गरीबी आम तौर पर एक ऐसी स्थिति है जिसके शिकार व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास जीने के लिए आवश्यक बुनियादी चीजें नहीं होतीं, जबकि रंक के साथ गरीबी से पैदा हुई 'कंगाली में आटा गीला' वाली गिरानी से भरी भीषण असहायता भी जुड़ी होती है.
वीडियो: हाल ही में केंद्र सरकार ने घरेलू व्यय सर्वे रिपोर्ट जारी करते हुए ने यह दावा किया कि भारत में महज 5% से कम ग़रीबी रह गई है. जानकारों ने इस दावे के साथ सर्वे की मेथाडोलॉजी पर भी सवाल तो उठाए हैं. क्या इस सर्वे के आंकड़े विश्वसनीय हैं? इस बारे में वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार वी. श्रीधर से अजय कुमार की बातचीत.
बसपा प्रमुख मायावती ने डॉ. भीमराव आंबेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर कहा कि देश के 81 करोड़ से अधिक ग़रीबों को पेट पालने के लिए सरकारी अन्न का मोहताज बना देने जैसी दुर्दशा न आज़ादी का सपना था और न ही उनके लिए कल्याणकारी संविधान बनाते समय डॉ. आंबेडकर ने सोचा था, यह स्थिति अति-दुखद है.
गुजरात की भाजपा सरकार ने बीते 21 मार्च को गुजरात विधानसभा में उठाए गए कई सवालों के जवाब में ये आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. इस दौरान अमरेली ज़िले में सबसे अधिक 425 परिवार बीपीएल सूची में शामिल किए गए हैं.
बच्चों के अधिकार के लिए लड़ने वाली माताओं के एक समूह ‘वारियर मॉम्स’ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में कहा है कि अभी औसतन 1,000 रुपये से ऊपर चल रहे सिलेंडर को ख़रीदने में असमर्थ वंचित परिवार ईंधन के लिए लकड़ी या कंडे जलाने पर निर्भर हैं, जिससे गर्भ में ही बच्चे की मौत होने, अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस, शारीरिक विकास में बाधा जैसी समस्याएं आ रही हैं.
एक कार्यक्रम में बेरोज़गारी को लेकर नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि हमारी शिक्षा प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना है. हालांकि, लगभग 98 प्रतिशत उम्मीदवार इन नौकरियों को पाने में सफल नहीं होते हैं, जिससे बेरोज़गार युवाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है.
हरियाणा के करनाल ज़िले में ये मामला सामने आने के बाद राहुल गांधी ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें कुछ राशनकार्ड धारकों को यह शिकायत करते हुए देखा जा सकता है कि उन्हें 20 रुपये में तिरंगा खरीदने को मजबूर किया जा रहा है. भाजपा सांसद वरुण गांधी ने कहा कि तिरंगे की कीमत ग़रीब का निवाला छीनकर वसूलना शर्मनाक है. वहीं केंद्र ने कहा है कि उसने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया है.
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस के चेयर प्रो. अरुण कुमार सरकार को सबसे पहले पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी करने की ज़रूरत है. ईंधन के दाम अधिक होने पर दूसरे उत्पाद महंगे हो जाते हैं. सरकार चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए उन लोगों पर टैक्स लगा सकती है, जिनकी संपत्ति हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है. कॉरपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ाकर प्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ाया जा सकता
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंधन निदेशक क्रिस्टिलीना जॉर्जीवा ने कहा कि भारत की प्राथमिकता सबसे कमज़ोर लोगों की सुरक्षा करने, उन्हें सहायता देने और छोटे तथा मझोले उद्योगों की रक्षा करने की होनी चाहिए, ताकि एक देश के रूप में उनकी इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार न हो.
संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल व सामाजिक कल्याण सेवाओं की गति बढ़ाने के लिए सरकारों ने सख़्ती कम की है, जिसका फायदा अपराधी उठा रहे हैं.
अब जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं, तब ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि भूख और रोजी-रोटी की समस्या ख़त्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है.
जब सरकार ने दोबारा विमान सेवाएं शुरू कीं, तब एक केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और क्वारंटीन सेंटर में रखने जैसी बातें व्यावहारिक नहीं लगतीं. हैरानी वाली बात है कि जो बात विमान के यात्रियों के लिए व्यावहारिक नहीं लग रही, वो मज़दूरों के लिए अति आवश्यक कैसे बन गई थी.
लैंसेट के अध्ययन के अनुसार कोविड का मातृत्व मृत्यु और बाल मृत्यु दर पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. इसके अनुसार भारत में छह महीनों में 3 लाख बच्चों की कुपोषण और बीमारियों से 14 हज़ार से अधिक महिलाओं की प्रसव पूर्व या इसके दौरान मृत्यु हो सकती है. हालांकि वित्तमंत्री द्वारा घोषित 20.97 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर पैकेज में कुपोषण और मातृत्व हक़ के लिए एक रुपये का भी आवंटन नहीं किया गया है.
कोविड-19 संकट के मद्देनज़र कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मौजूदा सरकार के पास कोई समाधान नहीं होना चिंता की बात है, लेकिन उनके मन में ग़रीबों और कमज़ोर वर्गों के प्रति करुणा न होना हृदयविदारक है.
वीडियो: कोरोना महामारी के संक्रमण के मामले रोज़ाना बढ़ रहे हैं. इस मुद्दे पर राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.