दिल्ली में केंद्र सरकार के तीन बड़े अस्पतालों - सफदरजंग, डॉ. राम मनोहर लोहिया, और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एंड एसोसिएटेड हॉस्पिटल्स - में डॉक्टरों के 903, नर्सिंग स्टाफ के 476 और पैरामेडिकल स्टाफ के 695 पद खाली हैं.
सीडीएससीओ की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 100 से अधिक फार्मा इकाइयों के कफ सीरप के सैंपल क्वॉलिटी टेस्ट में खरे नहीं उतरे. रिपोर्ट इशारा करती है कि इनमें से कुछ नमूनों में वही टॉक्सिन मिले हैं जो गांबिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून में बच्चों की मौत का कारण बने थे.
वीडियो: देश में स्वास्थ्य तक पहुंच एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन जो चीज़ इसे सुनिश्चित करती हैं, वह स्वास्थ्य देखभाल को विनियमित करने वाले विभिन्न अधिकार और कानून हैं. ‘सवाल सेहत का’ की इस कड़ी में ऐसे ही क़ानूनों के बारे में जानकारी दी गई है, जो या तो अस्तित्व में नहीं हैं या अगर मौजूद हैं, तो उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जाता है.
एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के कई अन्य एम्स में स्थिति बदतर है. दिल्ली स्थित एम्स में 19 प्रतिशत से कम फैकल्टी ओबीसी से हैं, जबकि अनिवार्य ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबीसी प्रतिनिधित्व की कमी शीर्ष प्रबंधन पदों और ग़ैर-फैकल्टी पदों पर भी है.
वीडियो: भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर द वायर ने नई श्रृंखला शुरू की है. पहले एपिसोड में भारत में किन बीमारियों का बोझ सर्वाधिक है और उनसे कैसे निपटा जा सकता है, इस बारे में एम्स, दिल्ली के डॉ. आनंद कृष्णन और द वायर की हेल्थ रिपोर्टर बनजोत कौर से बात कर रही हैं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
एक अंतरराष्ट्रीय अख़बार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 'म्यांमार के युवा ग्रामीणों को दिल्ली के प्रतिष्ठित अपोलो अस्पताल में ले जाया जा रहा है और उनकी किडनी बर्मा के अमीरों को डोनेट करने के लिए पैसे दिए जा रहे हैं.'
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा है और इस साल 31 दिसंबर तक नए नाम के साथ आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (एबी-एचडब्ल्यूसी) की तस्वीरें मांगी हैं. इन तस्वीरों को एबी-एचडब्ल्यूसी पोर्टल पर अपलोड करने को कहा गया है. ‘आयुष्मान भारत मंदिर’ के साथ ‘आरोग्यम परमं धनम्’ नाम से टैगलाइन भी दी गई है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि आईसीएमआर ने एक विस्तृत अध्ययन कर पाया है कि जो लोग गंभीर कोविड-19 संक्रमण से पीड़ित रहे हैं, उन्हें कुछ समय के लिए कड़ी मेहनत या कठिन व्यायाम नहीं करनी चाहिए. इसे एक या दो साल के लिए स्थगित कर देना चाहिए. उनका यह बयान देश में बढ़ते दिल के दौरे के मामलों के बीच आया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बीते 28 जुलाई को इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) के निदेशक को निलंबित कर दिया था, क्योंकि वह एनएफएचएस-5 के तहत ‘जारी आंकड़ों से नाखुश’ था. उनका निलंबन औपचारिक रूप से पिछले सप्ताह रद्द कर दिया गया था. निदेशक का निलंबन तब तक जारी रहा, जब तक उन्होंने अपना इस्तीफा नहीं दे दिया.
वीडियो: पिछले कुछ समय से टीबी रोग के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कमी संबंधी ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं. इस रोग से जूझ रहे मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि किल्लत के चलते दवाएं प्राप्त करने में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, केंद्र सरकार का दावा है कि दवाओं के किल्लत की ख़बरें भ्रामक हैं.
टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कमी से संबंधित ख़बरों को लेकर दुनियाभर के 113 नागरिक समाज संगठनों और 776 व्यक्तियों ने पत्र लिखकर भारत के प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है.
टीबी रोग के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कमी संबंधी ख़बरों के सामने आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक बयान जारी करके इन्हें भ्रामक क़रार दिया है. इसकी आलोचना करते हुए सिविल सोसायटी समूहों ने कहा है कि उनके पास टीबी की दवाएं प्राप्त करने में कठिनाइयों से जूझ रहे रोगियों, रिश्तेदारों और डॉक्टरों की अपीलों की बाढ़ आ गई है.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने सभी श्रेणियों में नीट-पीजी 2023 क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर शून्य कर दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि जिस उम्मीदवार ने कोई अंक प्राप्त नहीं किया है या जिसने नकारात्मक अंक प्राप्त किए हैं, वह भी एनईईटी-पीजी काउंसलिंग के लिए पात्र होंगे.
उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी और लू के बावजूद राज्य सरकार तब जागी, जब बड़ी संख्या में लोगों की मौत मीडिया के ज़रिये सामने आई. सरकार ने लू के कारण कोई भी मौत होने की बात से इनकार किया है और साल 2017 में हुए गोरखपुर के ऑक्सीजन त्रासदी के बाद अपनाई गई ‘इनकार नीति’ पर चल रही है.
आरोग्य सेतु ऐप साल 2020 में अपनी लॉन्चिंग के साथ सवालों के घेरे में था. साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना था कि सरकार इस ऐप के ज़रिये नागरिकों की काफ़ी निजी जानकारी इकट्ठा करती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से निगरानी के लिए इस्तेमाल की जा सकती है. केंद्र सरकार ने इन चिंताओं को ख़ारिज कर दिया था.