कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मुक्तिबोध ने आज से लगभग छह दशक पहले जो भारतीय यथार्थ अपनी कविता में विन्यस्त किया था, वह अपने ब्यौरों तक में आज का यथार्थ लगता है.
प्रतिभा के कारण अवसर मिलते हैं. यह वाक्य ग़लत है. यह कहना सही है कि अवसर मिलने से प्रतिभा उभरती है. सदियों से जिन्होंने सारे अवसर अपने लिए सुरक्षित रखे, अपनी प्रतिभा को नैसर्गिक मानने लगे हैं. वे नई-नई तिकड़में ईजाद करते हैं कि जनतंत्र के चलते जो उनसे कुछ अवसर ले लिए गए, वापस उनके पास चले जाएं.
अखिलेश यादव का कहना सही है कि अब भाजपा हर हाल में जीतने के लिए चुनावों में लोकतंत्र को ही हराने पर उतर आती है. लेकिन इसी के साथ बेहतर होगा कि वे समझें कि उनकी व पार्टी की अपील का विस्तार किए बिना वे उसे यह सब करने से कतई नहीं रोक सकते.
संविधान की मूल संरचना का आधार समानता है. आज तक जितने संवैधानिक संशोधन किए गए हैं, वे समाज में किसी न किसी कारण से व्याप्त असमानता और विभेद को दूर करने वाले हैं. पहली बार ऐसा संशोधन लाया गया है जो पहले से असमानता के शिकार लोगों को किसी राजकीय योजना से बाहर रखता है.
जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...
गोदी मीडिया भाजपा का महासचिव-सा बन गया है. पूरा गोदी मीडिया पार्टी में बदल चुका है. गोदी मीडिया के बाहर मीडिया बहुत कम बचा है. इसलिए कई लोग पत्रकारिता छोड़कर पार्टियों का काम कर रहे हैं. आईटी सेल और सर्वे में करिअर बना रहे हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेपाल में हमारी अपनी सभ्यता के कुछ सुंदर रूप अब भी बचे हैं और हमें इस जीवित संरक्षण के लिए उसका कृतज्ञ होना चाहिए.
उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत में इस समय विज्ञान की लगातार उपेक्षा और अवज्ञा हो रही है. इस क़दर कि वैज्ञानिक-बोध को दबाया जा रहा है. यह ज्ञान मात्र की अवमानना का समय है: बुद्धि, तर्क, तथ्य, संवाद, असहमति आदि सभी हाशिये पर फेंके जा रहे हैं.
कई जानकार कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के नोट-राग ने ज़रूरी मुद्दों व जवाबदेहियों से देशवासियों का ध्यान भटकाकर लाभ उठाने में भाजपा की बड़ी मदद की है. ये जानकार सही सिद्ध हुए तो केजरीवाल की पार्टी की हालत ‘माया मिली न राम’ वाली भी हो सकती है.
ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री होना ब्रिटेन के लिए अवश्य गौरव का क्षण है क्योंकि इससे यह मालूम होता है कि ‘बाहरी’ के साथ मित्रता में उसने काफ़ी तरक्की की है. इसमें हिंदू धर्म या उसके अनुयायियों का कोई ख़ास कमाल नहीं है. यह कहना कि ब्रिटेन को भी हिंदू धर्म का लोहा मानना पड़ा, हीनता ग्रंथि की अभिव्यक्ति ही है.
वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘गो-बारस’ के मौक़े पर पूजा के आयोजन में कर्मचारियों को सपरिवार उपस्थित रहने को कहा गया. आए दिन ऐसे आयोजन कई विश्वविद्यालयों के कैलेंडर का हिस्सा बनते जा रहे हैं और ऐसा करते हुए विश्वविद्यालय अपनी अवधारणा, सिद्धांत और कर्तव्य से बहुत दूर हो रहे हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विनीत गिल की किताब निर्मल जीवन और लेखन का सूक्ष्म-सजग-संवेदनशील पाठ है. हर बखान या विवेचन, हर खोज या स्थापना के लिए प्राथमिक और निर्णायक साक्ष्य उनका लेखन है.
हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में पाखंड के अभ्यास के कारण ही हम मध्य प्रदेश की अधकचरी भाषा वाली मेडिकल किताबों का स्वागत करने को तैयार हैं क्योंकि हमें मालूम है कि इसका कोई असर हम पर नहीं पड़ेगा. जिन पर पड़ेगा उनसे हमारी कोई सहानुभूति है नहीं.
भारत में अदालतों में न्याय अब अपवाद बनता जा रहा है. ख़ासकर जब न्याय मांगने वाले मुसलमान हों या मोदी सरकार के आलोचक या विरोधी हों.