कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ब्रिटिश चित्रकार डेविड हाकनी का कथन है कि कलाकार काफ़ी पकी उमर तक जी सकते हैं क्योंकि वे अपने शरीर के बारे में ज़्यादा नहीं सोचते. हाथ, हृदय और आंख कंप्यूटर से अधिक जटिल हैं.
पुस्तक अंश: गुलज़ार के गीतों और फिल्मों ने कई पीढ़ियों को संस्कार दिया है, हिंदी सिनेमा के भीतर शास्त्रीयता की संभावना को जीवित रखा है. यतीन्द्र मिश्र ने अपनी किताब में इस बेजोड़ कलाकार की आत्मा को बड़ी बारीकी से अंकित किया है.
वीडियो: पिछले दस सालों में देश की राजनीति के साथ हिंदी सिनेमा में भी अहम बदलाव देखने को मिले हैं. जहां एक ख़ास तरह के सिनेमा को आसानी से फंडिंग आदि मिल रही है, वहीं उद्योग के कई प्रतिभाशाली लोगों, विशेषकर वो जो भाजपा की विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते, के सामने मुश्किलें आ रही हैं. इस बारे में अभिनेता सुशांत सिंह से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी में ऐसा आलोचनात्मक माहौल बन गया है कि भाषा को महत्व देना या कि उसकी केंद्रीय भूमिका की पहचान करना, उस पहचान को ब्योरों में जाकर सहेजना-समेटना अनावश्यक उद्यम मान लिया गया है.
पुस्तक समीक्षा: 1989 में इंग्लैंड की पत्रकार जोन स्मिथ द्वारा लिखी गई 'मिसोजिनीज़' जीवन के हरेक क्षेत्र- अदालत से लेकर सिनेमा तक व्याप्त स्त्रीद्वेष की पड़ताल करती है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें, तो स्त्रीद्वेष की व्याप्ति असीमित दिखने लगती है.
दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि कट्टरता और दुष्प्रचार फैलाने के लिए बनाई गई फिल्मों से लड़ने का एकमात्र तरीका कलाकारों का बोलना है. हालांकि उन्होंने अफ़सोस जताया कि बहुत से कलाकार ऐसा करने को तैयार नहीं हैं.
मुंबई के सबसे बड़े थिएटरों में से एक इरोज़ को मल्टीप्लेक्स और रिटेल आउटलेट में तब्दील किए जाने की सूचना है और इस बात से इसके चाहने वाले ख़ुश नहीं हैं.
उत्तराखंड के एक छोटे-से क़स्बे नानकमत्ता के एक स्कूल में छात्रों को परंपरागत शिक्षा के साथ-साथ सिनेमा को एक पढ़ाई के ही एक नए माध्यम के रूप में जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.
वीडियो: आंखों देखी, दम लगा के हईशा और लाल सिंह चड्ढा जैसी फ़िल्मों के साथ-साथ पंचायत, मिर्ज़ापुर और ब्रीद: इनटू द शैडोज जैसी वेब-सीरीज़ में अभिनय कर चुके अभिनेता श्रीकांत वर्मा से उनके जीवन, रंगमंच, सिनेमा और ओटीटी पर उनके अनुभव और यात्रा के बारे में बातचीत.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि अगर किसी को किसी फिल्म से कोई दिक्कत है तो उसे संबंधित सरकारी विभाग से बात करनी चाहिए जो मुद्दे को फिल्म निर्माताओं के साथ उठा सकता है. कभी-कभी माहौल बिगाड़ने के लिए कुछ लोग पूरी तरह जानने से पहले ही उस पर टिप्पणी कर देते हैं.
पाकिस्तानी फिल्म ‘द लेजेंड ऑफ मौला जट्ट’ 30 दिसंबर को भारत में रिलीज़ होनी थी, लेकिन सूत्रों के अनुसार इसे विभिन्न वर्गों के विरोध के डर से स्थगित कर दिया गया. 13 अक्टूबर को रिलीज़ हुई फ़वाद ख़ान और माहिरा ख़ान अभिनीत बिलाल लशारी की यह फिल्म पाकिस्तान में काफ़ी सफल रही है.
हिंदी फिल्में सफलता के लिए आबादी के हर हिस्से और हर धर्म के दर्शकों पर निर्भर करती हैं. पर इस बार यहां हमारे सामने एक ऐसी फिल्म आई, जिसे सिर्फ (कट्टर) हिंदू दर्शकों की ही दरकार है.
स्मृति शेष: इब्राहीम अश्क फ़िल्मी गीतकारों से बहुत अलग थे और साहित्य की हर करवट पर नज़र रखते थे. फ़िल्मी और पेशेवर शायर कहकर उनके क़द को अक्सर ‘कमतर’ बताया गया. शायद इसलिए भी अश्क ने अपनी कई आलोचनात्मक तहरीरों में कथित साहित्यकारों की ख़ूब ख़बर ली.
गए बरस इरफ़ान के जनाज़े में शामिल न होने का मलाल लिए जब साल भर बाद मैं उनकी क़ब्र पर पहुंचा तो ज़िंदगी-मौत, सच और झूठ के अलावा मोहब्बत पर भी बात निकली. और जो निकली तो फिर दूर तलक गई.
क्लब, क्राइम, कैबरे का यह फॉर्मूला 1970 के दशक की फिल्मों तक बेहद लोकप्रिय बना रहा.