एनसीईआरटी ने छठी कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब से जाति और वर्ण व्यवस्था का उल्लेख हटाया

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी)ने छठी कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब 'एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉन्ड' में जाति व्यवस्था का उल्लेख किए बिना वेदों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जबकि पुरानी किताब में उल्लेख था कि महिलाओं और शूद्रों को वेदों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी.

(फोटो साभार: schools.olympiadsuccess.com)

नई दिल्ली: कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से जाति या वर्ण को हटाने का काम अब संस्थागत हो गया है. कोविड-19 व्यवधानों का हवाला देते हुए पाठ्यक्रम को कम करने के बहाने जो प्रयास किया गया था, उसे अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा शुक्रवार को जारी की गई नई पाठ्यपुस्तक में औपचारिक रूप दिया गया है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में जारी की गई पहली सामाजिक विज्ञान की पुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉन्ड’ में जाति व्यवस्था का उल्लेख किए बिना वेदों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, और इसका भी उल्लेख नहीं किया गया है कि महिलाओं और शूद्रों को इन ग्रंथों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी.

‘इंडियाज कल्चरल रूट्स (भारत की सांस्कृतिक जड़ें)’ नामक अध्याय में वेदों, उनके संदेशों और बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन है. इसमें भरत, पुरु, कुरु, यदु और तुर्वश जैसे विभिन्न जनों या कुलों का उल्लेख है.

हालांकि, यह सामाजिक पदानुक्रम को प्रतिबिंबित नहीं करता है, जबकि कई विद्वान जाति या वर्ण व्यवस्था को वेदों से जोड़ते हैं. इसमें वैदिक ग्रंथों में वर्णित विभिन्न व्यवसायों के बारे में सिर्फ़ एक वाक्य लिखा है. इसमें कहा गया है, ‘वैदिक ग्रंथों में कई व्यवसायों का उल्लेख है, जैसे कि कृषक, बुनकर, कुम्हार, निर्माता, बढ़ई, चिकित्सक, नर्तक, नाई, पुजारी आदि.’

अध्याय में अनुष्ठानों को करने के बारे में भी विवरण दिया गया है. इसमें कहा गया है कि वैदिक अवधारणाओं पर आधारित उपनिषदों ने पुनर्जन्म और कर्म, क्रिया या उनके परिणामों की शुरुआत की. इसमें कहा गया है, ‘एक विचारधारा के अनुसार, जिसे आम तौर पर ‘वेदांत’ के रूप में जाना जाता है, सब कुछ – मानव जीवन, प्रकृति और ब्रह्मांड – एक दिव्य सार है जिसे ब्रह्म कहा जाता है.’

इसमें कहा गया है कि पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में वेदों से कई और विचारधाराएं विकसित हुईं. उनमें से एक योग था, जिसने व्यक्ति की चेतना में ब्रह्म की प्राप्ति के उद्देश्य से विधियां विकसित कीं. साथ में ये विचारधाराएं – आज जिसे हम ‘हिंदू धर्म’ कहते हैं, उसकी नींव बन गईं.

अध्याय में उपनिषदों से श्वेतकेतु और वास्तविकता के बीज तथा नचिकेता और उनकी खोज और गार्गी तथा याज्ञवल्क्य की बहस जैसी कहानियां भी दी गई हैं.

2002 में पाठ्यक्रम को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया से पहले पुरानी पाठ्यपुस्तक ‘हमारा अतीत-I (Our Pasts -I)’ में जाति व्यवस्था का विवरण था.

पुरानी किताब में कहा गया था, ‘कुछ पुजारियों ने लोगों को वर्ण नामक चार समूहों में विभाजित किया…शूद्र कोई भी अनुष्ठान नहीं कर सकते थे. अक्सर महिलाओं को शूद्रों के साथ वर्गीकृत किया जाता था. महिलाओं और शूद्रों दोनों को वेदों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी.’

पुरानी किताब में कहा गया था, ‘पुजारियों ने यह भी कहा कि ये समूह जन्म के आधार पर तय किए गए थे. उदाहरण के लिए अगर किसी के पिता और माता ब्राह्मण थे तो वह स्वतः ही ब्राह्मण बन जाएगा और इसी तरह अन्य जातियां.’

गौरतलब है कि 2014 के बाद से एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में ये चौथी बार संशोधन हुआ है. इससे पहले 2017 में एनसीईआरटी ने ‘हाल की घटनाओं को प्रतिबिंबित करने की जरूरत’ का हवाला देते हुए पाठ्यक्रम संशोधित किया था.

2018 में संस्था ने ‘पाठ्यक्रम के बोझ’ को कम करने के लिए संशोधन शुरू किया था और फिर तीन साल से भी कम समय के बाद छात्रों को कोविड-19 के कारण सीखने में आई रुकावटों से उबरने में मदद करने का हवाला देते हुए पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए थे.

एनसीईआरटी ने पिछले साल मई महीने में कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की थी. इससे पहले एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों से कुछ हिस्सों को हटाने को लेकर विवाद के बीच भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के लोकप्रिय किसान आंदोलन से संबंधित हिस्से को भी हटा दिया था.

आंदोलन का उल्लेख कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में ‘राइज़ ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स’ नामक अध्याय में किया गया था.  हटाए गए हिस्से में बताया गया था कि यूनियन 80 के दशक के किसान आंदोलन में अग्रणी संगठनों में से एक था.

इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के संदर्भ और उसी पाठ्यपुस्तक के अध्याय 10 में उल्लिखित जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी वह शर्त हटा दी गई है, जिसमें इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्त बनाए रखने की बात कही गई थी.

इस कड़ी में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगलों और 2002 के गुजरात दंगों पर सामग्री को हटाना और महात्मा गांधी पर कुछ अंश हटाया जाना शामिल है.

2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.

इससे पहले कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.

वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.