टीवी न्यूज़ चैनलों को बेहतर अनुशासन की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली एनबीडीए की याचिका सुन रही है, जिसमें टीवी चैनलों के स्व-नियमन के अप्रभावी होने के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चैनलों के लिए स्व-नियामक तंत्र सख़्त होना चाहिए, साथ ही उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए. 

(फोटो: द वायर)

शीर्ष अदालत बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली एनबीडीए की याचिका सुन रही है, जिसमें टीवी चैनलों के स्व-नियमन के अप्रभावी होने के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चैनलों के लिए स्व-नियामक तंत्र सख़्त होना चाहिए, साथ ही उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: भारत के शीर्ष अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए टीवी समाचार चैनलों के बीच सख्त सेल्फ रेगुलेशन (स्व-नियमन) का आह्वान किया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) से गलती करने वाले चैनलों से निपटने के लिए तंत्र को मजबूत करने के तरीके सुझाने को कहा.

एनबीए ने उस फैसले के खिलाफ अपील की थी जिसमें समाचार चैनल संघों द्वारा अपनाए गए स्व-नियामक तंत्र (self-regulatory mechanism) को कानूनी दर्जा देने से इनकार कर दिया गया था. अदालत ने एनबीए और एनबीएफ को अपने दिशानिर्देश प्रस्तुत करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया. इस अवधि के बाद मामले की दोबारा सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सख्त स्व-नियामक तंत्र के तहत टीवी समाचार चैनलों के बीच बेहतर अनुशासन होना चाहिए, साथ ही उनके बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने दो प्रतिनिधि निकायों – न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) से गलती करने वाले चैनलों से निपटने के लिए तंत्र को मजबूत करने के तरीके सुझाने को कहा और मामले को चार सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया.

पीठ ने कहा, ‘विनियमन का पहला स्तर प्रसारकों द्वारा स्व-नियमन है. हम पहले स्तर को ही मजबूत करना चाहते हैं जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत उनके स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करता है और अनुशासन लाता है.’

यह आदेश एनबीए, जिसे अब न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) कहा जाता है, द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय के 18 जनवरी, 2021 के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए दायर एक याचिका पर आया, जिसने समाचार चैनल संघों द्वारा स्वयं को विनियमित करने के लिए अपनाए गए स्व-नियामक तंत्र को कानूनी मान्यता से इनकार कर दिया था.

एनबीए के पास एक नियामक पर्यवेक्षक है जिसे न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीएसए) कहा जाता है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश करते हैं, यह पिछले 14 वर्षों से कार्य कर रहा है. हालांकि, सभी चैनल एनबीए का हिस्सा नहीं हैं और प्राधिकरण उल्लंघन पर केवल 1 लाख रुपये का मामूली जुर्माना लगा सकता है, जिसे शीर्ष अदालत ने अप्रभावी पाया था.

सोमवार को जब मामला सुनवाई के लिए आया, एनबीए का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने अदालत को सूचित किया कि उन्हें संशोधित दिशानिर्देश सुझाने के लिए चार सप्ताह का समय चाहिए क्योंकि एनबीएसए के वर्तमान अध्यक्ष, पूर्व न्यायाधीश एके सीकरी और सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरवी रवींद्रन, जो पहले इसके प्रमुख थे, के साथ बातचीत अभी भी जारी है.

चूंकि अदालत समय देने को तैयार थी, प्रतिद्वंद्वी संघ एनबीएफ ने अदालत को बताया कि एनबीए की इस मामले में कोई कानूनी स्थिति नहीं है क्योंकि वे सरकार के साथ पंजीकृत नहीं हैं.

एनबीएफ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा, ‘हम उनके द्वारा लाए गए किसी भी दिशानिर्देश से बंधे नहीं हो सकते. आधे समाचार प्रसारक हमारे साथ हैं. जब वे पंजीकृत नहीं हैं तो वे विनियमन की मांग कैसे कर सकते हैं?’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए केंद्र ने पिछले सप्ताह याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दायर की, जिसमें कहा गया कि 2021 में पेश किए गए केबल टेलीविजन नेटवर्क (सीटीएन) संशोधन नियमों के तहत प्रसारकों के सभी स्व-नियामक निकायों को सरकार के साथ पंजीकृत होना चाहिए.

मेहता ने कहा कि एनबीएसए ने पंजीकरण करने से इनकार कर दिया है, जबकि एनबीएफ का स्व-नियामक निकाय, जिसे प्रोफेशनल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (पीएनबीएसए) कहा जाता है, पंजीकृत है और टीवी समाचार चैनलों के लिए एकमात्र वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त स्व-नियामक निकाय है.

पीठ ने इस बहस में शामिल होने से इनकार कर दिया कि दोनों प्रतिद्वंद्वियों में से किसे मान्यता प्राप्त है. इसमें कहा गया है, ‘हम चाहते हैं कि स्व-नियामक दिशानिर्देशों को कड़ा किया जाना चाहिए. हम नहीं चाहते कि यह मुद्दा प्रतिद्वंद्वी विचारधाराओं के शोरगुल में खो जाए.’

अदालत ने एनबीएफ को चार सप्ताह में अपने दिशानिर्देश प्रस्तुत करने की अनुमति दी. पीठ ने कहा, ‘इस अदालत के पूर्व न्यायाधीश इस मुद्दे को देख रहे हैं. वे अच्छा करेंगे. हम प्रतिद्वंद्वी संगठनों को भी उनका तंत्र हमारे सामने रखने की अनुमति देंगे.’

जेठमलानी ने अदालत को सूचित किया कि एनबीएफ नियम बना रहा है और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एएम खानविलकर के साथ बातचीत कर रहा है.

दातार ने अदालत को बताया कि 2021 सीटीएन नियमों के तहत पंजीकरण के लिए कम से कम 40 समाचार प्रसारकों की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘एनबीएफ ने केबल ऑपरेटरों को शामिल कर लिया है और यहां तक कि पूर्व सीजेआई जेएस खेहर को अपने स्व-नियामक निकाय का नेतृत्व करने का दावा भी किया है, लेकिन जस्टिस खेहर का कहना है कि उनका उनसे कोई लेना-देना नहीं है.’

सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा दायर एक हलफनामे का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि वर्तमान में समाचार चैनलों को विनियमित करने पर कोई कानूनी वैक्यूम (legal vacuum) नहीं है और एक त्रिस्तरीय तंत्र है. पहले स्तर पर प्रसारकों द्वारा स्व-नियमन होता है, उसके बाद समाचार प्रसारकों द्वारा बनाए गए अधिकारियों द्वारा स्व-नियमन होता है और अंत में केंद्र द्वारा निरीक्षण होता है जो टीवी चैनलों के खिलाफ शिकायतों को संभालने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति की बात करता है.

मंत्रालय की अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग नीति दिशानिर्देशों के तहत 394 टीवी समाचार चैनल पंजीकृत या लाइसेंस प्राप्त हैं. एनबीए या एनबीडीए के 394 समाचार चैनलों में से 71 सदस्य हैं, जबकि एनबीएफ 46 प्रसारकों को सदस्य मानता है.

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