जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...
बीना नगर पालिका ने हिंदी और बुंदेली के जाने-माने कवि महेश कटारे 'सुगम' को नोटिस भेजते हुए दावा किया है कि उनका घर अवैध निर्माण है. वहीं, कटारे का कहना है कि उनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज़ और अनुमतियां हैं और वे नियमित रूप से गृह कर भी जमा करवाते रहे हैं.
जन्मदिन विशेष: महादेवी वर्मा जीवन भर व्यवस्था और समाज के स्थापित मानदंडों से लगातार संघर्ष करती रहीं और इसी संघर्ष ने उन्हें अपने समय और समाज की मुख्यधारा में सिर झुकाकर भेड़ों की तरह चुपचाप चलने वाली नियति से बचाकर एक मिसाल के रूप में स्थापित कर दिया.
जन्मदिन विशेष: रघुवीर सहाय ने संसदीय जनतंत्र में आदमी के बने रहने की चुनौतियों को शायद किसी भी दूसरे कवि से बेहतर समझा था. सत्ता और व्यक्ति के बीच के रिश्ते में ख़ुद आदमी का क्षरित होते जाना. हम कैसे लोग हैं, किस तरह का समाज?
स्मृति शेष: प्रख्यात नारीवादी कमला भसीन अपनी शैली की सादगी और स्पष्टवादिता से किसी मसले के मर्म तक पहुंच पाने में कामयाब हो जाती थीं. उन्होंने सहज तरीके से शिक्षाविदों और नारीवादियों का जिस स्तर का सम्मान अर्जित किया, वह कार्यकर्ताओं के लिए आम नहीं है. उनके लिए वे एक आइकॉन थीं, स्त्रीवाद को एक नए नज़रिये से बरतने की एक कसौटी थीं.
भारत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में नारीवादी आंदोलन की प्रमुख आवाज़ रहीं 75 वर्षीय कमला भसीन का शनिवार तड़के निधन हो गया. वे लैंगिक समानता, शिक्षा, ग़रीबी-उन्मूलन, मानवाधिकार और दक्षिण एशिया में शांति जैसे मुद्दों पर 1970 से लगातार सक्रिय थीं.
कवि डॉ. कुंवर बेचैन ग़ाज़ियाबाद के नेहरू नगर में रहते थे. बीते 12 अप्रैल को वह और उनकी पत्नी के कोविड-19 से संक्रमित होने का पता चला था. उनकी पत्नी का इलाज सूर्या अस्पताल में चल रहा है.
वीडियो: 16 अगस्त, 1904 को इलाहाबाद के निकट निहालपुर गांव में जन्मीं सुभद्रा कुमारी चौहान ने महज़ नौ साल की उम्र में अपनी पहली प्रकाशित कविता लिखी थी. वह स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रही हैं. स्वतंत्रता से पूर्व स्त्री अधिकारों पर लिखने वाली वह देश की पहली महिला लेखक थीं.
पद्मश्री से सम्मानित 85 वर्षीय शमसुर रहमान फ़ारूक़ी हाल ही में कोरोना वायरस संक्रमण से उबरे थे. उन्हें 16वीं सदी में विकसित हुई उर्दू में कहानी सुनाने की कला ‘दास्तानगोई’ को पुनर्जीवित करने के लिए भी जाना जाता है.
पिछले पांच-छह सालों में दिनकर का कीर्तन वैसे लोगों ने किया है, जिन्हें शायद वे अपनी चौखट न लांघने देते. उनकी ओजस्विता से इस भ्रम में नहीं पड़ जाना चाहिए कि वे हुंकारवादी राष्ट्रवाद के प्रवक्ता थे. वे राष्ट्रवादी थे, लेकिन ऐसा राष्ट्रवादी जो अपने राष्ट्र को नित नया हासिल करता था और कृतज्ञ होता था.
गीतकार योगेश ने राजेश खन्ना की फिल्म आनंद, जया भादुड़ी की फिल्म मिली, अमोल पालेकर की फिल्म रजनीगंधा, छोटी सी बात और बातों बातों में के अलावा अमिताभ बच्चन की फिल्म मंज़िल के लिए यादगार गीत लिखे थे.
गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया ‘पहला गिरमिटिया’ नामक उपन्यास महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था, जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई.
जयपुर के रहने वाले कवि बप्पादित्य बुधवार रात एक कैब में बैठने के बाद फोन पर नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर बात कर रहे थे, जिसे सुनकर कैब ड्राइवर रोहित उन्हें एंटी नेशनल बताते हुए पुलिस थाने ले गया. रोहित को मुंबई भाजपा अध्यक्ष द्वारा सतर्क नागरिक पुरस्कार दिया गया है.
कवि, उपन्यासकार, स्तंभकार और लघु कथाओं और यात्रा वृतांतों की लेखिका नवनीता देव सेन को रामायण पर उनके शोध के लिए भी जाना जाता था.
विष्णु खरे ने न सिर्फ एक नई तरह की भाषा और संवेदना से समकालीन हिंदी कविता को नया मिज़ाज़ दिया बल्कि उसे बदला भी. एक बड़े कवि की पहचान इस बात से भी होती है कि वह पहले से चली आ रही कविता को कितना बदलता है. और इस लिहाज़ से खरे अपनी पीढ़ी और समय के एक बड़े उदाहरण हैं.