का है, वैसे ही जनतंत्र का दूसरा पहलू तानाशाही है. जनतंत्र की तानाशाही इसलिए भी ख़तरनाक है कि उसे खुद जनता लाती है. वह लोकप्रिय मत के सहारे सत्ता हासिल करती है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 32वीं क़िस्त.

संपूर्ण क्रांति और भारतीय जनतंत्र पर उसके दूरगामी प्रभाव

आम तौर पर आपातकाल को भारतीय जनतंत्र के इतिहास में बड़ा व्यवधान माना जाता है. पर उसके पहले हुए उस आंदोलन के बारे में इस दृष्टि से चर्चा नहीं होती है कि वह जनतांत्रिक आंदोलन था या ख़ुद जनतंत्र को जनतांत्रिक तरीक़े से व्यर्थ कर देने का उपक्रम. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्ताईसवीं क़िस्त.

अदालत ने पूछा- क्या तारीख़ बरक़रार रखते हुए संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया जा​ सकता है?

पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की है. 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल किए गए थे.

इंदिरा गांधी को हिंदुत्व से जोड़ने की कोशिशों का अयोध्या से क्या नाता रहा है?

अपने स्वर्णकाल में भी ‘असुरक्षा’ की शिकार हिंदुत्ववादी जमातों ने डॉ. मनमोहन सिंह को छोड़कर हर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हिंदुत्ववादी क़रार देने या खींच-खांचकर हिंदुत्व के पाले में लाने के प्रयास किया है. इंदिरा गांधी भी इससे अछूती नहीं रही हैं.

मोदी सरकार के सरकारी अधिकारियों को ‘रथ प्रभारी’ बनाने के क़दम की आलोचना

17 अक्टूबर को केंद्र सरकार द्वारा सभी मंत्रालयों को जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि वे देश के सभी ज़िलों से ऐसे सरकारी अधिकारियों के नाम दें, जिन्हें मोदी सरकार की 'पिछले नौ वर्षों की उपलब्धियों को दिखाने/जश्न मनाने' के एक अभियान के लिए 'जिला रथ प्रभारी (विशेष अधिकारी)' के तौर पर तैनात किया जाए.

पत्रकारों के यहां छापों पर अरुंधति रॉय ने कहा- आपातकाल से भी ज़्यादा ख़तरनाक हालात

लेखक-कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों पर छापेमारी को लेकर विरोध जताते हुए कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी 2024 में वापस सरकार में आती है तो देश लोकतंत्र नहीं रहेगा.

‘आज़ादी के सात दशकों में उन सिद्धांतों पर काम नहीं किया गया जिनके बल पर देश आज़ाद हुआ था’

साक्षात्कार: इतिहासकार, शिक्षाविद और नारीवादी उमा चक्रवर्ती देश की आज़ादी के समय छह साल की थीं. शिक्षा, समाज सेवा, फिल्म निर्माण जैसे क्षेत्रों में व्यापक काम कर चुकीं उमा का कहना है कि आज धर्म के आधार पर हो रही लिंचिंग, दंगे आदि स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े वादों के साथ धोखा हैं.

इंदिरा गांधी नरेंद्र मोदी जितनी ‘भाग्यशाली’ होतीं, तो उन्हें इमरजेंसी की ज़रूरत नहीं पड़ती!

इंदिरा गांधी यदि नरेंद्र मोदी की तरह बिना आपातकाल वैसे हालात पैदाकर लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण को अंजाम दे सकतीं, तो भला आपातकाल का ऐलान क्यों करातीं?

मधु लिमये याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र बिना बुद्धि के सशक्त नहीं हो सकता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अमृतकाल में बुद्धि अभद्र शब्द बन गया है. बुद्धिजीवियों का लगभग रोज़ अपमान किया जाता है. अपनी बुद्धिहीनता को नेता आभूषण की तरह पहनकर रौब जमाते हैं. राजनीति में बुद्धि नहीं तिकड़म और हिकमत से सब काम चल रहा है. मधु लिमये इसके बरक़स, एक बुद्धिशील राजनीतिज्ञ थे. 

‘कॉफी हाउस के टूटने की ख़बर जानकर ऐसे लगा कि मानो हमारा घर गिरा दिया गया’

पुस्तक अंश: कनॉट प्लेस का मशहूर कॉफी हाउस 27 दिसंबर 1957 को पुराने कॉफी हाउस के हड़ताल पर बैठे कामगारों को राममनोहर लोहिया द्वारा प्रेरित किए जाने के बाद टेंट में शुरू हुआ था. तब यह दिल्ली का सबसे बड़ा राजनीतिक वैचारिक मुठभेड़ों का अड्डा हुआ करता था.

… मुल्क को आगे बढ़ना है और उसके लिए ज़रूरी है कि जो जहां है, वहीं ठप कर दिया जाए!

धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.

प्रख्यात न्यायविद् और पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण का 97 साल की आयु में निधन

प्रख्यात न्यायविद् और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री शांति भूषण ने वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कराने वाले ऐतिहासिक मामले में शामिल थे. वे सार्वजनिक महत्व के कई मामलों में पेश हुए, जिसमें रफाल लड़ाकू विमान सौदा भी शामिल है.

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