मणिपुर हिंसा को सरकार प्रायोजित बताने वाली फैक्ट-फाइंडिंग टीम पर एफआईआर समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर/pixabay)

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मणिपुर हिंसा के संबंध में राज्य का दौरा करने वाली एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम द्वारा हिंसा को ‘सरकार प्रायोजित’ बताए जाने के बाद इसके सदस्यों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, 28 जून से 1 जुलाई के बीच नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन की फैक्ट-फाइंडिंग टीम की तीन सदस्यों- एनी राजा, निशा सिद्धू और दीक्षा द्विवेदी के ख़िलाफ़ शिकायत एल. लिबेन सिंह नामक व्यक्ति की शिकायत पर राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, उकसाने और मानहानि से संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया गया है. तीनों महिलाओं ने 2 जुलाई को एक संवाददाता सम्मलेन में हालिया संघर्ष को ‘सरकार-प्रायोजित हिंसा’ करार देते हुए कहा था कि झड़पें ‘सांप्रदायिक हिंसा नहीं हैं और न ही यह महज दो समुदायों के बीच की लड़ाई है. इसमें भूमि, संसाधनों और कट्टरपंथियों एवं उग्रवादियों की उपस्थिति के प्रश्न शामिल हैं. सरकार ने अपने छिपे हुए कॉरपोरेट समर्थक एजेंडा को साकार करने के लिए चतुराई से रणनीति अपनाई, जिसके कारण मौजूदा संकट खड़ा हुआ है.’

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के कामकाज पर नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है. रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार की सुनवाई में कोर्ट ने उपराज्यपाल और केंद्र को सुनवाई में पक्षकार बनाने के लिए नोटिस जारी किया. अब 17 जुलाई को केस की सुनवाई होगी. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने अध्यादेश को अदालत में चुनौती देते हुए कहा कि यह संविधान के खिलाफ है और एलजी को एक चुनी हुई सरकार को पछाड़कर ‘सुपर सीएम के रूप में काम करने’ में सक्षम बनाता है.

भारतीय सेना ने पूर्व सैनिकों को सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने को लेकर पेंशन रोकने और पुलिस केस किए जाने की चेतावनी दी है. द ट्रिब्यून के अनुसार, सेना की तरफ से पूर्व सैनिकों को उन मुद्दों, जिन्हें ‘झूठा’ माना गया है और जो वैमनस्य पैदा करने और सैन्य बलों की छवि खराब करने की क्षमता रखते हैं, के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट करने पर पेंशन भुगतान न करने और पुलिस केस करने सहित दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है. अतिरिक्त महानिदेशक, अनुशासन और सतर्कता (एडजुटेंट जनरल के कार्यालय के तहत) द्वारा मई में सभी सेना कमांडों को भेजे गए एक पत्र में यह दावा किया गया है कि सोशल मीडिया पर इस्तेमाल भाषा ‘ज्यादातर घृणित, दुर्भावनापूर्ण और संभावित रूप से बगावती’ है. साथ ही, ये पोस्ट भ्रामक हैं और ‘जनता की मानसिकता को प्रभावित करते हैं.’

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय मूल के अकादमिक अशोक स्वैन की विदेशी नागरिकता का दर्जा (ओसीआई कार्ड) रद्द करने के केंद्र सरकार के आदेश को रद्द कर दिया. बार एंड बेंच के मुताबिक, सरकार ने दावा किया था कि स्वीडन में प्रोफेसर अशोक स्वैन ‘उन गतिविधियों में शामिल थे जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की सुरक्षा, किसी भी विदेशी देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए हानिकारक हैं’ लेकिन इसका कोई कारण नहीं बताया गया था. हाईकोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने सरकार के वकील से कहा कि यह शायद ही कोई आदेश है. इसमें कोई कारण नहीं बताया गया है. शायद ही इस मामले को लेकर कोई दिमाग लगाया गया है. कोर्ट ने सरकार को ‘नागरिकता अधिनियम की धारा 7 (डी) (ई) के तहत इसकी शक्ति का प्रयोग करने का कारण बताते हुए एक विस्तृत आदेश पारित करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है.

मेघालय और मिजोरम के बाद अरुणाचल प्रदेश में भी भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का विरोध करने की बात कही है. एनडीटीवी के अनुसार, एनपीपी की अरुणाचल इकाई ने राज्य की विविध बहुजातीय और बहु-आदिवासी संरचना के साथ-साथ इसकी मजबूत प्रथागत और पारंपरिक पहचान का हवाला देते हुए यूसीसी के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया है. एनपीपी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष लिखा साया ने कहा कि एनपीपी विकासात्मक मुद्दों पर भाजपा के साथ गठबंधन में है, लेकिन क्षेत्रीय पार्टी अपनी विचारधारा का पालन करती है.

कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व प्रमुख एमएस गोलवलकर पर एक विवादास्पद पोस्ट सोशल मीडिया पर साझा करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है.  न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पोस्ट में कहा गया है​ कि गोलवलकर दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को समान अधिकार देने के ख़िलाफ़ थे. ट्वीट को लेकर मुख्यमंत्री समेत कई भाजपा नेताओं द्वारा सिंह पर निशाना साधने के बीच पहली एफआईआर स्थानीय वकील और आरएसएस कार्यकर्ता राजेश जोशी की शिकायत पर इंदौर में दर्ज की गई, जबकि दूसरी एफआईआर राजगढ़ जिले के आरएसएस कार्यकर्ता हरिचरण तिवारी की शिकायत पर हुई है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर राज्यपाल आरएन रवि को हटाने की मांग की है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, स्टालिन ने पत्र में राज्यपाल आरएन रवि पर तमिल संस्कृति को ‘बदनाम’ करने, ‘सस्ती राजनीति’ में शामिल होने और ‘सांप्रदायिक नफ़रत’ भड़काने का आरोप  लगाते हुए कहा कि वे राज्यपाल पद के योग्य नहीं हैं. स्टालिन ने जोड़ा कि पदभार संभालने के बाद से वह ‘लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित डीएमके सरकार के साथ वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष’ में शामिल रहे हैं. फाइलों के अलावा वे विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक देरी कर रहे हैं और राज्य सरकार व विधानसभा के काम में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं.

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