दुनिया भर के 1300 से अधिक लेखकों और प्रकाशकों ने एक पत्र जारी किया है, जिसमें ख्याति प्राप्त फिलीस्तीनी लेखक अदानिया शिबली समेत अन्य उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि कई यूरोपीय देशों में फिलिस्तीनी कला, आवाज़ और कहानियों को आगे लाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है.
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) के अनुसार, मारे गए पत्रकारों में से 17 फिलिस्तीनी, तीन इज़रायली और एक लेबनानी थे.
हमास-नियंत्रित आंतरिक मंत्रालय ने कहा है कि ग़ाज़ा स्थित ऑर्थोडॉक्स ग्रीक चर्च पर इज़रायल के हवाई हमले में कम से कम 8 लोगों की मौत हो गई है. जब हमला हुआ तक यहां ईसाई और मुस्लिम समुदाय के क़रीब 500 लोग शरण लिए हुए थे. इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद इन्हें विस्थापित होना पड़ा था.
बताया गया है कि अस्पताल में मरने वालों की संख्या और बढ़ने की संभावना है. अब तक के आंकड़े 1982 में लेबनान के सबरा और शतीला में इज़रायली सेना और उसके सहयोगियों द्वारा किए गए नरसंहार के बाद किसी एक घटना में मारे गए फिलिस्तीनियों की सबसे बड़ी संख्या है.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में रिज़र्व पुलिस लाइन में तैनात कॉन्स्टेबल सुहैल अंसारी ने कथित तौर पर अपने फेसबुक एकाउंट पर फिलिस्तीन के लिए आर्थिक मदद की मांग करते हुए स्टेटस डाला था. बीते दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इज़रायल-फिलिस्तीन युद्ध पर किसी भी ‘विवादास्पद बयान’ के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई का आदेश दिया था.
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कथित तौर पर फिलिस्तीन का समर्थन करके ‘शत्रुता को बढ़ावा देने’ के आरोप में एक मौलवी को गिरफ़्तार किया गया है. वहीं इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए बरेली के एक डॉक्टर के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है.
गाज़ा में इज़रायली सेना की कार्रवाई के बीच इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ये बस शुरुआत है. वे गाजा स्थित आतंकवादी समूह हमास को 'तबाह' कर देंगे.
वीडियो: इज़रायल के फ़िलिस्तीनियों से गाज़ा छोड़ने की कहने से पहले वहां भोजन, पानी और बिजली की आपूर्ति रोकी जा चुकी थी. यूएन के विनाशकारी नतीजों को लेकर चेताने के बावजूद विश्व के शक्तिशाली देश इज़रायल को युद्ध विराम के लिए क्यों नहीं कह रहे हैं? चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद.
वीडियो: हमास के हमले के बाद छिड़े इज़रायल-फ़िलिस्तीन युद्ध को लेकर सोशल मीडिया पर एक वर्ग भारत के मुसलमानों को निशाना बना रहा है. इस बारे में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.
संयुक्त राष्ट्र के एक प्रवक्ता ने कहा कि अगर इस तरह के आदेश को रद्द नहीं किया गया, तो यह पहले से ही हुई त्रासदी को बड़ी तबाही में बदल सकता है.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भाजपा के नेताओं ने इज़रायल का समर्थन करने में ‘तेजी’ दिखाई है, लेकिन वे मणिपुर के मुद्दे को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं. उनकी ‘चुप्पी’ हमारी मातृभूमि में इस मुद्दे (मणिपुर हिंसा) पर उनके इरादों के बारे में बहुत कुछ बताती है.
इज़रायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में अब तक सीमा के दोनों ओर 1,200 से अधिक लोग मारे गए हैं.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों द्वारा बीते 8 अक्टूबर की रात को फिलीस्तीनियों के समर्थन में एक मार्च निकाला गया था. पुलिस ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने अपने मार्च के लिए कोई पूर्व अनुमति नहीं ली थी. एफआईआर में कहा गया है कि छात्रों ने एक ‘आतंकवादी समूह’ के ‘समर्थन’ में मार्च किया था.
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गाज़ा से होने वाले फिलीस्तीनी हमलों का इज़रायली सरकारों ने लगातार जो एकमात्र समाधान ढूंढा है, वो नाकाफ़ी है- कि अगर वो ज़मीन के रास्ते आए, तो दीवार बना देंगे; अगर रॉकेट दागे, तो इंटरसेप्टर बना लेंगे; अगर हमारे कुछ लोगों को मारा गया, तो उनके कइयों को मार डालेंगे. ऐसे ये सिलसिला लगातार चलता रहेगा.