केंद्र सरकार और नगा संगठनों की अगुवाई कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के बीच शांति वार्ता मई से रुकी हुई है. एनएससीएन-आईएम ने कहा है कि वह नगा बहुल क्षेत्रों के एकीकरण और एक अलग झंडे की अपनी मांग पर कायम है और इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता.
केंद्र के साथ शांति वार्ता कर रहे नगा समूहों का अगुवा संगठन एनएससीएन-आईएम लंबे समय से अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर क़ायम है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार नगा संविधान को भारतीय संविधान में शामिल करने के लिए तैयार है और उनके सांस्कृतिक ध्वज के इस्तेमाल को भी सहमति दे दी गई है.
केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे नगा संगठनों की अगुवाई कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने दावा किया है कि दशकों से चली आ रही इस समस्या के समाधान में हो रही देरी की वजह आरएसएस द्वारा उनके अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर आपत्ति जताया जाना है.
दशकों पुराने नगा राजनीतिक मुद्दे का समाधान तलाशने के लिए वार्ता बहाल करने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) का कहना है कि केंद्र सरकार बिना राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा किए बढ़ाकर-चढ़ाकर किए गए वादों से नगाओं को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है.
आरएन रवि 2014 से नगा संगठनों के साथ चल रही शांति वार्ता में केंद्र सरकार की ओर से बात कर रहे थे और 2019 में उन्हें नगालैंड के राज्यपाल पद की भी ज़िम्मेदारी दी गई थी. बीते एक साल में कई बार नगा समूहों और कार्यकर्ताओं की ओर से उन पर शांति वार्ता बेपटरी करने की कोशिश के आरोप लगाए गए थे. इस महीने की शुरुआत में उन्हें तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया है.
नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि नगा समूहों के साथ चल रही शांति वार्ता में केंद्र की ओर से वार्ताकार की भूमिका में भी हैं. बीते एक साल में कई बार नगा समूहों और कार्यकर्ताओं की ओर से उन पर शांति वार्ता को बेपटरी करने की कोशिश करने के आरोप लगाए गए हैं.
नगा संगठन एनएससीएन-आईएम ने कार्बी-आंगलोंग स्वायत्त प्रादेशिक परिषद को अंतिम रूप देने की केंद्र और असम सरकार की प्रस्तावित योजना को अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि यह असम में रेंगमा नगाओं की पैतृक भूमि को अलग करती है. उन्होंने यह भी कहा कि यह भारत सरकार और उनके संगठन के बीच हुई नगा शांति वार्ता का महत्वपूर्ण एजेंडा भी है, जिस पर अंतिम निर्णय लंबित है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि संघर्ष विराम समझौतों को एक साल के लिए और बढ़ाने का निर्णय लिया गया है, जो एनएससीएन/एनके और एनएससीएन/आरके साथ 28 अप्रैल 2021 से 27 अप्रैल 2022 तक तथा एनएससीएन/के-खांगो के साथ 18 अप्रैल 2021 से 17 अप्रैल 2022 तक प्रभावी रहेगा.
नगालैंड के राज्यपाल और नगा शांति वार्ता के मध्यस्थ आरएन रवि ने फरवरी में विधानसभा में कहा कि नगा राजनीतिक मुद्दे पर बातचीत ख़त्म हो चुकी है और अब अंतिम समाधान की ओर बढ़ने की ज़रूरत है. नगा समूह ने वार्ता पूरी होने से इनकार करते हुए कहा है कि मध्यस्थ के रूप में रवि की भूमिका निराशाजनक है.
अक्टूबर में नगालैंड के सबसे प्रभावशाली नगा संगठन एनएससीएन-आईएम के प्रमुख ने कहा था कि भारत सरकार के साथ चल रही शांति वार्ता में उनका संगठन अलग झंडे और संविधान की मांग पर कोई समझौता नहीं करेगा.
उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों के अगुवा एनएससीएन-आईएम ने एक बयान जारी कर कहा कि भारत सरकार को बड़ी संवेदनशीलता के साथ स्थिति को संभालना चाहिए और भारतीय सुरक्षा बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को एनएससीएन के खिलाफ अभियान चलाने के लिए नहीं उकसाना चाहिए. हमारे धैर्य को हमारी कमजोरी या लाचारी नहीं समझना चाहिए.
विशेष: द वायर के साथ बातचीत में एनएससीएन-आईएम के प्रमुख टी. मुइवाह ने दोहराया कि भारत सरकार के साथ चल रही शांति वार्ता में उनका संगठन अलग झंडे और संविधान की मांग पर कोई समझौता नहीं करेगा.
मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के साथ बैठक में विभिन्न नगा जातियों, नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, चर्च के प्रतिनिधियों, नगा समाज की प्रमुख हस्तियों ने सात सूत्रीय प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए और केंद्र के साथ चल रही शांति प्रक्रिया को सुविधानजनक बनाने का आह्वान किया.
इस साल फरवरी में एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुईवाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में मांग की थी कि वार्ता सीधे प्रधानमंत्री स्तर पर बिना किसी पूर्व शर्त के हो. संगठन ने अब यह पत्र जारी करते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि लोग जानें कि नगा समूहों के साथ पीएमओ का रवैया कितना अनुत्तरदायी था.
नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि इंतज़ार की घड़ियां समाप्त हुईं और केंद्र ऐसा समाधान निकालने के लिए आवश्यक क़दम उठा रहा है, जो सभी को स्वीकार्य हो.