हिंदी को हिंदीवाद और राष्ट्रवाद से मुक्त किए बगैर भाषा का पुनर्वास असंभव

दुनिया में शायद हिंदी अकेली भाषा है जहां सेवक पाए जाते हैं. हिंदी में शिक्षक हो, पत्रकार हो या लेखक, हिंदी की सेवा करता है, उसमें काम नहीं करता.

नामवर सिंह: सत्य के लिए किसी से नहीं डरना चाहिए, गुरु से भी नहीं और वेद से भी नहीं

पुण्यतिथि विशेष: नामवर सिंह आधुनिक कविता और नई कहानी के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण व्याख्याकार हैं. ऐसे व्याख्याकार, जिसने कविता के नए प्रतिमानों की खोज की तो तात्कालिकता के महत्व को भी रेखांकित किया. उनके व्याख्यानों की लंबी श्रृंखला ऐलान करती है कि उन्होंने हिंदी की वाचिक परंपरा को न केवल समृद्ध किया, बल्कि नई पहचान भी दी.

कृष्णा सोबती: क्या एक लेखक को उसकी लेखनी से जाना जा सकता है?

जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.

भारत को गांधी-मुक्त करने का कोई भी प्रयत्न विफल होने के लिए अभिशप्त है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: महात्मा गांधी भारतीय मानस में धंस गए हैं और उन्हें वहां से अपदस्थ करने का जो सुनियोजित साधन-संपन्न अभियान भले चल रहा हो, वह कभी सफल नहीं हो सकता.

हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक और लेखक मैनेजर पांडेय का निधन

मैनेजर पांडेय हिंदी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्‍ताक्षरों में से एक रहे हैं. दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर रहने के अलावा उन्होंने बरेली कॉलेज और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी प्राध्यापक रहे थे.

मन्नू भंडारी, जिन्होंने आम ज़िंदगी को उसके अंतर्द्वंद्वों के साथ अपनी लेखनी में समेटा…

स्मृति शेष: मन्नू भंडारी को पढ़ते वक़्त ज़िंदगी अपने सबसे साधारण, निजी से भी निजी और सबसे विशुद्ध रूप में सामने आती है- और हम तुरंत ही उससे कुछ अपना जोड़ लेते हैं. मन्नू भंडारी की रचनाएं किसी समाज को बदलकर रख देने का वादा नहीं करती और न स्वयं लेखक ही पाठक को इस मुगालते में रखती हैं.

प्रख्यात लेखक और कथाकार मन्नू भंडारी का निधन

मन्नू भंडारी को ‘नई कहानी’ आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता था, जो एक हिंदी साहित्यिक आंदोलन था. वह स्वतंत्रता बाद के उन लेखकों में से एक थीं, जिन्होंने महिलाओं के बारे में लिखा तथा अपने लेखन में मज़बूत और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उन पर एक नई रोशनी डाली थी. अपने लेखन से उन्होंने महिलाओं के यौन, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय शोषण को भी चुनौती दी थी.

व्यंग्य में छिपी बातें अब राजनीति और समाज में खुलेआम हो रही हैंः ज्ञान चतुर्वेदी

वीडियो: व्यंग्य के रूप में हिंदी साहित्य में हम हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल जैसे नामों को हम देखते आए हैं. वर्तमान में इन नामों की परंपरा को आगे सहेजने वालों में ज्ञान चतुर्वेदी जी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. 70 के दशक में धर्मयुग पत्रिका से अपनी व्यंग्य यात्रा शुरू करने वाले ज्ञान चतुर्वेदी ने अपनी रचनाओं के ज़रिये इस विश्वास को आधार भी दिया है. हाल ही में उनकी किताब नेपथ्य लीला आई है.

प्रख्यात कलाविद् कपिला वात्स्यायन का निधन

पद्म विभूषण से सम्मानित देश की प्रख्यात कलाविद् एवं राज्यसभा की पूर्व मनोनीत सदस्य कपिला वात्स्यायन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की संस्थापक सदस्य और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की आजीवन ट्रस्टी भी थीं.

अगर आचार्य रामदास की मुहिम चलती रहती तो हिंदी में विज्ञान लेखन की इतनी दुर्गति न होती

पुण्यतिथि विशेष: 12 सितंबर, 1937 को अंतिम सांस लेने वाले आचार्य रामदास गौड़ द्वारा पैदा की गई वैज्ञानिक चेतना का ही परिणाम था कि उन दिनों विज्ञान लेखकों की गणना भी साहित्यकारों में की जाती थी.

‘राजकिशोर ने अपने उसूलों और जीवन मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया’

वीडियो: वरिष्ठ लेखक और पत्रकार राजकिशोर का सोमवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया. उन्हें याद कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश.

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार राजकिशोर का निधन

71 वर्षीय राजकिशोर फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी से जूझ रहे थे.पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें लोहिया पुरस्कार के अलावा हिंदी अकादमी की तरफ से साहित्यकार सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है.