मोहम्मद हसन के नाटक ‘ज़ह्हाक’ में सत्ता के उस स्वरूप का खुला विरोध है जिसमें सेना, कलाकार, लेखक, पत्रकार, अदालतें और तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं सरकार की हिमायती हो जाया करती हैं. नाटक का सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुल्क की मौजूदा सत्ता में ‘ज़ह्हाक’ कौन है? क्या हमें आज भी जवाब मालूम है?
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शनिवार को घोषणा की थी कि वे 13 जुलाई को अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे, लेकिन उससे पहले ही वे आधी रात को सेना के विमान से अपने परिजनों संग मालदीव चले गए. बताया जा रहा है कि वे नई सरकार द्वारा गिरफ्तार किए जाने की आशंका के चलते इस्तीफ़ा देने से पहले विदेश जाना चाहते थे. इस बीच, भारत पर आरोप लगे हैं कि उसने राजपक्षे की देश छोड़ने में मदद की. श्रीलंका
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने संसद में यह भी कहा कि भारत द्वारा उन्हें दी जाने वाली वित्तीय सहायता 'दान’ नहीं बल्कि क़र्ज़ है और इन ऋणों को चुकाने की योजना होनी चाहिए.
श्रीलंकाई पुलिस ने नौ मई को सरकार विरोधी और सरकार समर्थक प्रदर्शनकारियों के बीच हुई हिंसक झड़पों के संबंध में अब तक कम से कम 1,500 लोगों को गिरफ़्तार किया है. इन झड़पों में कम से कम 10 लोगों की मौत हुई है. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए सोमवार को आठ और मंत्रियों को इसमें शामिल किया है.
आर्थिक संकट के बुरे दौर से गुज़र रहे श्रीलंका में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे को देश के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है. कोलंबो में भारत के उच्चायोग कहा कि वह नई सरकार के साथ काम करने के लिए आशान्वित हैं. इस बीच एक अदालत ने बीते नौ मई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले महिंदा राजपक्षे, उनके सांसद बेटे नमल राजपक्षे और 15 अन्य लोगों के देश छोड़ने पर
श्रीलंका में चल रहे आर्थिक और राजनीतिक संकट के भारत के लिए कई व्यावसायिक प्रभाव हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत इस अवसर का उपयोग उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को संभालने के लिए कर सकता है, जो श्रीलंका की चीन के साथ नज़दीकी के चलते प्रभावित हुए हैं.
बीते नौ अप्रैल से पूरे श्रीलंका में हज़ारों प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की इस्तीफ़े की मांग को लेकर सड़कों पर हैं. ऐसे इसलिए क्योंकि सरकार के पास आयात के लिए धनराशि ख़त्म हो गई है और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं. प्रधानमंत्री के समर्थकों द्वारा राष्ट्रपति कार्यालय के बाहर प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के बाद राजधानी कोलंबो में सेना के जवानों को तैनात किया गया था. हमले में कम से कम 138 लोग घायल हो गए.
आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में जनता द्वारा पिछले कई सप्ताह से राष्ट्रपति और सरकार के इस्तीफ़े की मांग के बीच एक बार फ़िर आपातकाल लागू करने का फैसला लिया गया है. हालांकि, इस्तीफे के बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है.
मंगलवार की रात जारी अधिसूचना में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने कहा कि उन्होंने आपातकालीन नियम अध्यादेश को वापस ले लिया है, जिसके तहत सुरक्षा बलों को देश में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए थे. हालांकि, जनता के विरोध और सरकार के अल्पमत में होने के बावजूद राष्ट्रपति राजपक्षे ने इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया है.
आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के सभी कैबिनेट मंत्रियों ने रविवार देर रात तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया. देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने में मदद करने के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे ने संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी राजनीतिक दलों को मंत्री पद स्वीकार करने के लिए कहा है, लेकिन विपक्ष ने इस पूरी कवायद को नाटक करार दिया है.
श्रीलंकाई पुलिस ने कर्फ्यू का उल्लंघन करने पर देश के पश्चिमी प्रांत में 664 लोगों को गिरफ़्तार किया है. वहीं, सरकार ने सोशल मीडिया तक जनता की पहुंच को समाप्त करने के लिए इंटरनेट सेवा पर रोक लगाने का आदेश दिया है और लोगों के एक जगह इकट्ठा होने पर भी रोक लगा दी है. दूसरी ओर, विपक्षी सांसदों ने भी आपातकाल लगाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और विरोध मार्च निकाला.
श्रीलंका वर्तमान में ऐतिहासिक आर्थिक संकट से जूझ रहा है और ईंधन, रसोई गैस तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए लोगों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं. इसके ख़िलाफ़ देश में प्रदर्शन जारी हैं. आपातकाल की घोषणा उस समय की गई है, जब अदालत ने राष्ट्रपति आवास के सामने प्रदर्शन के लिए गिरफ़्तार प्रदर्शनकारियों के एक समूह को ज़मानत दे दी है.
जनतंत्र को अपने ठेंगे पर रखे घूम रहे लठैतों के इस दौर में 46 साल पहले के आपातकाल के 633 दिनों पर खूब हायतौबा मचाइए, मगर पिछले 2,555 दिनों से भारतमाता की छाती पर चलाई जा रही अघोषित आपातकाल की चक्की के पाटों को नज़रअंदाज़ मत करिए.
काश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातें बनाने के बजाय समझते कि आंदोलन तो होते ही सत्ताओं की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए हैं और उन्हें ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि ख़ुद पर उनका अंकुश हमेशा महसूस किया जाता रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि कुछ समय से देश में एक नई जमात पैदा हुई है, आंदोलनजीवी. वकीलों, छात्रों, मज़दूरों के आंदोलन में नज़र आएंगे, कभी पर्दे के पीछे, कभी आगे. ये पूरी टोली है जो आंदोलन के बिना जी नहीं सकते और आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं.