राज्य के दर्जे और अन्य संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांगों के संबंध में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के साथ बातचीत से पहले लद्दाख के निर्वाचित प्रतिनिधि दो स्वायत्त हिल काउंसिल के बजट में भारी कटौती को लेकर नाराज़ हैं. उनके बजट (विकास निधि) में 110 करोड़ रुपये की कटौती की गई है.
निवासियों का कहना है कि संविधान की छठी अनुसूची में जोड़े बिना लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से कोई लाभ नहीं मिला है. लद्दाख के भाजपा नेता भी यह मांग उठा रहे हैं.
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केंद्र शासित प्रदेश के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की 4 मार्च को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पूर्व भाजपा सांसद थुपस्तान छेवांग ने कहा कि गृह मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि छठी अनुसूची के तहत न तो राज्य का दर्जा दिया जा सकता है और न ही गारंटी दी जा सकती है.
लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने लोगों से संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे की मांग, एक लोक सेवा आयोग के निर्माण, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण, शीघ्र भर्ती अभियान और संसद में लेह और करगिल जिलों के लिए अलग प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने के लिए एकजुट होने को कहा है.
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लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (करगिल) चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने 26 में से 22 सीटें जीतीं हैं. चुनावों के नतीजों को जम्मू कश्मीर पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 5 अगस्त 2019 के फैसलों और क्षेत्र में उसके बाद लागू की गईं नीतियों के प्रतिकार के रूप में भी देखा जा रहा है.
लद्दाख दौरे के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि भाजपा आपसे आपकी ज़मीन छीनना चाहती है. वे अडानी की बड़ी परियोजनाओं को यहां स्थापित होने देना चाहती हैं और यह भी नहीं चाहती कि उनसे आपको फायदा हो. हम ऐसा नहीं होने देंगे.
उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के समिति से मिलने वाले लद्दाख के नेताओं ने कहा है कि अगर एजेंडा में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे पर बातचीत शामिल नहीं हुई तो वे आगामी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.
शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने कहा है कि उपवास का कारण यह है कि केंद्र सरकार ने संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को लाने की मांग पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. 2019 में लद्दाख के जम्मू कश्मीर से अलग होने के बाद से यह मांग लगातार उठती रही है. सोनम इसे लेकर जनवरी में भी उपवास पर रहे थे.
साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.
लद्दाख के शिक्षा सुधारक और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने क्षेत्र में छठी अनुसूची की मांग को दोहराते हुए कहा कि डर यह नहीं है कि लोग भारत के ख़िलाफ़ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और ऐसा होना उस देश के लिए ख़तरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है.
लद्दाख में संविधान की छठी अनुसूची लागू करने और पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग के समर्थन में इंजीनियर एवं नवप्रवर्तक सोनम वांगचुक पांच दिन का ‘क्लाइमेट फास्ट’ कर रहे हैं. विरोध को ख़त्म करने की कोशिश में प्रशासन ने उनसे एक बॉन्ड पर साइन करने के लिए कहा है, जिसमें कहा गया है कि वह कोई बयान नहीं देंगे या एक महीने तक लेह में किसी सार्वजनिक सभा में भाग नहीं लेंगे.
केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के करगिल और लेह ज़िलों में स्थानीय संगठनों के नेतृत्व में लोगों ने सड़कों पर रैली निकालकर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग के साथ-साथ लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा देने की भी मांग की.
अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से अलग कर केंद्रशासित राज्य लद्दाख बनाए जाने के बाद से इसे पूर्ण राज्य का दर्जा और यहां के निवासियों को ज़मीन और नौकरी की सुरक्षा गारंटी दिए जाने की मांग आए दिन होती रहती है. आमतौर पर लद्दाख के मुस्लिम बहुल कारगिल और बौद्ध बहुल लेह क्षेत्र एक दूसरे से बंटे रहते हैं, लेकिन इस बार लोगों ने एक सुर में क्षेत्र की संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग उठाई है.