वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘गो-बारस’ के मौक़े पर पूजा के आयोजन में कर्मचारियों को सपरिवार उपस्थित रहने को कहा गया. आए दिन ऐसे आयोजन कई विश्वविद्यालयों के कैलेंडर का हिस्सा बनते जा रहे हैं और ऐसा करते हुए विश्वविद्यालय अपनी अवधारणा, सिद्धांत और कर्तव्य से बहुत दूर हो रहे हैं.
भागलपुर ज़िले के पीरपैंती से भाजपा विधायक ललन पासवान ने देवी लक्ष्मी, सरस्वती और भगवान हनुमान पर कथित तौर पर टिप्पणी की. एक वीडियो में वह कथित तौर पर कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि जो समुदाय इन देवी-देवताओं की पूजा नहीं करते, वे भी धन-संपदा और शिक्षा से संपन्न हैं. भाजपा ने विधायक से स्पष्टीकरण मांगा है.
बीते 3 अक्टूबर को खेड़ा ज़िले के एक गांव में एक मस्जिद के पास गरबा कार्यक्रम का विरोध किए जाने के बाद हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद हो गया था. घटना से संबंधित एक वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर उन्हें लाठियों से पीटते नज़र आए थे. पीड़ितों ने 15 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.
‘आदिवासी सेंगेल अभियान’ ने सरना धर्म संहिता और जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम की मांग को लेकर कहा कि यदि केंद्र 20 नवंबर तक ऐसा न करने की वजह बताने में विफल रहा तो ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के पचास ज़िलों में आदिवासियों को 30 नवंबर से ‘चक्का जाम’ करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
सवर्ण समाज झूठ बोलता रहा है कि वह समानता के उसूल को मानता है. उसने किसी भी स्तर पर दलितों के साथ साझेदारी से इनकार किया. दलितों का हिंदू बने रहना मात्र एक जगह उपयोगी है- कि ‘मुसलमान, ईसाई’ के प्रति द्वेष और घृणा पर आधारित राजनीति के लिए ऐसे हिंदुओं की संख्या बढ़ती रहनी चाहिए.
पांच हिंदू पक्षकारों में से चार ने ज्ञानवापी मस्जिद से वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान मिले कथित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग कराए जाने की मांग की थी. सरकारी वकील ने बताया कि वाराणसी की ज़िला अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए यह अर्ज़ी ख़रिज कर दी है.
हिंदुओं को यह सोचने की ज़रूरत है कि आखिर क्यों हिंदू ही धर्म परिवर्तन को बाध्य होता है? क्यों उसमें रहना दलितों के लिए सचमुच एक अपमानजनक अनुभव है? क्यों हिंदू इसकी याद दिलाए जाने पर अपने भीतर झांककर देखने की जगह सवाल उठाने वाले का सिर फोड़ने को पत्थर उठा लेता है?
भारतीय अप्रवासी राजनीति अब भारत के ही सूरत-ए-हाल का अक्स है. वही ध्रुवीकरण, वही सोशल मीडिया अभियान, वही राजनीतिक और आधिकारिक संरक्षण और वैसी ही हिंसा. असहमति तो दूर की बात है, एक भिन्न नज़रिये को भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है.
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में अहमदाबाद के कुछ गरबा स्थलों पर बजरंग दल के कार्यकर्ता मुस्लिम युवकों के साथ मारपीट और गली-गलौज करते दिख रहे हैं. कार्यकर्ताओं द्वारा मारपीट की बात स्वीकारने और ऐसे वीडियो जारी करने के बावजूद पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है.
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले को मामला. पुलिस के अनुसार, एक मुस्लिम युवक और हिंदू युवती के बीच प्रेम संबंध था और वे घर छोड़कर चले गए थे. उन्हें ढूंढ़कर युवती को उसके परिजनों को सौंप दिया था. आरोप है कि इसके महीने भर बाद जब युवक अपने माता-पिता के साथ कहीं जा रहे थे तो रास्ते में युवती के परिजनों ने उन पर हमला कर दिया.
कर्नाटक के गृह मंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने ‘कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण विधेयक 2022’ को सदन में पेश किया. राज्यपाल की मंज़ूरी के बाद यह विधेयक 17 मई, 2022 से क़ानून का रूप ले लेगा, क्योंकि इसी तारीख़ को अध्यादेश लागू किया गया था.
बीते 28 अगस्त को एशिया कप में हुए भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले के बाद ब्रिटेन के लेस्टर शहर में हिंदू-मुस्लिम समुदाय आमने-सामने आ गए थे, तब से ही शहर में हाथापाई और सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि देखी जा रही है. शनिवार को दोनों समुदायों के बीच फिर से झड़प हुई थीं.
मोदी सरकार एक ऐसा राज्य स्थापित करने की कोशिश में है जहां जनता सरकार से जवाबदेही न मांगे. नागरिकों के कर्तव्य की सोच को इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा था. मोदी सरकार बिना आपातकाल की औपचारिक घोषणा के ही अधिकारहीन कर्तव्यपालक जनता गढ़ रही है.
आरएसएस को फ़ासीवादी संगठन कहने पर कुछ लोग नाराज़ हो उठते हैं. उनका तर्क है कि वह देशभक्त संगठन है. क्या देश में रहने वाली आबादियों के ख़िलाफ़ घृणा पैदा करते हुए, उनके ख़िलाफ़ हिंसा करते हुए देशभक्ति की जा सकती है?
विधानसभा ने पिछले वर्ष दिसंबर में ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ पारित किया था लेकिन विधान परिषद में भाजपा को बहुमत न होने की वजह से यह लंबित था. सरकार इस विधेयक को प्रभाव में लाने के लिए इस वर्ष मई में अध्यादेश लाई थी.