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जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक आरआर स्वैन ने कहा है कि हम उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे जो लोगों को भड़काने के लिए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पीछे छिपते हैं. उनकी यह टिप्पणी जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा पत्रकार फहद शाह को ज़मानत दिए जाने के अगले दिन आई है.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों संबंधी सुनवाई में कहा कि सूबे के प्रशासन ने कार्यवाही को मंज़ूरी देते समय अपना दिमाग़ नहीं लगाया और ऐसा कुछ पेश नहीं किया जो साबित करता हो कि गुल राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ काम कर रहे थे.
कश्मीरी पत्रकार और समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फहद शाह को पहली बार पिछले साल 4 फरवरी को सोशल मीडिया पर ‘आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन’ करने और दक्षिण कश्मीर के पुलवामा ज़िले में एक मुठभेड़ की कथित ‘ग़लत रिपोर्टिंग’ करके ‘देश के ख़िलाफ़ असंतोष’ पैदा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि श्रीनगर में भारतीय सेना की चिनार कॉर्प्स से जुड़े फ़र्ज़ी सोशल मीडिया एकाउंट्स के ज़रिये उनका नैरेटिव फैलाया गया और कश्मीरी पत्रकारों को निशाना बनाया गया. भारत में फेसबुक के अधिकारियों को मेटा नियमों के इस उल्लंघन की जानकारी होने के बावजूद सरकारी कार्रवाई के डर से उन्होंने कोई क़दम नहीं उठाया.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, भारतीय विमेन प्रेस कोर, प्रेस एसोसिएशन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन ने कहा कि 'द कश्मीर वाला' के ख़िलाफ़ सरकार की कार्रवाई 'प्रेस की आज़ादी की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है.'
वीडियो: श्रीनगर से संचालित होने वाली 'द कश्मीरवाला' न्यूज़ वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया है और इसके ट्विटर और फेसबुक पेज भी ब्लॉक हो चुके हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से सूबे में मीडिया के क्या हालात हैं, बता रहे हैं अजय कुमार.
स्वतंत्र मीडिया संस्थान ‘द कश्मीर वाला’ के संस्थापक-संपादक फहद शाह आतंकवाद के आरोप में 18 महीने से जम्मू जेल में बंद हैं, जबकि इसके ट्रेनी पत्रकार सज्जाद गुल भी जनवरी 2022 से जन सुरक्षा अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश में जेल में बंद हैं. संस्थान ने एक बयान में कहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के अलावा उन्हें श्रीनगर में अपने मकान मालिक से दफ़्तर ख़ाली करने का नोटिस भी मिला है.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पिछले साल फरवरी में मुज़म्मिल मंज़ूर वार की हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया था, लेकिन 467 दिन बाद भी वह जेल में हैं. उन्हें विवादास्पद जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था, जो लोगों को 2 साल तक बिना मुक़दमे के हिरासत में रखने की अनुमति देता है.
जम्मू कश्मीर की समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फ़हद शाह के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा क़ानून के तहत कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने इसके तहत उनके हिरासत के आधार को ‘केवल संदेह के आधार पर’ और ‘मामूली दावा’ क़रार दिया. फरवरी 2022 में फ़हद को आतंकवाद का महिमामंडन करने, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने और जनता को भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फ़हद शाह पिछले एक साल से जेल में हैं. उन पर गै़रक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है. उन्हें आतंकवाद का महिमामंडन करने, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने और आम जनता को क़ानून व्यवस्था के ख़िलाफ़ भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
दिल्ली पत्रकार संघ ने कई गिरफ़्तार और जेल में बंद पत्रकारों को लेकर चिंता व्यक्त की है. ह्यूमन राइट्स वॉच की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए संगठन ने कहा कि रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने अधिकार कार्यकर्ताओं और मीडिया पर अपनी कार्रवाई तेज़ और व्यापक कर दी है.
जम्मू कश्मीर पुलिस की राज्य जांच एजेंसी ने 'द कश्मीर वाला' के कार्यवाहक संपादक यशराज शर्मा को समन जारी कर 2011 में पत्रिका में छपे एक विवादित लेख के संबंध में पूछताछ के लिए बुलाया था. लेख के प्रकाशन के समय यशराज की उम्र 12 वर्ष थी.
भारत का लोकतंत्र दिनदहाड़े दम तोड़ रहा है. प्रेस को घेरा जा रहा है, लेकिन उसे अडिग होकर खड़े होने के तरीके तलाशने होंगे.
कश्मीर विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र अब्दुल आला फ़ाज़िली ने क़रीब 11 वर्ष पहले 6 नवंबर 2021 को ऑनलाइन पत्रिका ‘द कश्मीर वाला’ में एक लेख लिखा था. पुलिस का कहना है कि वह लेख अत्यधिक भड़काऊ था और जम्मू कश्मीर में अशांति खड़ा करने के इरादे से लिखा गया था. इसका मक़सद आतंकवाद का महिमामंडन करके युवाओं को हिंसा का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित करना था.