नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 सितंबर) को नगालैंड के 13 नागरिकों की हत्या मामले में 30 सैन्यकर्मियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को बंद कर दी है. ये मामला 2021 में नगालैंड के मोन जिले में असफल आतंकवाद विरोधी अभियान से जुड़ा हुआ है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर केंद्र सरकार सैन्यकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देती है, तभी मामले को आगे ले जाया जा सकता है.
मालूम हो कि शीर्ष अदालत का ये आदेश सैन्यकर्मियों की पत्नियों की ओर से दायर याचिकाओं के बाद आया है, जिन्होंने राज्य सरकार द्वारा आपराधिक कार्यवाही शुरू करने को सशस्त्र बल विशेष शक्तियों की धारा 6 का उल्लंघन बताते हुए इस पर सवाल उठाया था.
सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (आफस्पा), 1958 के तहत सैन्य कर्मियों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही शुरू करने के लिए पहले राज्य सरकार को केंद्र से मंजूरी लेने की जरूरत होती है. इस मामले में केंद्र ने 28 फरवरी, 2023 को इन सैन्यकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने तीन सैन्यकर्मियों की पत्नी- रबीना घले, तुलसी देवी और अंजलि गुप्ता द्वारा दायर याचिकाओं को इस आफस्पा अधिनियम के आधार पर अनुमति दी. पीठ ने कहा, ‘इस मामले में दर्ज एफआईआर में कार्यवाही बंद रहेगी. हालांकि, यदि मंजूरी दी जाती है, तो इसे तार्किक निष्कर्ष तक ले जाया जा सकता है. अनुशासनात्मक कार्रवाई के बारे में हमने कहा है कि सशस्त्र बल आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं.’
पीठ ने मामले में आपराधिक कार्यवाई रद्द करने का आदेश देते हुए कहा, ‘आफस्पा अधिनियम, 1958 की धारा 6 में निहित विशिष्ट रोक के मद्देनजर पूर्व मंजूरी के अलावा कोई मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है.’
ज्ञात हो कि जुलाई 2022 में अपने एक अंतरिम आदेश में शीर्ष अदालत ने सैन्यकर्मियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और अपीलों को खारिज करने के लिए नगालैंड सरकार की आपत्तियों की जांच करने का निर्णय लिया था. इस बीच एक और घटनाक्रम में राज्य सरकार ने केंद्र के इनकार करने वाले फैसले को शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर कर चुनौती दी थी.
राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
गौरतलब है कि चार दिसंबर, 2021 को मोन जिले के तिरु-ओटिंग क्षेत्र में गोलीबारी की दो घटनाएं हुईं थी. पहली घटना शाम के करीब 4:26 बजे हुई, जिसमें छह लोग मारे गए थे. दूसरी घटना कुछ घंटों बाद रात करीब 9:55 बजे हुई, जिसमें सात ग्रामीण मारे गए थे.
द वायर ने उस महीने की शुरुआत में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे मामले की जांच कर रही एसआईटी को पता चला था कि सेना के टीम कमांडर ने जान-बूझकर इस तथ्य को दबाया कि टीम कम से कम 50 मिनटों के लिए गलत दिशा में चली गई थी. यह निष्कर्ष नगालैंड सरकार द्वारा फायरिंग और उसके बाद हुईं मौतों की जांच के लिए गठित एसआईटी द्वारा की गई छह महीने लंबी जांच के लिए मुख्य था.
मालूम हो कि नगालैंड पुलिस ने मामले में मेजर रैंक के एक अधिकारी सहित ‘21 पैरा स्पेशल फोर्स’ के 30 कर्मचारियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था.
पुलिस ने बताया था कि जांच में सामने आया कि मेजर रैंक के एक अधिकारी के नेतृत्व में 31 कर्मचारियों वाली 21 पैरा स्पेशल फोर्स की अल्फा टीम ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) (युंग आंग) (एनएससीएन-के (वाईए) और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) कैडर के एक समूह की क्षेत्र में मौजूदगी के बारे में खुफिया सूचना के आधार पर तीन दिसंबर, 2021 को ओटिंग तिरु क्षेत्र में एक अभियान शुरू किया था.
चार दिसंबर, 2021 को अपराह्न लगभग 4:20 बजे अपर तिरु और ओटिंग गांव के बीच लोंगखाओ में घात लगाकर वहां मौजूद 21 पैरा स्पेशल फोर्स की ऑपरेशन टीम ने सफेद बोलेरो पिकअप वाहन पर गोलियां चला दीं, जिसमें ओटिंग गांव के आठ आम आदमी सवार थे. इनमें से ज्यादातर तिरु में कोयला खदानों में मजदूर के रूप में काम करते थे. उन्होंने इन लोगों की न तो सही पहचान सुनिश्चित की थी और न ही हमले से पहले उन्हें कोई चुनौती दी थी.
पुलिस डीजीपी ने कहा था कि जांच से पता चला है कि ओटिंग और तिरु के ग्रामीण जब लापता ग्रामीणों की तलाश में घटनास्थल पर पहुंचे और रात करीब आठ बजे बोलेरो पिकअप वाहन मिला तो वे शव मिलने पर हिंसक हो गए और और 21 पैरा स्पेशल फोर्स के जवानों तथा ग्रामीणों के बीच हाथापाई शुरू हो गई, जिसमें एक पैराट्रूपर की मौत हो गई थी और हाथापाई के परिणामस्वरूप 21 पैरा स्पेशल फोर्स टीम के 14 कर्मचारियों को चोटें आईं. इसके चलते मेजर ने रात करीब 10 बजे गोली चलाने का आदेश दिया था. दूसरी घटना में विशेष बल की गोलियों से सात ग्रामीणों की मौत हो गई थी.