जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने हरिद्वार स्थित पतंजलि अनुसंधान संस्थान और पतंजलि जैविक अनुसंधान संस्थान को गंगा नदी के किनारों के पास पुष्प विविधता का ‘वैज्ञानिक अन्वेषण’ करने की एक परियोजना सौंपी है, जिसकी लागत 4.32 करोड़ रुपये है.
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की रिपोर्ट बताती है कि यूपी में चल रहे 111 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 29 पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट निर्वहन मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं. राज्य की कुल सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता में 15 प्रतिशत का हिस्सा रखने वाले ये प्लांट गंगा और इसकी सहायक नदियों की मुख्य धारा के पास स्थित हैं.
कुछ साल पहले दिल्ली में कांवड़िए तिरंगा लेकर चलने लगे. वह त्रिलोक के स्वामी शिव का राष्ट्रवादीकरण था. तब से अब तक काफ़ी तरक्की हो गई है. यह शिवभक्तों की ही नहीं, उनके आराध्य की भी राष्ट्रवाद से हिंदुत्व तक की यात्रा है.
ग्राउंड रिपोर्ट: हिंदुत्ववादी पोंगापंथी, दूरदर्शिताविहीन शासन और योगी सरकार की टैनरी कामगारों के प्रति बेरुख़ी ने कानपुर के चमड़ा उद्योग को अब तक के सबसे बड़े संकट में धकेल दिया है.
केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि गंगा नदी में फेंके गए संभावित कोविड-19 शवों की संख्या के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. जलशक्ति राज्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और उनके मंत्रालय ने इस मामले पर राज्य सरकारों से रिपोर्ट मांगी है.
बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पंचगंगा, दशाश्वमेध, अस्सी और मणिकर्णिका समेत कई घाटों पर विहिप व बजरंग दल द्वारा लगाए पोस्टरों पर ग़ैर-हिंदुओं को गंगा घाटों से दूर रहने की चेतावनी दी गई थी. विहिप का दावा है कि उसने पोस्टर लगाने वाले दो सदस्यों को संगठन से निकाल दिया है.
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा द्वारा लिखी गई एक किताब में गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव की व्याख्या की गई है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो कार्य किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है. कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान शव मिलने की ख़बर पर यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्य के कुछ क्षेत्रों में शवों को गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा रही है.
वीडियो: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि संसद को उन लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिए, जो कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मारे गए, लेकिन जिनकी मौत को स्वीकार नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि इन मौतों ने हमारी विफ़लता का एक जीवित दस्तावेज़ छोड़ दिया है.
एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कोरोना मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए नीति बनाने, दाह संस्कार, कोविड प्रभावित शवों को दफनाने और एंबुलेंस सेवाओं के लिए अधिक शुल्क को नियंत्रित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी.
इलाहाबाद में स्थानीय पत्रकारों के द्वारा 23 और 24 जून को शहर के विभिन्न घाटों पर मोबाइल से बनाए गए वीडियो और खींची गई तस्वीरों में नगर निगम की टीम को इन शवों को बाहर निकालते हुए देखा जा सकता है. मेयर ने बताया है कि इस तरह मिले शवों का अंतिम संस्कार करवाया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश से बहुत से शव नदी में बहकर पश्चिम बंगाल आ गए हैं. मालदा ज़िले में हमने कुछ शव देखे हैं. हमने उनमें से कुछ का अंतिम संस्कार कर दिया है. बीते दिनों बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा और इसकी सहायक नदियों में बड़ी संख्या में संदिग्ध कोरोना संक्रमितों के शव तैरते हुए मिले थे.
पटना हाईकोर्ट ने कोविड-19 प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि जो भी कारण हो, बिहार सरकार कोविड-19 से मरने वालों की संख्या को सार्वजनिक करने को लेकर अनिच्छुक है, जो सही नहीं है. हमारे नज़रिये से सरकार का यह रवैया न ही किसी क़ानून द्वारा संरक्षित है और न ही सुशासन के स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप है.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान गंगा में बहते शवों को देखकर गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने एक कविता लिखी थी. गुजरात साहित्य अकादमी के आधिकारिक प्रकाशन में इसे लेकर कहा गया है कि शब्दों का उन ताकतों द्वारा दुरुपयोग किया गया, जो केंद्र और उसकी राष्ट्रवादी विचारधारा की विरोधी हैं.
संक्रमण और मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप लगने के बाद पिछले महीने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार सरकार से महामारी की दूसरी लहर के दौरान गांवों में कोविड-19 से हुईं मौतों का हिसाब देने को कहा था. न्यायालय ने ज़िलावार मौतों के आंकड़े भी पेश करने को कहा था.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी के घाटों पर अत्यधिक मात्रा में शैवाल पाए जाने के बाद से एक बार फिर से बहस तेज़ हो गई है कि आखिर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी गंगा स्वच्छ क्यों नहीं हो पा रही है. सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गई परियोजनाएं काग़ज़ी दावे बनकर रह गई हैं.