सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में कार्यक्रम के दौरान हमला, हालत नाज़ुक

मैन बुकर से सम्मानित अंग्रेज़ी के प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा संस्थान में एक कार्यक्रम में अपना व्याख्यान शुरू करने वाले थे जब एक व्यक्ति ने मंच पर जाकर चाकू से उन पर हमला किया. उनके एजेंट के अनुसार, वे वेंटिलेटर पर हैं और उनकी स्थिति ठीक नहीं है. अपनी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़’ लिखने के बाद वर्षों तक उन्हें इस्लामी चरमपंथियों से मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा है.

मंडला की पहचान अब सतत प्रवाहमान नर्मदा के साथ रज़ा से भी बन रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मध्य प्रदेश के मंडला में चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की स्मृति में ज़िला प्रशासन द्वारा बनाई गई कला वीथिका क्षेत्र के एकमात्र संस्कृति केंद्र के रूप में उभर रही है.

स्वदेश दीपक: एक बहुत बड़े विस्तार में निपट अकेला…

जन्मदिन विशेष: एक सर्जक के मन की पीड़ाएं उसकी सर्जना के लिए माध्यम बनती हैं पर स्वयं सर्जक भी स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते कि उनकी मानसिक व्याधियों से उनकी कला का वह रूप संभव हो सका है, या अशांत मन के विकारों ने उनकी कला को सीमित किया. स्वदेश दीपक भी अपने मन की प्रेत-छायाओं से लड़ते रहे और अंततः जब लड़ने से थक गए तो अपने आस-पास की दुनिया को छोड़कर एक सुबह चुपचाप कहीं चले गए.

अज्ञेय: ‘लेखक, विद्रोही, सैनिक, प्रेमी’

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अज्ञेय के लिए स्वतंत्रता और स्वाभिमान ऐसे मूल्य थे जिन पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. अक्षय मुकुल की लिखी उनकी जीवनी इस धारणा का सत्यापन करती है.

धर्म के द्वेष को मिटाना इस वक़्त का सबसे ज़रूरी काम है…

सदियों से एक दूसरे के पड़ोस में रहने के बावजूद हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के धार्मिक सिद्धांतों से अपरिचित रहे हैं. प्रेमचंद ने अपने एक नाटक की भूमिका में लिखा भी है कि 'कितने खेद और लज्जा की बात है कि कई शताब्दियों से मुसलमानों के साथ रहने पर भी अभी तक हम लोग प्रायः उनके इतिहास से अनभिज्ञ हैं. हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का एक कारण यह है कि हम हिंदुओं को मुस्लिम महापुरुषों के सच्चरित्रों का ज्ञान नहीं.'

मानसिकता में बदलाव लाएं, समाज सुधारकों के लेखों के बारे में जागरूकता पैदा करे सरकार: कोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर व अन्य समाज सुधारकों के लेखों के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के प्रयास करने होंगे. पीठ ने कहा कि सरकार ने कई सुधारकों के हस्तलिखित साहित्य के ‘अद्भुत’ खंड प्रकाशित किए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से तमाम लोगों को इसके बारे में पता नहीं है.

सार्वजनिक जीवन में असहमति को राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र माना जाने लगा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जो ख़ुद षड्यंत्र करता है वह यह मानकर चलता है कि जो उसके साथ नहीं है या उससे असहमत है वह भी षड्यंत्र कर रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक गीतांजलि श्री से विशेष बातचीत

वीडियो: हाल ही में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसका अनुवाद इस क्षेत्र की सिद्धहस्त अनुवादक डेज़ी राॅकवाल ने किया है. द वायर के ‘हिंदी की बिंदी’ कार्यक्रम में गीतांजलि श्री से दामिनी यादव से ख़ास बातचीत.

साहित्य उम्मीद की विधा है क्योंकि यह यथार्थ, क्रूर वर्तमान का सामना करने का साहस करता है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय की प्रचलित टेक्नोलॉजी और प्रविधियां तेज़ी और सफलता से यथार्थ को तरह-तरह से रचती रहती हैं. इस रचे गए यथार्थ का सच्चाई से संबंध अक्सर न सिर्फ़ क्षीण होता है बल्कि ज़्यादातर वे मनगढ़ंत और झूठ को यथार्थ बनाती हैं. हमारे समय में राजनीति, धर्म, मीडिया आदि मिलकर जो मनोवांछित यथार्थ रच रहे हैं उसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं होता. इस यथार्थ को प्रतिबिंबित करना झूठ को मानना और फैलाना होगा.

पाश की कविताएं ख़ामोश नहीं बैठने देंगी

वीडियो: अवतार सिंह संधू यानी पाश एक ऐसे कवि रहे हैं, जिन्होंने अपने वक़्त में भी वक़्त से बहुत आगे की सोच रखी थी. वर्तमान समय में जबकि ख़ामोश रह जाना समाज को एक सुरक्षा कवच जैसा लगने लगा है, पाश की रचनाओं को पढ़ना और सुनना एक बेचैनी पैदा करता है. हक़ीक़त में देखें तो इसी बेचैनी की ज़रूरत आज सबसे ज़्यादा है.

रोहज़िन: इंसानी रूहों की आंतरिक व्यथा और बरसों से ठहरी उदासी की कहन…

पुस्तक समीक्षा: लेखक रहमान अब्बास के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उर्दू उपन्यास 'रोहज़िन' का अंग्रेज़ी तर्जुमा कुछ समय पहले ही प्रकाशित हुआ है. यह उपन्यास किसी भी दृष्टि से टाइप्ड नहीं है. यह लेखक के अनुभव और कल्पना का सुंदर मिश्रण है, जिसे पढ़ते हुए पाठक एक साथ यथार्थ और अतियथार्थ के दो ध्रुवों में झूलता रहता है.

गोपी चंद नारंग का जाना उर्दू अदब की साझी विरासत के प्रतीक का जाना है…

स्मृति शेष: बीते दिनों प्रसिद्ध आलोचक, भाषाविद और उर्दू भाषा व साहित्य के विद्वान डॉ. गोपी चंद नारंग नहीं रहे. ऐसे समय में जब उर्दू भाषा को धर्म विशेष से जोड़कर उसकी समृद्ध साझी विरासत को भुला देने की कोशिशें लगातार हो रही हैं, डॉ. नारंग का समग्र कृतित्व एक भगीरथ प्रयास के रूप में सामने आता है.

हिंदी साहित्य को केंद्र में लाने के लिए सतत प्रयासों की ज़रूरत: बुकर विजेता गीतांजलि श्री

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखक गीतांजलि श्री का ​कहना है कि मनुष्यों में एक से अधिक भाषा को जानने की क्षमता है. हमारी ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी मातृ भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी को जानने के लिए प्रोत्साहित करे, इसमें समस्या क्या है, लेकिन इसके राजनीति में घिर जाने से यह एक तरह की अनसुलझी समस्या बन गया है.

गीतांजलि श्री के हिंदी से अनूदित उपन्यास ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला

लेखक गीतांजलि श्री के मूल रूप से हिंदी में लिखे गए उपन्यास 'रेत समाधि' के डेज़ी रॉकवेल द्वारा किए अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. बुकर पाने वाला यह किसी भारतीय भाषा का पहला उपन्यास है.

‘कर्बला दर कर्बला’ भागलपुर दंगों की विभीषिका की तहें खोलने का प्रयास है

पुस्तक समीक्षा: गौरीनाथ के ‘कर्बला दर कर्बला’ की दुनिया से गुज़रने के बाद भी गुज़र जाना आसान नहीं है. 1989 के भागलपुर दंगों पर आधारित इस उपन्यास के सत्य को चीख़-ओ-पुकार की तरह सुनना और सहसा उससे भर जाना ऐसा ही है मानो किसी ने अपने समय का ‘मर्सिया’ तहरीर कर दिया हो.

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