गांधी की ज़रूरत

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: गांधी-विचार अब तक, सारे हमलों और लांछनों-अपमानों के बावजूद, मौजूद है, प्रेरक हैं और उसका हमारे समय के लिए पुराविष्कार संभव है. भारत में अपार साधनों से अनेक दुष्प्रवृत्तियां पोसी जा रही हैं, गांधी उनका स्थायी और मजबूत प्रतिरोध हैं.

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: विश्वविद्यालयों के कुलपति बहुसंख्यकवादी अधिनायकवाद के लठैत हो गए हैं

ग़ैरत निहायत ही ग़ैरज़रूरी और अनुपयोगी चीज़ है. इसके बिना इंसान बने रहना भले मुश्किल हो, ग़ैरत के साथ कुलपति बने रहना असंभव है. जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति समय-समय पर इस बात की तसदीक़ करते रहते हैं. 

भारत के विचार पर व्यापक और समावेशी विचार-विमर्श, संवाद की जगह कहां है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारी सभ्यता आरंभ से ही प्रश्नवाचक रही है और उसकी प्रश्नवाचकता-असहमति-वाद-विवाद, संवाद का भारत में पुनर्वास करने की ज़रूरत है. इस समय जो धार्मिक और बौद्धिक, राजनीतिक और बाज़ारू ठगी हमें दिग्भ्रमित कर रही है, उससे अलग कोई रास्ता कौन तलाश करेगा यह हमारे समय का एक यक्षप्रश्न है.

‘रामचरितमानस’ की आलोचना पर विवाद व्यर्थ है

‘रामचरितमानस’ की जो आलोचना बिहार के शिक्षा मंत्री ने की है वह कोई नई नहीं और न ही उसमें किसी प्रकार की कोई ग़लती है. उन पर हमलावर होकर तथाकथित हिंदू समाज अपनी ही परंपरा और उदारता को अपमानित कर रहा है.

भागवत व धनखड़ के बोल: सवाल संविधान की सर्वोच्चता का है…

संघ प्रमुख की मुसलमानों से अपना ‘श्रेष्ठताबोध’ छोड़ने को कहकर उनकी भारतीयता की शर्त तय करने की कोशिश हो या उपराष्ट्रपति की विधायिका का ‘श्रेष्ठताबोध’ जगाकर उसके व न्यायपालिका के बीच का संतुलन डगमगाने की, दोनों के निशाने पर देश का संविधान ही है.

संघ प्रमुख जिसे युद्ध कह रहे हैं, वह असल में हिंदुत्ववादी गिरोहों का हमला है

संघ प्रमुख ने ठीक कहा कि हिंदू युद्धरत हैं. लेकिन यह एकतरफ़ा हमला है. पिछले कुछ वर्षों में सारे हिंदू नहीं, लेकिन उनके नाम पर हिंदुत्ववादी गिरोहों ने मुसलमानों, ईसाइयों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है. और दूसरा पक्ष, यानी मुसलमान और कुछ जगह ईसाई, इसका कोई उत्तर नहीं दे सकते. फिर इसे युद्ध क्यों कहें?

भारत जोड़ो यात्रा में कुछ क़दम

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इसमें संदेह नहीं कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में बिल्कुल निहत्थे चल रहे हैं, उनकी रक्षा के लिए कमांडो तैनात हैं पर वे वेध्य हैं. बड़ी बात यह है कि वे निडर हैं.

भारत में मुस्लिम या ईसाई के धर्मनिरपेक्ष होने की शर्त है कि वे बहुसंख्यकवादी आग्रह स्वीकार लें

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसए नज़ीर के विदाई समारोह में सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के अध्यक्ष ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि वे धर्मनिरपेक्ष हैं. उनकी नज़र में जस्टिस नज़ीर में धर्मनिरपेक्षता इसलिए थी कि शीर्ष अदालत के बाबरी मस्जिद विवाद में निर्णय देने वाली पीठ में वे एकमात्र मुस्लिम सदस्य थे पर उन्होंने मंदिर बनाने के लिए मस्जिद की ज़मीन को मस्जिद तोड़ने वालों के ही सुपुर्द करने वाले फ़ैसले पर दस्तख़त किए.

भारत जोड़ो यात्रा में न कोई चुनाव परिणाम खोजें और न ही कांग्रेस का पुनरुत्थान

भारत जोड़ो यात्रा एक ऐसी कोशिश है, जिसका प्रभाव निकट भविष्य पर पड़ेगा या नहीं, और पड़ेगा तो कितना, यह कहना मुश्किल है. इसे सिर्फ़ चुनावी नतीजों से जोड़कर देखना भूल है. इससे देश में बातचीत का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है जो अब तक के घृणा, हिंसा और इंसानियत में दरार डालने वाले माहौल के विपरीत है.

नया वर्ष हमारे लिए वैचारिक धुंध से शुरू हुआ है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नया वर्ष इस संदेह से शुरू हुआ कि शायद हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जिसमें नए विचार होना बंद हो गया है. लोकतंत्र के रूप में हमारी नियति अब भीषण संदेह के घेरे में है. राजनीति नागरिकों के बस में नहीं रही है- उनकी नागरिकता सिर्फ़ मतदान में बदल चुकी है.

‘लव जिहाद’ के षड्यंत्र का सिद्धांत अब सामान्य सामाजिक बोध का हिस्सा बन गया है

टीवी कलाकार तुनीषा शर्मा की आत्महत्या के बाद बहस मानसिक स्वास्थ्य पर होनी चाहिए थी, इस पर कि इस उम्र में इतना काम करने का दबाव किसी के साथ क्या कर सकता है, वह भी उस दुनिया में जिसकी प्रतियोगिता असामान्य होती है. लेकिन बहस को 'लव जिहाद' का एंगल देते हुए सुविधाजनक दिशा में मोड़ दिया गया है.

नया साल: चिंता, चुनौती, आशा

नए साल में असल चिंता का विषय है, भारत में ऐसे हिंदू दिमाग़ का निर्माण जो श्रेष्ठतावाद के नशे में चूर है. मुसलमान मित्रविहीन अवस्था में है. चंद बुद्धिजीवी ही उसके साथ हैं. कश्मीर में मुसलमानों को अधिकार से वंचित किया जा रहा है. असम में उसे कोने में धकेला जा रहा है और पूरे देश में क़ानूनों और ग़ुंडों के गठजोड़ के ज़रिये उसे प्रताड़ित किया जा रहा है.

ग्वालियर घराना: ध्रुपद अनंत की साधना है और ख़याल समय से संसक्ति है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ध्रुपद के उत्कर्ष के समय इतने तरह के संगीत नहीं थे जितने आज ख़याल की व्याप्ति के वक़्त हैं. ख़याल के ख़ुद को बचाने के संघर्ष की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. जैसे आधुनिकता एक स्थायी क्रांति है और बाद के सभी परिवर्तन उसी में होते रहे हैं, वैसे ही ख़याल भी स्थायी क्रांति है.

संत और साध्वी होने के लिए क्या घृणा प्रचारक होना प्राथमिक शर्त है?

पिछली सदी के आख़िरी दो दशकों में इस बात पर बहस होती थी कि साध्वी उमा भारती अधिक हिंसक हैं या साध्वी ऋतंभरा. इन दोनों की परंपरा फली फूली. साध्वी प्राची, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसी शख़्सियतों के लिए सिर्फ़ लोगों के दिलों में नहीं, विधान सभाओं और संसद में भी जगह बनी.

सिख जिस हिंदुत्व का हथियार बनने से इनकार कर रहे हैं, हिंदू कब उसके धोखे को पहचान पाएंगे?

मुग़लों और सिख नेताओं में संघर्ष हुआ, लेकिन सिखों ने इस तथ्य को आज मुसलमानों पर हिंसा की राजनीति के लिए इस्तेमाल करने से गुरेज़ किया है. आरएसएस और भाजपा को यह बात खलती रही है. वे सिखों को मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल करना चाहते हैं. इसलिए वे गुरु गोविंद सिंह या गुरु तेग़ बहादुर को याद करते हैं. इरादा इन्हें याद करने का जितना नहीं, उतना इस बहाने मुग़लों की ‘क्रूरता’ की याद को ज़िंदा रखने का

1 20 21 22 23 24 35