वीडियो: बीते दिनों बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के बाद संस्थान के दफ़्तर पहुंचे आयकर विभाग और उद्योगपति गौतम अडानी के कारोबार को लेकर सवाल उठाने वाली हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जुड़े विवाद को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन की बातचीत.
भारतीय मिथकीय संदर्भों में अमृत-विष की अवधारणा समुद्र मंथन से जुड़ती है, जहां मोहिनीरूपधारी विष्णु ने चालाकी से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था. आज मोदी सरकार ने आर्थिक संपदा व संसाधनों को प्रभुत्व वर्ग के हाथों में केंद्रित करते हुए मोहिनी की तरह अमृत का पूरा घड़ा ही उनके हाथ में दे दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में 2004 से 2014 के दशक को 'लॉस्ट डेकेड' कहा था. यह पद अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति आय में न के बराबर बढ़ोतरी को लेकर चलन में रहा है. हालांकि प्रधानमंत्री ने भारत में जिस दशक के लिए इसे इस्तेमाल किया, उससे जुड़े आंकड़े इस अर्थ के विपरीत तस्वीर दिखाते हैं.
मोदी सरकार द्वारा मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र पर किए जा रहे हमलों के बारे में काफ़ी कुछ लिखा और कहा जा चुका है, लेकिन हालिया हमला दिखाता है कि प्रेस की स्वतंत्रता 'मोदी सेना' की मर्ज़ी की ग़ुलाम हो चुकी है.
बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.
बीबीसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि आयकर विभाग के सर्वे के दौरान कई घंटे तक उसके के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.
समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फ़हद शाह पिछले एक साल से जेल में हैं. उन पर गै़रक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है. उन्हें आतंकवाद का महिमामंडन करने, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने और आम जनता को क़ानून व्यवस्था के ख़िलाफ़ भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ़्तरों में आयकर विभाग की कार्रवाई की निंदा करते हुए कई मीडिया संगठनों ने इसे पत्रकारिता संस्थानों को डराने-धमकाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग बताया है.
देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मार्च 2020 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत होने के बाद से सदन में कोई सवाल नहीं किया, न ही कोई प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया. राज्यसभा की वेबसाइट के जिस हिस्से में सांसदों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है, वहां गोगोई संबंधी कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
विशेष रिपोर्ट: सिंगापुर की एक कंपनी गुदामी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, जो अडानी समूह का हिस्सा रही है, के ख़िलाफ़ अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले में ईडी द्वारा 2014 और 2017 में चार्जशीट दायर की गई थी. इस पर घोटाले के प्रमुख आरोपी गौतम खेतान के साथ कंसल्टेंसी सर्विसेज़ के नाम पर जाली इनवॉइस बनाकर कारोबार करने का आरोप लगाया गया था.
बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ़्तरों में यह कार्रवाई 2002 के गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका और भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर दो भाग वाली डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' प्रसारित करने के कुछ सप्ताह बाद हुई है. डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया है.
साल 2012 में भाजपा के दिवंगत नेता और पूर्व क़ानून मंत्री अरुण जेटली ने एक कार्यक्रम में सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति के चलन पर सवाल उठाए थे. इसी कार्यक्रम में मौजूद भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद दो सालों (नियुक्ति से पहले) का अंतराल होना चाहिए वरना सरकार अदालतों को प्रभावित कर सकती है और एक स्वतंत्र, निष्पक्ष न्यायपालिका कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाएगी.
जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में 2019 के ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा रहे थे. उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. उनसे पहले पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य बनाया गया था, जबकि जस्टिस अशोक भूषण को उनकी सेवानिवृत्ति के चार महीने बाद राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
बीते जनवरी में रिटायर हुए जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के तीसरे ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मोदी सरकार द्वारा किसी अन्य पद के लिए नामित किया गया है.
अडानी समूह के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी का आरोप लगाने वाली रिपोर्ट जारी करने के बाद सोशल मीडिया पर ऐसी ख़बरें चलने लगी थीं कि हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ अमेरिका में तीन मामलों की जांच चल रही है, इसके बैंक एकाउंट जब्त कर दिए गए हैं और इसे न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों पर रिपोर्ट जारी करने से रोक दिया गया है.