चीन के बढ़ता उत्सर्जन, वैश्विक व्यापार में प्रभुत्व और जलवायु वित्त में योगदान से बचने की नीति ने जलवायु विमर्श को कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है. पहले विकसित देश अमीर देशों के अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण का सामना कर रहे थे, अब चीन का रुख़ भी इसमें शामिल हो गया है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या की गणना उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के प्रावधानों के अनुसार की गई है या नहीं.
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने बताया है कि पिछले महीने 193 मौसम रिकॉर्डिंग स्टेशनों ने अत्यधिक भारी वर्षा (24 घंटे में 204.5 मिमी से अधिक) दर्ज की गई जबकि साल 2020 और 2021 में यह आंकड़ा क्रमशः 90 स्टेशनों और 121 स्टेशनों का था.
कॉल टू एक्शन ऑन एक्सट्रीम हीट अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जिसमें अत्यधिक गर्मी को लेकर दस संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के हालात के बारे में बताया गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस साल गर्मियों की शुरुआत के बाद से जून के मध्य तक 100 से अधिक मौतें गर्मी के चलते हुईं.
पर्यावरण क्षरण और जलवायु आपदाओं को ग्लोबल कहने से यह राय बनती है कि वे सभी को समान रूप से प्रभावित करती हैं, पर सच्चाई ये है कि जलवायु आपदाओं का सार्वभौमिक चरित्र है कि वे उसके दोषी पक्ष को अक्सर कम तथा निर्दोष सामान्यजन को अधिक प्रभावित करती हैं.
वीडियो: कृषि की बात के इस एपिसोड में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू क्षेत्र में 'क्लाइमेट चेंज' यानी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बात की गई है. कुल्लू घाटी के सुदूर गांवों के किसानों से जाना गया कि सेब का उत्पादन मौसम में हो रहे बदलावों से कैसे प्रभावित हो रहा है.
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अगले कुछ सालों में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया तो 2030 के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाया गया कोई भी क़दम वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. ग्रीनहाउस गैस वातावरण में गर्मी को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं.
भारत ने इस क़दम का विरोध करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का उचित मंच ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ यानी यूएनएफसीसीसी है, न कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद. भारत के अलावा वीटो का अधिकार रखने वाले रूस ने इस प्रस्ताव के विपक्ष में वोट किया, जबकि चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया.
जलवायु परिवर्तन पर आई आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट बताती है कि अगर पृथ्वी के जलवायु को जल्द स्थिर कर दिया जाए, तब भी जलवायु परिवर्तन के कारण जो क्षति हो चुकी है, उसे सदियों तक भी ठीक नहीं किया जा सकेगा. आईपीसीसी इस बात की पुष्टि करता है कि 1950 के बाद से अधिकांश भूमि क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी, हीटवेव और भारी बारिश भी लगातार और तीव्र हो गई है. संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘मानवता के लिए कोड रेड’ क़रार
देश के शीर्ष मौसम वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि लू अति प्रतिकूल मौसमी घटनाओं में से एक है. अध्ययन के मुताबिक, 1971-2019 में ऐसी ने 141,308 लोगों की जान ली है. इनमें से 17,362 लोगों की मौत लू की वजह से हुई है. लू से अधिकतर मौत आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में हुईं.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में इस बारे में विभिन्न पहलुओं को लेकर होने वाले बदलावों का आकलन किया गया है. हालांकि पर्यावरणविद मानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण बातें शामिल नहीं की गई हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र को संबोधित करते हुए स्वच्छता, स्वास्थ्य बीमा, बैंक खातों, आतंकवाद, जन कल्याण, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर बात की. यह संयुक्त राष्ट्र में मोदी का दूसरा संबोधन था.
ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्वीन्सलैंड के कारमाइल कोयला खदान में खनन के लिए अडानी को जून में मंजूरी मिली थी. यहां खनन को लेकर विवाद है क्योंकि इस खदान के निकट ही ग्रेट बैरियर रीफ है, जहां दुनिया की सबसे बड़ी मूंगे की चट्टानें हैं.
भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 तक चावल के उत्पादन में चार से छह प्रतिशत, आलू में 11 प्रतिशत, मक्का में 18 प्रतिशत और सरसों के उत्पादन में दो प्रतिशत तक की कमी संभावित है. इसके अलावा एक डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि के साथ गेंहू की उपज में 60 लाख टन तक कमी आ सकती है.
विशेष रिपोर्ट: कृषि मंत्रालय ने वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति को बताया कि अगर समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, सरसों जैसी फसलों पर जलवायु परिवर्तन का काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है. समिति ने इस समस्या को हल करने के लिए सरकार की कोशिशों को नाकाफी बताया है.