प्रचार प्रक्रिया में बदलाव चुनाव प्रक्रिया बदलना है, पर क्या चुनाव आयोग को ऐसा करने का हक़ है

चुनाव आयोग का इलेक्ट्राॅनिक व डिजिटल प्रचार पर निर्भरता को विकल्पहीन बनाना न्यायसंगत नहीं है. दूर-दराज़ के कई क्षेत्रों में अब भी बिजली व इंटरनेट का ठीक से पहुंचना बाकी है, ऐसी जगहों के वंचित तबके के मतदाताओं के पास इतना डेटा कैसे होगा कि वे हर पार्टी के नेता के चुनावी भाषण सुन सके? क्या कोरोना के ख़तरे की आड़ में ऐसे सवालों की अनसुनी की जा सकती है?

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को क्या चुनावी ‘इवेंट’ में बदला जा रहा है

सुरक्षा में चूक को लेकर ख़ुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी जिस तरह उसी क्षण से इस घटना को सनसनीखेज़ बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने में लग गए हैं, उससे ज़ाहिर है कि वे घटना की गंभीरता को लेकर कम और उससे मुमकिन चुनावी फायदे के बारे में ज़्यादा गंभीर हैं.

क्या राम के नाम पर अयोध्या कॉरपोरेटी विकास की मिसाल बनती जा रही है…

राम मंदिर क्षेत्र के पास रसूख़दारों द्वारा ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख़्त के गोरखधंधे में घिरी अयोध्या की एक चिंता यह भी है कि सत्ता समर्थित मूल्यहीन भव्यता के हवाले होती-होती वह राम के लायक भी रह पाएगी या नहीं?

बेअदबी के नाम पर मॉब लिंचिंग: धार्मिक कट्टरताएं बेकाबू हो जाएं, तो गिरावट की कोई सीमा नहीं रहती

सभ्य, लोकतांत्रिक और आधुनिक समाजों में मॉब लिंचिग जैसी बर्बरताओं की कोई जगह नहीं है- धर्मग्रंथों व प्रतीकों की बेअदबी के नाम पर भी नहीं.

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी: वो क्रांतिकारी, जिन्हें विश्वास था कि उनकी शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी…

पुण्यतिथि विशेष: अगस्त 1925 में अंग्रेज़ों का ख़ज़ाना लूटने वाले क्रांतिकारियों में से एक राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भी थे. 1927 में इंसाफ़ के सारे तक़ाज़ों को धता बताते हुए अंग्रेज़ों ने उन्हें तयशुदा दिन से दो रोज़ पहले इसलिए फांसी दे दी थी कि उन्हें डर था कि गोंडा की जेल में बंद लाहिड़ी को उनके क्रांतिकारी साथी छुड़ा ले जाएंगे.

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का क़ानूनी पटाक्षेप अंत नहीं महज़ शुरुआत था…

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद जिन सदाशयी लोगों को लगता था कि इसके बहाने होने वाले सांप्रदायिक विद्वेष की बला अब उनके सिर से हमेशा के लिए टल जाएगी, उसका राजनीतिक दुरुपयोग बंद हो जाएगा, देश-प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्व उनकी भोली उम्मीदों पर पानी फेरने को तैयार है.

मुनव्वर फ़ारूक़ी के साथ खड़े होना कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्षधरों का कर्तव्य है

‘हिंदुत्ववादी’ संगठनों की अतीत की अलोकतांत्रिक करतूतों के चलते उनकी कार्रवाइयां अब किसी को नहीं चौंकातीं. लेकिन एक नया ट्रेंड यह है कि जब भी वे किसी कलाकार के पीछे पड़ते हैं, तब लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाली सरकारें, किसी भी पार्टी या विचारधारा की हों, कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में नहीं खड़ी होतीं, न ही उन्हें संरक्षण देती हैं.

कांग्रेस की समस्या सलमान ख़ुर्शीद या मनीष तिवारी की किताबें नहीं आंतरिक लोकतंत्र है

कोई नहीं कह सकता कि नेता के तौर पर मनीष तिवारी या सलमान ख़ुर्शीद की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है या उसे पूरा करने के लिए वे किताब लिखने समेत जो करते हैं, उसे लेकर आलोचना नहीं की जानी चाहिए. लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के नेताओं के रूप में उन्हें अपने विचारों को रखने की इतनी भी आज़ादी नहीं है कि वे लेखक के बतौर पार्टी लाइन के ज़रा-सा भी पार जा सकें?

कंगना ने जो कहा वो उनका विचार है या वो महज़ ज़रिया हैं

कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हज़ार भुजाएं और हज़ार-हज़ार मुंह हैं. इन 'हज़ार-हज़ार मुंहों' में भाजपा सांसद वरुण गांधी को छोड़ दें तो कंगना के मामले पर चुप्पी को लेकर गज़ब की सर्वानुमति है. फिर इस नतीजे तक क्यों नहीं पहुंचा जा सकता कि कंगना का मुंह भी उन हज़ार मुंहों में ही शामिल है?

जिन्ना के ‘महिमामंडन’ के सवाल पर भाजपा के खाने के दांत और हैं, दिखाने के और

अगर जिन्ना, जो कम से कम 1937 तक देश के साझा स्वतंत्रता संघर्ष का हिस्सा थे, की प्रशंसा करना अपराध है तो हमारे निकटवर्ती अतीत में भाजपा के कई बड़े नेता ऐसे अपराध कर चुके हैं.

अयोध्या: अवध विश्वविद्यालय में हुए सरकारी कार्यक्रम पर एबीवीपी के नाराज़ होने की क्या वजह है

बीते शनिवार को अयोध्या में डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की मौजूदगी वाले कार्यक्रम को लेकर संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में छात्रों ने रोष जताते हुए ऑडिटोरियम के सामने प्रदर्शन किया. छात्रों का कहना था कि राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए उनकी पढ़ाई नहीं रोकी जानी चाहिए.

फ़ैज़ाबाद का नाम मिटने से क्या शहर की तक़दीर भी बदल जाएगी…

फ़ैज़ाबाद ज़िले को अयोध्या का नाम देने के बाद अब उसके रेलवे स्टेशन को अयोध्या कैंट करने वाली योगी सरकार को कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब भी देने चाहिए, मसलन अयोध्या ज़िले की प्रति व्यक्ति आय क्या है? क्या अयोध्या की सरकार प्रायोजित जगर-मगर उसकी ग़रीबी का विकल्प हो सकती है? विकास के नाम पर लोगों को दरबदर करने वाली सरकारी योजनाएं इस ग़रीबी को घटाएंगी या बढ़ाएंगी?

धर्मों से जुड़ी कट्टरताओं के कितने भी रूप हों, वे एक दूजे की पूरक ही होती हैं

जिस तरह भ्रष्टाचारियों को अपना भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार नहीं लगता, उसी तरह कट्टरपंथियों को अपनी कट्टरता कट्टरता नहीं लगती. वे ‘दूसरी’ कट्टरताओं को कोसते हुए भी अपनी कट्टरताओं के लिए जगह बनाते रहते हैं और इस तरह दूसरी कट्टरताओं की राह भी हमवार करते रहते हैं.

विभिन्न मानवाधिकार उल्लंघनों के बीच आयोग के अध्यक्ष द्वारा सरकार की तारीफ़ के क्या मायने हैं

जिस राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को देशवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा करने, साथ ही उल्लंघन पर नज़र रखने के लिए गठित किया गया था, वह अपने स्थापना दिवस पर भी उनके उल्लंघन के विरुद्ध मुखर होने वालों पर बरसने से परहेज़ न कर पाए, तो इसके सिवा और क्या कहा जा सकता है कि अब मवेशियों के बजाय उन्हें रोकने के लिए लगाई गई बाड़ ही खेत खाने लगी है?

मार्टिना नवरातिलोवा की चुटकी देश के ‘नायकों’ की अंतरराष्ट्रीय ‘प्रतिष्ठा’ की बानगी है

गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'तानाशाह' होने के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा कि देश में उनसे ज़्यादा लोकतांत्रिक नेता हुआ ही नहीं है, जिस पर अमेरिका की प्रख्यात टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा ने चुटकी ली थी. 

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