विभिन्न पत्रकार संगठनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में कहा है कि आज हमारे समुदाय को एक घातक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. पत्रकारों के ख़िलाफ़ कठोर क़ानूनों का उपयोग तेज़ी से बढ़ गया है. ये क़ानून ज़मानत का प्रावधान नहीं करते, इसके तहत कारावास आदर्श है, न कि अपवाद.
गृह मंत्रालय ने 2021 में मलयालम न्यूज़ चैनल ‘मीडिया वन’ को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का हवाला देते हुए सुरक्षा मंज़ूरी देने से इनकार के बाद जनवरी 2022 में इसके प्रसारण पर रोक लगाने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के निर्णय को रद्द करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों को अधिकारों से वंचित करने की आलोचना की है.
दिसंबर 2021 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ को 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का हवाला देते हुए सुरक्षा मंज़ूरी देने से मना कर दिया था और जनवरी में इसके प्रसारण पर रोक लगाने को कहा था. शीर्ष अदालत ने सरकार से बिना विशेष कारण बताए प्रतिबंध लगाने को लेकर सवाल-जवाब किए हैं.
29 दिसंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ को सुरक्षा मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया था और 31 जनवरी को इसके प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाचार चैनल अपना काम जारी रखेगा, जैसा कि वह प्रसारण पर रोक से पहले कर रहा था.
29 दिसंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ को सुरक्षा मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया था और 31 जनवरी को इसके प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. 8 फरवरी को केरल हाईकोर्ट ने केंद्र के निर्णय को बरक़रार रखा था, जिसके ख़िलाफ़ चैनल ने अपील दायर की थी.
द वायर या इसके संपादकों को इस अदालती कार्यवाही के बाबत कोई नोटिस नहीं मिला था, न ही उन्हें किसी अन्य माध्यम से इसकी जानकारी दी गई.
29 दिसंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार कर दिया और बीते 31 जनवरी को इसके प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. समाचार चैनल के समर्थन में आए विभिन्न सांसदों, वकीलों, संपादकों और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने केरल हाईकोर्ट के फैसले पर निराशा जताई और कहा कि उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने से इनकार कर दिया.
केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ का लाइसेंस रद्द करने की वजह से बीते 31 जनवरी को इसका प्रसारण बंद हो गया था. इसके ख़िलाफ़ चैनल के प्रबंधन ने हाईकोर्ट का रुख़ किया था. चैनल माध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के स्वामित्व में है और इसके कई निवेशक कथित तौर पर जमात-ए-इस्लामी की केरल इकाई के सदस्य हैं.
मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण संबंधी लाइसेंस को 31 जनवरी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा रद्द किए जाने के एक दिन बाद केरल के 10 लोकसभा सांसद संबंधित मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले थे. तब उन्होंने उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने को बोला था. सांसदों का कहना है कि लाइसेंस रद्द करने का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया है, यह मीडिया की आवाज़ दबाने का प्रयास है.
असम के बराक घाटी के तीन ज़िलों के 150 से अधिक पत्रकारों ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को पत्र लिखकर ‘बराक बुलेटिन’ न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले पत्रकार अनिर्बान रॉय चौधरी के ख़िलाफ़ सभी आरोपों को रद्द करने की मांग की है. पत्रकारों ने इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया.
असम के कछार ज़िले में ‘बराक बुलेटिन’ नामक न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले पत्रकार अनिर्बान रॉय चौधरी को पुलिस से समन प्राप्त हुआ है. बीते एक दिसंबर को उनके ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि उनके एक लेख के कारण असम के बंगाली और असमिया भाषी लोगों के बीच का भाईचारा बिगड़ सकता है.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार के अन्य आलोचकों को ख़ामोश कराने के लिए कर चोरी और वित्तीय अनियमितता जैसे राजनीति से प्रेरित आरोप लगा रही है.
प्रवर्तन निदेशालय मामले में दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद अब आयकर विभाग ने न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ जांच शुरू की है.
पुलिस द्वारा यह कार्रवाई कठोर यूएपीए क़ानून के तहत पिछले साल दर्ज एक मामले को लेकर की गई है, जो कश्मीर के पत्रकारों व कार्यकर्ताओं को जान से मारने की धमकी से जुड़ा हुआ है.
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह एफआईआर दर्ज करना पत्रकार को ‘चुप कराने’ का तरीका था. पत्रकार की एक रिपोर्ट 19 अप्रैल 2018 को जम्मू के एक अख़बार में प्रकाशित हुई थी, जो एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करने से संबंधित थी. इसे लेकर पुलिस ने उन पर केस दर्ज किया था.