हर बार चुनावों से पहले मीडिया के मैनेजमेंट से छनकर बढ़ती ग़रीबी, ग़ैर-बराबरी, बेरोज़गारी व महंगाई वगैरह के कारण सरकारों के प्रति आक्रोश व असंतोष की जो बातें सामने आ जाती हैं, क्या वे सही नहीं हैं? मतदाताओं की सरकारों से इस 'संतुष्टि' को कैसे देखा जाए?
भारत में रिकॉर्ड तापमान के पूर्वानुमानों के बीच लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. केंद्रीय चुनाव आयोग ने ‘टास्क फोर्स’ का गठन किया है और जानकार कहने लगे हैं कि क्लाइमेट प्रभावों को देखते हुए चुनाव के समय में बदलाव किया जा सकता है.
ऐसा कई चुनावों के बाद दिखाई दे रहा है कि विपक्षी गठबंधन के मुद्दे आम लोगों तक पहुंचे हैं और उनका असर भी पड़ रहा है.
हर राजनीतिक दल जनता को जागरूक करना चाहता है. लेकिन अगर ‘पब्लिक’ सब जानती है तो उसे जागरूक करने की आवश्यकता ही क्यों हो?
वीडियो: देश के विमर्श में अब मतदाता शब्द कम प्रचलित है और इसकी जगह 'लाभार्थी' ने ले ली है. क्या यह बदलाव देश के नागरिकों के लिए ख़ुश होने की वजह है या उनके अधिकारों के लिए ख़तरा? पब्लिक पॉलिसी विशेषज्ञ यामिनी अय्यर से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.
आम चुनावों के दौरान जब हमारा देश, ख़ासकर हिंदी प्रदेश कठिन रास्ते से गुज़र रहा है, प्रस्तुत है हिंदी कविता में जनतंत्र की गौरवपूर्ण उपस्थिति की याद दिलाते इस स्तंभ की दूसरी क़िस्त.
जिस वक़्त हमारा चुनावी लोकतंत्र पूरे देश, ख़ासकर हिंदी प्रदेश में कठिन रास्ते से गुज़र रहा है, प्रस्तुत है यह नया स्तंभ जो हिंदी कविता में लोकतंत्र की गौरवपूर्ण उपस्थिति की याद दिलाता है.
चुनावी बॉन्ड के ज़रिये राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में सड़क, खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बड़ी कंपनियों का शामिल होना दिखाता है कि भले चंदे की राशि राजनीतिक दलों को मिल रही है, लेकिन इनकी क़ीमत आम आदिवासी और मेहनतकश वर्ग को चुकानी पड़ रही है, जिसके संसाधनों को राजनीतिक वर्ग ने चंदे के बदले इन कंपनियों के हाथों में कर दिया.
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने चुनाव घोषणापत्रों में वादे करने का अधिकार है और मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि क्या ये असली हैं और इनकी फंडिंग कैसी होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में एक चुनावी रैली में मतदाताओं से कहा है कि वे ‘कमल’ के बटन को ऐसे दबाएं जैसे कि कांग्रेस को मौत की सज़ा दे रहे हों. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति वोट के ज़रिये फांसी देने की बात कैसे कर सकता है? पार्टी ने चुनाव आयोग से कार्रवाई का आग्रह किया.
वीडियो: लोकसभा और विधानसभा एक साथ चुनाव करवाने की संभावनाओं को लेकर सरकार ने एक समिति बनाई है, जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं. हालांकि, इसे लेकर जिस तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. वे व्यवहारिकता की कसौटी पर सही नहीं उतरते.
गुजरात में 1,000 से अधिक कॉरपोरेट घरानों ने चुनाव आयोग के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो ‘अपने कर्मचारियों की चुनावी भागीदारी की निगरानी करेंगे और अपनी वेबसाइटों या कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर ऐसे कर्मचारियों का नाम प्रकाशित करेंगे, जो छुट्टी लेने के बाद भी मतदान नहीं करते हैं.
भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह द्वारा साल 2014 लोकसभा चुनावों के चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा न करने के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज करने के अनुरोध को खारिज़ करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल का चुनावी घोषणा पत्र, उसकी नीति, विचार, वादे का वक्तव्य होता है, जिसे क़ानून के ज़रिये लागू नहीं कराया जा सकता.
आजकल जिस भाषा में सत्ताधारी नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं, वो दिखाता है कि हम लोकतंत्रिक प्रणाली के लायक विकसित ही नहीं हुए हैं. क्योंकि दुनिया का कोई भी सभ्य व लोकतांत्रिक राष्ट्र ऐसी भाषा को स्वीकार नहीं कर सकता है, जो समाज में नफ़रत और हिंसा के उत्प्रेरक के तौर पर काम करे.
ट्विटर ने एक बयान में कहा कि ट्विटर के क़दम न केवल उच्च मतदान सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने में भी सहायता करेंगे कि मतदाता पूरे चुनाव चक्र में शामिल हों और इस दौरान उनके पास पूरी जानकारी रहे. माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ‘कू’ ऐप ने भी कहा कि उसने विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया के निष्पक्ष उपयोग के लिए ‘स्वैच्छिक आचार संहिता’ अपनाई है.