एनसीईआरटी की किताबों से नाम न हटाने को लेकर योगेंद्र यादव, सुहास पलशिकर ने मुक़दमे की चेतावनी दी

योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने एनसीईआरटी निदेशक को लिखे पत्र में कहा कि वे दोनों नहीं चाहते कि एनसीईआरटी 'उनके नामों के पीछे छिप जाए... और छात्रों को राजनीति विज्ञान की ऐसी किताबें दे जो उन्हें राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से अक्षम्य और शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त लगती हैं.'

सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से उनका नाम पाठ्यपुस्तकों से हटाने को कहा

शिक्षाविद सुहास पलशिकर और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से इसकी राजनीति विज्ञान की टेक्स्टबुक से उनका नाम बतौर ‘मुख्य सलाहकार’ हटाने को कहा है. उनका कहना है कि ‘युक्तिसंगत’ बनाने के नाम पर लगातार सामग्री हटाने से 'विकृत' हुई किताबों से नाम जुड़ा देखना उनके लिए शर्मिंदगी का सबब है.

जीव विज्ञान पाठ्यक्रम से एवोल्यूशन को हटाना इस विषय को रटंत विद्या बनाने का रास्ता है

क्रमिक विकास (एवोल्यूशन) जीव विज्ञान की धुरी है और डार्विनवाद इसे समझने की बुनियाद. इन्हें स्कूल के पाठ्यक्रम से निकालना विज्ञान की कक्षा के इकोसिस्टम को बिगाड़ना है.

डार्विन और क्रमागत उन्नति को पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

क्रमागत उन्नति का सिद्धांत या थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन जीव विज्ञान को देखने का एक अनिवार्य लेंस है. इस विषय को समझने के लिए क्रमागत उन्नति को समझना बेहद ज़रूरी है.

दुनिया में ‘डीएनए डे’ क्यों मनाया जाता है?

विशेष: जैसे एक इमारत को खड़ा करने से पहले एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है, उसी प्रकार एक कोशिका कैसा रूप लेगी या कैसे काम करेगी- यह उसके अंदर का डीएनए ही निर्धारित करता है. इस डीएनए की खोज को आज सत्तर साल पूरे हो गए हैं.

विज्ञान की किताबों से जैविक विकास का सिद्धांत हटाए जाने पर वैज्ञानिकों, शिक्षकों ने चिंता जताई

एनसीईआरटी ने दसवीं की विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से चार्ल्स डार्विन, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समेत जैविक विकास (एवोल्यूशन) संबंधी सामग्री को हटाया है. इसे वापस सिलेबस में शामिल करने की मांग करते हुए 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षकों ने कहा कि वे विज्ञान की स्कूली शिक्षा में किए 'इस तरह के ख़तरनाक बदलावों' से असहमत हैं.

बैक्टीरिया ने एंटीबायोटिक से लड़ना कैसे सीखा?

प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के एक पहलू- क्रमागत उन्नति के वेग को लेकर डार्विन निश्चित नहीं थे. उनके मुताबिक़ यह बहुत ही धीमी प्रक्रिया थी और बदलाव देखने के लिए एक मानव जीवन शायद छोटा पड़ जाता. पर आज हम जानते हैं कि यह असंभव नहीं है. बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक से लड़ने की शक्ति का आना इसका एक उदाहरण है.

राम मंदिर प्रोजेक्ट में वैज्ञानिकों के जुड़ने का संबंध विज्ञान से नहीं सत्ता से है

सरकार द्वारा अयोध्या के राम मंदिर के लिए एक जटिल संरचना बनाने को लेकर वैज्ञानिकों को जोड़ने के बारे में नाराज़ होने की वजहें हैं, लेकिन काम करने की स्वतंत्रता और फंडिंग से जुड़े सवाल इससे बड़े हैं.

होमोसेपियन इस दुनिया में कैसे आए

हम सब कौन हैं और कहांं से आए हैं- यह एक महत्वपूर्ण सवाल है - न सिर्फ डीएनए को समझ औषधि में विकास लाने के लिए, पर अपना अतीत और अस्तित्व जानने के लिए भी. लेकिन क्या हम असल में जान पाए हैं कि मनुष्य प्रजाति कहांं से आई.

नेहरू: वो प्रधानमंत्री, जिन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित भारत का सपना देखा

जन्मदिन विशेष: नेहरू विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में स्थापित अनेक संस्थाओं को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहा करते थे. वे मूलत: धार्मिक न होने के बावजूद अक्सर धार्मिक परिभाषाओं का उपयोग कर आधुनिकता का पथ प्रशस्त करते थे, इसीलिए नेहरू ने ‘मंदिर’ इन्हीं को बनाया था.

आखिर कैसे शुरू हुई थी धरती पर जीवन की कहानी…

एक अनुमान के अनुसार कहा जाता है कि धरती की उम्र साढ़े चार सौ करोड़ साल है, लेकिन यहां जीवन की शुरुआत कैसे, कितने समय में हुई और कहां से हुई, इसकी भी कई कहानियां हैं.

कर्नाटक: एनईपी के तहत मिड-डे मील से अंडे-मीट बाहर रखने, मनुस्मृति पढ़ाने का प्रस्ताव

कर्नाटक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा दिए गए पोजीशन पेपर में कहा गया है कि मिड-डे मील में अंडे और मांस के नियमित सेवन से स्कूली बच्चों में जीवनशैली संबंधी विकार पैदा हो सकते हैं. एक समिति के प्रस्ताव में पाइथागोरस प्रमेय को 'फ़र्ज़ी' बताते हुए कहा गया है कि न्यूटन के सिर पर सेब गिरने की 'अप्रमाणिक' बात प्रोपगैंडा है.

आईआईटी खड़गपुर द्वारा जारी नए साल के कैलेंडर को लेकर क्यों हो रहा है विवाद

आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम द्वारा हाल ही में जारी साल 2022 के एक कैलेंडर में आर्यों के हमले की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो ग़लत है. इसे लेकर जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं.

पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता सेनानियों के ग़लत चित्रण को सुधारा जाना चाहिए: संसदीय समिति

‘स्कूल की पाठ्यपुस्तकों की सामग्री और डिज़ाइन में सुधार’ विषय पर स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई ऐतिहासिक शख़्सियतों और स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधियों के रूप में ग़लत तरीके से चित्रित किया गया है, इसे ठीक किया जाना चाहिए और उन्हें हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उचित सम्मान दिया जाना चाहिए.

सरकार का टीका उत्सव मनाना जल्दबाज़ी, 100 करोड़ का लक्ष्य बहुत पहले पा लेना चाहिए था: टिस प्रोफेसर

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टिस) के प्रोफेसर आर. रामकुमार ने कोविड-19 टीके का 100 करोड़ डोज़ के लक्ष्य प्राप्ति को ‘भारतीय विज्ञान की जीत’ बताते हुए प्रधानमंत्री के ट्वीट की भी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि देश में 88 फ़ीसदी टीका कोविशील्ड का लगाया गया है, जो कि एक ब्रिटिश वैक्सीन है. टीकाकरण की धीमी रफ़्तार और टीके की कमी के चलते इस साल के आख़िर तक सभी वयस्कों को दोनों डोज़ लगाने का सरकार का लक्ष्य भी

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