क्यों लापरवाही और उपेक्षा का शिकार बना उर्दू का प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान ‘मकतबा जामिया’

दिल्ली-6 के उर्दू बाज़ार में स्थित उर्दू के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान 'मकतबा जामिया' की शाखा बीते दिनों बंद हो गई.

इरतिज़ा निशात: सुनते हैं वही असल में शायर है… मशहूर बहुत है कहीं गुमनाम बहुत है

स्मृति शेष: इरतिज़ा निशात नहीं रहे. बे-ज़बानों की शायरी करने वाले इस शायर ने ख़ुशहाली से ज़्यादा संघर्ष के दिन गुज़ारे और एक तरह की गुमनामी ओढ़कर दुनिया से चले गए. अब शायद इनको सच्ची श्रद्धांजलि यही हो कि इनकी शायरी किसी तरह उर्दू-हिंदी के पाठकों तक पहुंचे.

‘मेरी हर तहरीर मौत की एक किताब है’

वीडियो: कथाकार ख़ालिद जावेद को उनके उर्दू उपन्यास ‘नेमत-ख़ाना’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘द पैराडाइज़ ऑफ फूड’ के लिए वर्ष 2022  के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. उनके जीवन, शिक्षा और लेखन के बारे में उनसे फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.

नया वर्ष हमारे लिए वैचारिक धुंध से शुरू हुआ है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नया वर्ष इस संदेह से शुरू हुआ कि शायद हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जिसमें नए विचार होना बंद हो गया है. लोकतंत्र के रूप में हमारी नियति अब भीषण संदेह के घेरे में है. राजनीति नागरिकों के बस में नहीं रही है- उनकी नागरिकता सिर्फ़ मतदान में बदल चुकी है.

जोश मलीहाबादी: काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब, मेरा नारा इंक़लाब ओ इंक़लाब…

जन्मदिन विशेष: हर बड़े शायर की तरह जोश मलीहाबादी को लेकर विवाद भी हैं और सवाल भी, लेकिन इस कारण यह तो नहीं ही होना चाहिए था कि आलोचना अपना यह पहला कर्तव्य ही भूल जाए कि वह किसी शायर की शायरी को उसकी शख़्सियत और समय व काल की पृष्ठभूमि में पूरी ईमानदारी से जांचे.

इस्मत चुग़ताई: बुरी बातें करने वाली भली औरत

वीडियो: यूं तो इस्मत चुग़ताई को उर्दू साहित्यकार माना जाता है, लेकिन उनका पाठक और प्रशंसक वर्ग हिंदी में भी उतना ही बड़ा है. उर्दू के जिन चार प्रगतिशील साहित्यकारों में उनका नाम शामिल है, उन्होंने समूचे भारतीय साहित्य को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाई. उनकी याद के बहाने स्त्री मन को टटोलने की कोशिश.

रोहज़िन: इंसानी रूहों की आंतरिक व्यथा और बरसों से ठहरी उदासी की कहन…

पुस्तक समीक्षा: लेखक रहमान अब्बास के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उर्दू उपन्यास 'रोहज़िन' का अंग्रेज़ी तर्जुमा कुछ समय पहले ही प्रकाशित हुआ है. यह उपन्यास किसी भी दृष्टि से टाइप्ड नहीं है. यह लेखक के अनुभव और कल्पना का सुंदर मिश्रण है, जिसे पढ़ते हुए पाठक एक साथ यथार्थ और अतियथार्थ के दो ध्रुवों में झूलता रहता है.

गोपी चंद नारंग का जाना उर्दू अदब की साझी विरासत के प्रतीक का जाना है…

स्मृति शेष: बीते दिनों प्रसिद्ध आलोचक, भाषाविद और उर्दू भाषा व साहित्य के विद्वान डॉ. गोपी चंद नारंग नहीं रहे. ऐसे समय में जब उर्दू भाषा को धर्म विशेष से जोड़कर उसकी समृद्ध साझी विरासत को भुला देने की कोशिशें लगातार हो रही हैं, डॉ. नारंग का समग्र कृतित्व एक भगीरथ प्रयास के रूप में सामने आता है.

लता मंगेशकर: उर्दू साहित्य में दर्ज उस ‘आवाज़’ की तस्वीर कैसी दिखती है

स्मृति शेष: उर्दू साहित्य में लता मंगेशकर सांस्कृतिक विविधता और संदर्भों के बीच कई बार ऐसे नज़र आती हैं जैसे वो सिर्फ़ आवाज़ न हों बल्कि बौद्धिकता का स्तर भी हों.

रशीद जहां: उर्दू अदब की बाग़ी आवाज़…

जन्मदिन विशेष: 20वीं सदी में भारतीय नारीवाद के शैशवकाल में रशीद जहां न केवल स्त्रियों के विषय में विचार कर सकने वाली उभरती आवाज़ बनीं, बल्कि आने वाले समय के नारीवादी साहित्य के लिए उन्होंने ब्लूप्रिंट तैयार किया. उनका जीवन संक्षिप्त था, रचनाएं कम हैं, पर उनका प्रभाव युगांतरकारी है.

इस्मत चुग़ताई: परंपराओं से सवाल करने वाली ‘बोल्ड’ लेखक

इस्मत कहा करती थीं, 'मैं रशीद जहां के किसी भी बात को बेझिझक, खुले अंदाज़ में बोलने की नकल करना चाहती थी. वो कहती थीं कि तुम जैसा भी अनुभव करो, उसके लिए शर्मिंदगी महसूस करने की ज़रूरत नहीं है, और उस अनुभव को ज़ाहिर करने में तो और भी नहीं है क्योंकि हमारे दिल हमारे होंठों से ज़्यादा पाक़ हैं...'

मशहूर उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन का निधन

व्यंग्य लेखन के लिए चर्चित मुज्तबा हुसैन ने दर्जनों किताबें लिखी थीं, जो विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. उर्दू साहित्य में योगदान के लिए साल 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान पाने वाले वे पहले उर्दू व्यंग्यकार थे.

नागरिकता क़ानून के विरोध में उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन लौटाएंगे पद्म सम्मान

83 साल के मुज्तबा हुसैन ने कहा कि हमारा लोकतंत्र बिखर रहा है. अब कोई सिस्टम नहीं है, किसी को सुबह सात बजे शपथ दिलाई जा रही है, सरकारें रात में बन रही हैं. देश भर में डर का माहौल है.

फ़हमीदा रियाज़: ख़ामोश हुई महिला अधिकारों की हिमायती आवाज़

फ़हमीदा रियाज़ को पाकिस्तान के साहित्यिक हलकों में महिला अधिकारों की सबसे साहसी पैरोकार माना जाता था, जिन्होंने कलम चलाते वक्त किसी सरहद, किसी बंधन को नहीं माना.