कोबरापोस्ट स्टिंग पर देश के प्रमुख अख़बारों की कवरेज कुछ ऐसी रही

मीडिया की कोबरापोस्ट स्टिंग पर कवरेज दिखाती है कि जब ख़ुद मीडिया पर सवाल उठते हैं, तब वह उसे कैसे रिपोर्ट करता है.

/
(फोटो साभार: Pexels)

मीडिया की कोबरापोस्ट स्टिंग पर कवरेज दिखाती है कि जब ख़ुद मीडिया पर सवाल उठते हैं, तब वह उसे कैसे रिपोर्ट करता है.

Newspapers pexels-photo
फोटो साभार: Pexels

 

 

 

 

 

 

 

 

ऊपर की यह जगह ख़ाली छोड़ने के लिए माफ़ी, लेकिन देश के प्रमुख अख़बारों द्वारा कोबरापोस्ट के स्टिंग पर ओढ़ी गई चुप्पी की शक्ल यही है. देश के किसी भी प्रमुख अख़बार ने मीडिया से जुड़े इस खुलासे पर एक शब्द भी नहीं लिखा.

कोबरापोस्ट ने 25 मई को देश के करीब दो दर्जन से ज्यादा मीडिया संस्थानों पर किए गए स्टिंग ऑपरेशन 136 का दूसरा हिस्सा रिलीज़ किया. इस स्टिंग ऑपरेशन में इन प्रमुख मीडिया संस्थानों के बड़े अधिकारी और मालिक पैसे के एवज में एक सांप्रदायिक राजनीतिक अभियान को विज्ञापन (कुछ मामलों में संपादकीय) की शक्ल में चलाने को राजी होते नजर आते हैं. दिलचस्प बात यह है कि यहां ‘क्लाइंट’ साफ़ कह रहा है कि उसका उद्देश्य मीडिया के जरिये ध्रुवीकरण करने का है, इस पर भी मीडिया के ये कर्ता-धर्ता आर्थिक लाभ के बदले पत्रकारिता का सौदा करने को बेताब दिखते हैं.

इस पड़ताल को 26 मई की तारीख में देश के प्रमुख अख़बारों में जगह न मिलना कई सवाल खड़े करता है.

कोबरापोस्ट की इस तहकीकात पर द वायर  की कवरेज के लिए यहां क्लिक करें.

 

§

कोबरापोस्ट की पूरी पड़ताल यहां पढ़ी जा सकती है.