कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि यह दर्दनाक है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजरंग दल की तुलना बजरंग बली से कर रहे हैं. यह देवता का अपमान करने के समान है. इसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह कर्नाटक विधानसभा चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर समूचे प्रचार में अपने पद की गरिमा तक से समझौता किए रखा और मतदाताओं ने जिस तरह उनकी बातों की अनसुनी की, उसका साफ़ संदेश है कि भाजपा के ‘मोदी नाम केवलम्’ वाले सुनहरे दिन बीत गए हैं.
वीडियो: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत के साथ जीत हासिल की है. कांग्रेस को जहां 224 सीटों में 135 सीटें मिलीं हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद भाजपा के खाते में सिर्फ़ 66 सीटें ही आई हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 104 सीटों को अपने नाम किया था.
वीडियो: कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को मिली जीत के बाद दिल्ली स्थिति पार्टी मुख्यालय पर जश्न का माहौल नज़र आया. द वायर की टीम ने यहां मौजूद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से इस संबंध में बातचीत की.
बजरंग दल के पहले ग्लोबल लीडर नरेंद्र मोदी ने दल का गुणगान क्यों नहीं किया? वे बजरंग दल के काम क्यों नहीं गिना सके? बजरंग दल के विरोधी उसे बुरा-बुरा कहते हैं, तो मोदी और भागवत उसे अच्छा-अच्छा क्यों नहीं कह सके?
बीते कुछ समय से भाजपा, आरएसएस तथा उनके द्वारा पोषित-समर्थित अन्य संगठन सनातन शब्द के प्रयोग पर ज़ोर देते नज़र आ रहे हैं. क्या वे हिंदुत्व शब्द से पीछा छुड़ाना चाहते हैं? सांप्रदायिक और दमनकारी हिंदुत्व की राजनीति के कारण भाजपा और संघ की बदरंग हुई छवि क्या सनातन शब्द से उजली हो जाएगी?
भाजपा का भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दा धीरे-धीरे दरक रहा है और 2024 तक आते-आते स्थिति और बिगड़ सकती है. संक्षेप में कहें, तो अगर कांग्रेस कर्नाटक में अच्छी जीत दर्ज करने में कामयाब रहती है, तो 2024 के चुनावी समर के शुरू होने से पहले कर्नाटक राष्ट्रीय विपक्ष के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है.
सामूहिक हिंसा या घृणा के अलावा बिना किसी संगठन के भी ढेरों हिंदुओं में दूसरों के प्रति घृणा ज़ाहिर करने का लोभ अश्लीलता के स्तर तक पहुंच गया है. इन हिंदुओं के बीच ऐसे ‘कुशल’ वक्ताओं की संख्या बढ़ रही है जो खुलेआम हिंसा का प्रचार करते हैं. वक्ताओं के साथ उनके श्रोताओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
अमेरिका हो या भारत, पाठ्यपुस्तकों को बैन करने, उन्हें संशोधित करने या उन्हें चुनौती देने की प्रक्रिया स्वतःस्फूर्त नहीं होती. इसके पीछे रूढ़िवादी, संकीर्ण नज़रिया रखने वाले संगठन; समुदाय या आस्था के आधार पर एक दूसरे को दुश्मन साबित करने वाली तंज़ीमें साफ़ दिखती हैं.
भारतीय जनता पार्टी के नेता अब खुलकर रामनवमी में हिंसा का उकसावा कर रहे हैं. और वे सरकारों में हैं. उन्होंने इसे हिंदुत्व के लिए गोलबंदी का ज़रिया बना लिया है. अब रामनवमी उन राज्यों में भी मनाई जाने लगी है जहां इसका रिवाज न था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा ने पहले राम का नाम लेकर, उनकी जन्मभूमि को आधार बनाकर अपनी पकड़ मजबूत की, और फिर राजनीतिक सत्ता पाई. अब रामनवमी उसी सत्ता का शक्ति-प्रदर्शन मात्र बनकर रह गई है.
उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद पुलिस ने बजरंग दल के प्रदर्शन और धमकी के बाद एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा उनकी निजी इमारत में की जा रही सामूहिक तरावीह को रुकवा दिया. क्या अब यह सच नहीं कि मुसलमान या ईसाई का चैन और सुकून तब तक है जब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन कुछ और तय न करें? क्या अब उनका जीवन अनिश्चित नहीं हो गया है?
कन्नड़ अभिनेता चेतन कुमार ने सोमवार को एक ट्वीट में 'हिंदुत्व झूठ पर बना है' लिखते हुए कहा था कि इसे सच से ही हराया जा सकता है. इस ट्वीट के ख़िलाफ़ एक बजरंग दल सदस्य की शिकायत पर चेतन को गिरफ़्तार करने के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?
वीडियो: देश के माहौल में बढ़ती सांप्रदायिकता, लोकतंत्र की स्थिति, अडानी समूह पर लगे आरोपों और विपक्ष समेत विभिन्न विषयों पर लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.