अगर पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार कोई क़ानून लाना चाहती है तो उसके बारे में आम जनता को पहले से तफ़्सील से क्यों नहीं बताया जाता कि उत्तराखंड के लिए इसके क्या फ़ायदे होंगे.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रशासन ने विश्वविद्यालय से संबद्ध जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के सहायक प्रोफेसर जितेंद्र कुमार को हिंदू पौराणिक कथाओं में ‘बलात्कार’ से संबंधित उदाहरण देकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में निलंबित कर दिया है. इसके अलावा उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई है.
अगर शिक्षा को हम ‘मन की किवाड़ों के खुलने’, सृजनात्मकता को नई उड़ान देने की प्रक्रिया के तौर पर देखें तो धर्म उसकी बिल्कुल विपरीत प्रक्रिया की मिसाल के तौर पर सामने आता है, जहां स्वतंत्र विचार को नकारने पर ही ज़ोर रहता है. और जब आप किसी पाठ्यक्रम में धार्मिक ग्रंथ का पढ़ना अनिवार्य कर देते हैं, तब एक तरह से शिक्षा के बुनियादी उद्देश्य को ही नकारते हैं.
'हाउ इंडियंस व्यू जेंडर रोल्स इन फैमिलीज़ एंड सोसाइटी' नाम की इस रिपोर्ट को नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच 29,999 भारतीय वयस्कों पर किए गए सर्वेक्षण के बाद प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा तैयार किया गया है. इसके अनुसार भारतीय राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं को देखने के इच्छुक हैं लेकिन घर और रोज़गार में लैंगिक असमानता का रवैया दिखाई देता है.
पुलिस ने बताया कि गुड़गांव के सेक्टर-45 में रमाडा होटल के पास बिहार निवासी अब्दुर्रहमान और उनके दोस्त मोहम्मद आज़म को दो व्यक्तियों ने कथित तौर मोबाइल फोन छीनने के बाद पीटा और उनके धर्म को लेकर अपशब्द कहे. हमलावरों से उन्हें सुअर का मांस खिलाने की बात भी कही और सफेद पाउडर खाने को मजबूर किया.
हिंदुओं में अभी उदारता का ज्वार उमड़ पड़ा है, प्रगतिशीलता का भी. वे औरतों को हर परदे, हर बंधन से आज़ाद देखना चाहते हैं. वे कट्टरता के ख़िलाफ़ लड़ना चाहते हैं. लेकिन यह सब वे मुसलमान औरतों के लिए करना चाहते हैं. क्योंकि हिंदू औरतों को तो न कट्टरता और न धर्म के किसी बंधन का कभी शिकार होना होता है!
संत कवियों की लंबी परंपरा में एक रविदास ही ऐसे हैं जो श्रम को ईश्वर बताकर ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं, जो भारतीय संविधान के समता, स्वतंत्रता, न्याय व बंधुत्व पर आधारित अवधारणा के अनुरूप है.
कर्नाटक में जो भगवाधारी युवकों-युवतियों की हिंसक और नफ़रतबुझी भीड़ दिख रही है, उसे क्षणिक मानकर निश्चिंत हो जाना ख़तरनाक है. जो इन्हें इकट्ठा कर रहे हैं, वे इन्हें बस एक मौक़े के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे.
वीडियो: क्या केंद्र या राज्य सरकारें किसी धर्म के प्रचार के लिए नागरिकों पर कर लगा सकती हैं? क्या सरकारें लोगों का पैसा धर्म के काम पर ख़र्च कर सकती हैं और इस पर संविधान क्या कहता है? क्या धर्म की शिक्षा उस संस्थान ने दी जा सकती है जो सरकारी ख़र्चे पर चलता है? इन सब पर विस्तार से बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
सरस्वती को विद्या की देवी कहकर हिंदुओं तक सीमित न रखने की अपील की जाती है. धर्म को संस्कृति का चोला ओढ़ाकर दूसरे धर्मावलंबियों को उसे मानने को बाध्य किया जाता है. ऐसे ही आशय से प्रेमचंद ने लिखा था कि सांप्रदायिकता को अपने असली रूप में निकलने में शर्म आती है, इसलिए वह संस्कृति की खाल ओढ़कर बाहर निकलती है.
उडुपी ज़िले में हिजाब विवाद के बीच कुंडापुर के दो जूनियर कॉलेज के छात्रों के एक समूह ने परिसरों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर भगवा शॉल पहनकर जुलूस निकाला. वहीं, राज्य सरकार ने ऐसे कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया, जो स्कूल-कॉलेजों में समानता और लोक व्यवस्था को बिगाड़ते हैं.
कांग्रेस, टीएमसी, वामपंथी दलों, राजद, एनसीपी और बसपा ने तर्क दिया कि संविधान नागरिकों को उनके धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है. राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि बाधा हिजाब नहीं है बल्कि इसका विरोध कर रहे लोगों की मानसिकता है.
अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने ग्लोबल काउंटर टेररिज़्म काउंसिल द्वारा आयोजित कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि क्रिश्चियनफोबिया, इस्लामोफोबिया, यहूदी फोबिया की तरह ही हिंदूफोबिया को भी पहचानने की ज़रूरत है ताकि ऐसे मामलों पर चर्चा के लिए संतुलन लाया जा सके.
विभाजन या इतिहास के किसी भी कांटेदार खंडहर में फंसे जिस्मों को भूलकर, अगर सत्ताधारियों के लिबास में नज़र आने वाले सितम-ज़रीफ़ ख़ुदाओं के जाल को नहीं तोड़ा गया तो मरने वाले की ज़बान पर भी ख़ुदा का नाम होगा और मारने वाले की ज़बान पर भी ख़ुदा का नाम होगा.