कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी में पिछले लगभग पचास वर्षों से साहित्य को राजनीतिक-सामाजिक संदर्भों में पढ़ने-समझने की प्रथा लगभग रूढ़ हो गई है. ये संदर्भ साहित्य को समझने में सहायक होते हैं पर साहित्य को उन्हीं तक महदूद करना साहित्य की समग्रता से दूर जाना है.
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन सहित अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों ने बड़ी संख्या में लेखकों, पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स को बिना मुक़दमे के लंबे समय तक क़ैद में रखने की आलोचना की और कहा कि ऐसे कारावास को भारतीय संसद द्वारा पारित ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम में संशोधन के माध्यम से विधायी समर्थन दिया गया है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज अगर साहित्य और कलाएं निर्भयता का परिसर नहीं हैं, अगर वे निर्भय नहीं करतीं तो यह उनका नैतिक और सभ्यतामूलक कदाचरण होगा. भय के आगे आत्मसमर्पण करना भारतीय प्रश्नवाची परंपरा, लोकतंत्र और साहित्य-कलाओं की सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ विश्वासघात के बराबर होगा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेहरू युग में संस्कृति और राजनीति, सारे तनावों और मोहभंग के बावजूद, सहचर थे जबकि आज संस्कृति को राजनीति रौंदने, अपदस्थ करने में व्यस्त है. बहुलता, असहमति आदि के बारे में सांस्कृतिक निरक्षरता का प्रसार हो रहा है. व्यंग्य-विनोद-कटूक्ति-कॉमेडी पर लगातार आपत्ति की जा रही है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विचारधारा से प्रतिबद्ध वही लेखक बड़े या महान हुए जिन्होंने अपने साहित्य में अपनी ही विचारधारा का अतिक्रमण करने का दुस्साहस किया, कह सकते हैं, अपने साहित्य-विचार के पक्ष में. यह अतिक्रमण न विरोध होता है, न ही विचलन. शमशेर और मुक्तिबोध ऐसे अतिक्रमण के उजले उदाहरण हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अमृतकाल में बुद्धि अभद्र शब्द बन गया है. बुद्धिजीवियों का लगभग रोज़ अपमान किया जाता है. अपनी बुद्धिहीनता को नेता आभूषण की तरह पहनकर रौब जमाते हैं. राजनीति में बुद्धि नहीं तिकड़म और हिकमत से सब काम चल रहा है. मधु लिमये इसके बरक़स, एक बुद्धिशील राजनीतिज्ञ थे.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इसमें संदेह नहीं कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में बिल्कुल निहत्थे चल रहे हैं, उनकी रक्षा के लिए कमांडो तैनात हैं पर वे वेध्य हैं. बड़ी बात यह है कि वे निडर हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विडंबना मनुष्य मात्र की स्थिति का अनिवार्य अंग है, कोई समाज विडंबनाओं में फंसा हो, तो यह अस्वाभाविक नहीं है. हिंदी के सिलसिले में कहूं, तो इस अंचल में जैसे-जैसे शिक्षा, साक्षरता का प्रसार हुआ है वैसे-वैसे उसमें सांप्रदायिकता, धर्मांधता, जातिमूलक कट्टरता भी साथ-साथ बढ़ती गई.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: स्वतंत्रता-संघर्ष का एक ऐसा उपक्रम है जो कभी समाप्त नहीं होता. सामान्य रूप से देखें, तो इस समय हमारी राजनीतिक स्वतंत्रता को कोई गंभीर ख़तरा नहीं है. ख़तरा बौद्धिक-सर्जनात्मक-वैचारिक और नागरिक स्वतंत्रता को है और हर दिन बढ़ता ही जा रहा है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम निस्संदेह अधिकता के समय में जी रहे हैं. चीज़ें बहुत अधिक हो गई हैं और उनके दाम भी. महंगाई बढ़ रही है, विषमता भी. हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि में बढ़ोतरी हुई है. पुलिस द्वारा जेल में डाले गए और सुनवाई न होने के मामले भी बढ़े हैं. न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के प्रति भक्ति और आसक्ति बढ़ी है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जो ख़ुद षड्यंत्र करता है वह यह मानकर चलता है कि जो उसके साथ नहीं है या उससे असहमत है वह भी षड्यंत्र कर रहा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय शैक्षणिक परिषद ने पिछले महीने बीए के अंग्रेज़ी ऑनर्स पाठ्यक्रम में बदलावों को मंज़ूरी देते हुए महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ सहित दो दलित महिला लेखकों बामा और सुकीरथरिणी की कृतियों को हटा दिया था. इन्हें पाठ्यक्रम में वापस शामिल करने की मांग के साथ 1,150 से अधिक शिक्षाविदों, लेखकों और संगठनों ने संयुक्त बयान जारी किया है.
पंजाबी कथाकार गुरदयाल सिंह की कहानियां राजधानियों से कहीं दूर घटती हैं, पर राजधानी में लिए गए निर्णयों का आम खेतिहर मज़दूरों की ज़िंदगी पर कैसा असर पड़ता है, ये उनके लिखे में दिखता है. आज दिल्ली की सीमाओं पर नौ महीनों से बैठे किसान सिंह के आधी सदी पहले लिखे शब्दों को जीते नज़र आते हैं.
द वायर सहित एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने सिलसिलेवार रिपोर्ट्स में बताया है कि देश के केंद्रीय मंत्रियों, 40 से ज़्यादा पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, एक मौजूदा जज, कई कारोबारियों व कार्यकर्ताओं समेत 300 से अधिक भारतीय फोन नंबर उस लीक डेटाबेस में थे, जिनकी पेगासस से हैकिंग हुई या वे संभावित निशाने पर थे.
देशभर के 115 से अधिक लेखकों-पत्रकारों-कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों ने बिहार चुनाव से पहले मतदाताओं से अपील की है कि वे विकास का ढोल पीटने और नफ़रत फैलाने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ जनता और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की पक्षधर शक्तियों को समर्थन दें.