नेहरू की उत्तरजीविता: 60 वर्ष बाद भी वे आधुनिक भारत की नींव बने हुए हैं

जब भी भारत के अतीत और भविष्य पर बात होगी तो नेहरू के वैचारिक खुलेपन की याद आएगी. देश को उस दिशा में बढ़ना होगा जिसकी तरफ़ नेहरू जाना चाहते थे- समावेशी और उदार भारत की तरफ़.

भाजपा और इतिहास पुनर्लेखन: इस बार प्लासी की लड़ाई केंद्र में आई

भाजपा प्रत्याशी अमृता रॉय कहती हैं कि ‘सनातन धर्म’ की रक्षा के लिए प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला की पराजय ज़रूरी थी. उन्हें शायद नहीं मालूम कि रवींद्रनाथ टैगोर ने कभी सिराजुद्दौला की 'बहादुरी और सादगी' और 'विनम्रता' का उल्लेख किया था.

रश्दी को उनके साहित्य ने ही ख़तरे में डाला, फिर उसी ने बचाया

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: सलमान रश्दी की हालिया किताब से एक बार फिर यह ज़ाहिर होता है कि उनका सबसे कारगर हथियार और सबसे विश्वसनीय कवच साहित्य ही रहा है, जहां उनकी भाषा और कल्पना सबसे टिकाऊ आश्रय पाती रही है.

जाति पर किस तरह बात करना जातिवाद है?

‘जातिविहीनता’ की सुविधा किसे है कि वह अपनी जाति की पहचान की मुखरता के बिना भी जीवन के हर मरहले पार करता जाए? किसे इसकी इजाज़त नहीं है? कविता में जनतंत्र स्तंभ की इक्कीसवीं क़िस्त.

दलितों का वोट है लेकिन राज उनका नहीं है

जनतंत्र में दलितों की भागीदारी क्या मात्र संख्या है या वे इस जनतंत्र की शक्ल भी तय कर सकते हैं? मतदान का जो समान अधिकार दलितों को मिला या उन्होंने लिया, वह भी ऐसे जनतंत्र का संसाधन बन गया जो पारंपरिक वर्चस्व को और मज़बूत करता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की बीसवीं क़िस्त.

जिसने तुम्हारा ख़ून किया बापू, वह प्रहरी था स्थिर स्वार्थों का

गांधी भारत को धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के रूप में विकसित होते देखना चाहते थे, लेकिन हिंदू राष्ट्र का विचार इसके ख़िलाफ़ था.

कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्रहवीं क़िस्त.

लापता लेडीज़: ग्रामीण ब्याहताओं के व्यक्तित्व की तलाश

दुल्हनों की अदला-बदली या स्त्रियों के रेलवे प्लेटफॉर्म पर भटक जाने को लेकर हिंदी सिनेमा ने कई प्रयोग किए हैं, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म वह सामाजिक-सांस्कृतिक टिप्पणी करने में सफल नहीं रही जो किरण राव निर्देशित ‘लापता लेडीज़’ कर सकी है.

नहीं का मुक़ाम

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अगर हम मनुष्य हैं, भारतीय लोकतंत्र के नागरिक हैं और अपने राष्ट्रीय आप्तवाक्य ‘सत्यमेव जयते’ पर विश्वास करते हैं, अगर अब लग रहा है कि संविधान और उसके बुनियादी मूल्यों स्वतंत्रता-समता-न्याय-बंधुता को बचाना है तो हम चुपचाप नहीं रहें.

क्यों कल्लू ने बदला नाम

नागार्जुन की कविता ‘तेरी खोपड़ी के अंदर’ स्वतंत्रता के बाद विकसित हुए भारतीय जीवन पर एक फटकार है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सोलहवीं क़िस्त.

जनतंत्र ऐसी सामूहिकता की कल्पना है जिसमें सारे समुदायों की बराबर की हिस्सेदारी हो

जनतंत्र ख़ुद इंसाफ़ है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी के बारे में फ़ैसला करने के मामूली से मामूली आदमी के हक़ को स्वीकार करने और हासिल करने का अब तक ईजाद किया सबसे कारगर रास्ता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.

भाजपा के दस साल और महिलाओं की स्थिति

पिछले कुछ वर्षो में बलात्कारी के तथाकथित हिंदू और भाजपा या संघ समर्थक होने पर उसके पक्ष में क्या-क्या नहीं किया गया. बलात्कारियों को बचाने के लिए जुलूस निकाले गए, राष्ट्रीय ध्वज लेकर भी मार्च निकाला गया, थानों पर दबाव बनाए गए, मीडिया को ख़ामोश किया गया. यहां तक कि पीड़िताओं में ही दोष निकाला गया, उनके चरित्र को तार-तार किया गया, उनके परिवारों को फुसलाया और धमकाया गया और सौदा करने पर मज़बूर किया गया.

क्या जातिवाद से लड़े बिना हिंदुत्ववादी एजेंडा के ख़िलाफ़ कोई संघर्ष संभव है?

सवर्णों ने इस विमर्श को केंद्र में ला दिया है कि ओबीसी और दलित हिंदुत्व के रथी हो गए हैं. यह विमर्श इस तथ्य को कमज़ोर करना चाहता है कि ऊंची जातियां हिंदुत्व का केंद्र हैं, उसे विचार और ताक़त देती हैं. आज भाजपा यदि अपने विस्तार के अंतिम बिंदु पर दिखाई देती है तो उसकी वजह यह है कि वह गैर-ब्राह्मण समूहों में अपेक्षित पकड़ नहीं बना पाई है.  

हिंदुत्व हिंदू धर्म और भारतीय राजनीति में घुसपैठिया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदुत्व के प्रतिपादक और उसके अनुयायी किसी हिंदू अध्यात्म या चिंतन परंपरा का कभी उल्लेख नहीं करते. असल में तो हिंदुत्व एक शुद्ध राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म में घुसपैठ कर रही है.

जनतंत्र जनता के निर्माण का एक अभियान है जो कभी थमता नहीं

मौन उस वक़्त भाषा का सबसे बड़ा गुण हो जाता है जब सबसे अभ्यर्थना और जय-जयकार की मांग हो रही हो. जब सारे हाथ उठे हों, तो अपना हाथ बांधे रख सकना भी एक अभिव्यक्ति है. हिंदी कविता और जनतंत्र पर इस स्तंभ की सातवीं क़िस्त.

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