उत्तराखंड में भू-क़ानून सख़्त करने का शिगूफ़ा और सुलगते सवाल!

हाल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भू-क़ानून में सख़्ती लाने का बयान खोखला और सियासी जुमलेबाज़ी से ज़्यादा कुछ नहीं लगता. राज्य में बाहरी लोगों की आबादी बढ़ने के पीछे असली मकसद केवल एक ख़ास धर्म विशेष यानी मुस्लिम आबादी के बढ़ने को राजनीतिक मुद्दा बनाना ही है, ताकि इस बहाने वोट मिलता रहे और सत्ता बनी रहे.

देवभूमि में ‘लैंड जिहाद’ को पनपने नहीं देंगे, अवैध मज़ारों को ध्वस्त करेंगे: उत्तराखंड सीएम

अवैध मज़ारों को ध्वस्त करने की बात कहते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ये नया उत्तराखंड है, यहां अतिक्रमण करना तो दूर इसके बारे में अब कोई सोचे भी ना. साथ ही उन्होंने कहा कि वह कुछ ही महीनों के बाद प्रदेश में समान नागरिक संहिता का क़ानून भी लागू करेंगे.

जोशीमठ के पास बद्रीनाथ राजमार्ग पर दरारें नज़र आ रही हैं: अधिकारी

उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तारीखों की घोषणा के साथ ही जेपी और मारवाड़ी के बीच जोशीमठ के पास बद्रीनाथ राजमार्ग के साथ सड़क के एक हिस्से पर दरारें पाई गई हैं. चमोली के डीएम ने बताया कि सीमा सड़क संगठन को दरारों का परीक्षण करने और सुरक्षात्मक उपाय करने के निर्देश दिए गए हैं.

जोशीमठ: दलित समुदाय ने राहत कार्य में भेदभाव का आरोप लगाया, जांच शुरू

जोशीमठ शहर में भूमि धंसाव से प्रभावित लोगों के लिए चल रहे राहत कार्य के बीच अनुसूचित जाति के कुछ रहवासियों ने जाति के कारण उपेक्षा किए जाने की शिकायत की है. उत्तराखंड राज्य अनुसूचित जाति आयोग का कहना है कि वे इसकी जांच करेंगे और आरोप सही पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.

जोशीमठ: इमारतें ढहाए जाने के बीच सीएम बोले- शहर के 65-70% लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जोशीमठ की स्थिति को लेकर परेशान होने की ज़रूरत नहीं है और देश के दूसरे हिस्सों में बैठे लोगों को इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जोशीमठ में 65-70 फीसदी लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं. पड़ोसी पर्यटन स्थल औली में भी सब कुछ सामान्य है. पर्यटक अभी भी औली आ रहे हैं.

उत्तराखंड: ग्रामीणों का दावा- जोशीमठ जैसे हालात की राह पर सेलंग गांव

जोशीमठ से क़रीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों को कहना है कि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण इसके लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके अनुसार, गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.

उत्तराखंड: जोशीमठ से 82 किमी. दूर कर्णप्रयाग में भी सड़कों और घरों की दीवारों पर दरारें

उत्तराखंड के चमोली ज़िले के जोशीमठ में भू-धंसाव और घरों में दरारों की ख़बरों के बीच इसी ज़िले के कर्णप्रयाग से भी ऐसी ही चिंताजनक तस्वीरें सामने आई हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि वे क़रीब दशक भर से अपने घरों की दीवारों में दरारों की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार और प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया, अब मकान रहने लायक नहीं बचे हैं.

बार-बार की चेतावनियों पर सरकार की उदासीनता जोशीमठ संकट की जड़: पर्यावरणविद

चिपको आंदोलन संबद्ध रहे रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जोशीमठ में गुप्त ख़तरों की चेतावनी दो दशक पहले राज्य सरकार को दी गई थी. एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा, जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं.

जोशीमठ संकट: 46 साल पहले गठित समिति ने भौगोलिक स्थिति, निर्माण कार्यों को लेकर चिंता जताई थी

भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए गठित एक समिति ने 7 मई, 1976 को अपनी रिपोर्ट में भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि और पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. अब स्थानीयों ने मौजूदा स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया है.

उत्तराखंड: जोशीमठ भूस्खलन-धंसाव क्षेत्र घोषित, 60 से अधिक परिवारों को निकाला गया

एक अधिकारी ने बताया कि जोशीमठ की लगभग 610 इमारतों में बड़ी दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने लायक नहीं रह गई हैं. प्रभावित इमारतों की संख्या बढ़ सकती है. स्थानीय लोग इमारतों की ख़तरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.

उत्तराखंड: आपदा के कगार पर जोशीमठ; निर्माण परियोजनाओं से घरों में दरारें पड़ीं, लोगों में आक्रोश

उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में एनटीपीसी जैसी बड़ी निर्माण परियोजनाओं के कारण इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ भारी आक्रोश है. लोगों का आरोप है कि नवंबर 2021 में ही ज़मीन धंसने को लेकर प्रशासन को आगाह किया गया था, लेकिन इसके समाधान के लिए सरकार द्वारा एक साल से अधिक समय तक कोई क़दम नहीं उठाया गया.

उत्तराखंड में धर्मांतरण रोधी सख़्त क़ानून को राज्यपाल ने मंज़ूरी दी

धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को बीते 30 नवंबर को उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित किया गया था. इसमें ग़ैर-कानूनी धर्मांतरण को संज्ञेय और ग़ैर-जमानती अपराध बनाने के लिए अधिकतम 10 साल के कारावास की सज़ा का प्रावधान है.

उत्तराखंड: समान नागरिक संहिता मुद्दे पर गठित समिति का कार्यकाल छह महीने बढ़ा

उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बीते मई महीने में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के उद्देश्य से समिति का गठन किया था. इसे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक़, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.

उत्तराखंड विधानसभा में सख़्त प्रावधान वाला धर्मांतरण रोधी संशोधन ​विधेयक पारित

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022 में जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान किया गया है. अपराध करने वाले को अब कम से कम पांच लाख रुपये की मुआवज़ा राशि का भुगतान भी करना पड़ सकता है, जो पीड़ित को दी जाएगी.

उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने धर्मांतरण रोधी क़ानून को और कड़ा बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया गया कि 2018 में बनाए गए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम को वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों के मद्देनज़र और अधिक सशक्त बनाने की ज़रूरत है. परिणामस्वरूप जबरन धर्मांतरण के लिए अब 10 साल क़ैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है.