कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बाल साहित्य का परिसर कौतूहल रहस्य, जिज्ञासा, सहज सुषमा, आश्चर्य, अप्रत्याशित आदि मनोभावों से समृद्ध होता है. हम एक तरह की अबोधता के अंचल में दाखिल होते हैं जो हमें अपने कई अपरीक्षित, पर गहरे धंसे पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है.
ईरान में अगर गश्ती दस्ते हिजाब जबरन पहना रहे हैं तो भारत में सरकारी गश्ती दस्ते जबरन हिजाब उतार रहे हैं. फ़र्क़ यह है कि ईरान में एक इस्लामी हुकूमत मुसलमानों को अपने हिसाब से पाबंद करना चाहती है और भारत में एक हिंदू हुकूमत मुसलमानों को अपने क़ायदों में क़ैद करना चाहती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.
आरएसएस को फ़ासीवादी संगठन कहने पर कुछ लोग नाराज़ हो उठते हैं. उनका तर्क है कि वह देशभक्त संगठन है. क्या देश में रहने वाली आबादियों के ख़िलाफ़ घृणा पैदा करते हुए, उनके ख़िलाफ़ हिंसा करते हुए देशभक्ति की जा सकती है?
ज्ञानवापी मामले में बनारस की अदालत ने अभी इतना ही कहा है कि हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं की याचिका विचारणीय है. इस निर्णय को हिंदुओं की जीत कहकर मीडिया प्रचारित कर रहा है. इससे आगे क्या होगा, यह साफ़ है. वहीं, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मथुरा की धमकी दे रहे हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.
सरकार हमें बार-बार कह रही है कि देशवासियों ने अपने अधिकारों की दुहाई दे-देकर पिछले 75 साल बर्बाद कर दिए हैं. वक़्त आ गया है कि वे अब राज्य के प्रति अपने कर्तव्य को याद करें. कर्तव्य में बहुत आकर्षण है. गीता की याद दिलाई जा सकती है. कर्तव्य का नाम लेकर लोगों को शर्मिंदा किया जा सकता है.
नाम बदलकर बदलाव का भ्रम रचना दरअसल ऐसा करने वालों द्वारा यह स्वीकार लेना है कि उनके पास अपने काम से कोई बदलाव लाने का न बूता बचा है, न विवेक. अन्यथा अब तक वे इतना तो समझ ही गए होते कि ग़ुलामी के प्रतीकों की उनकी समझ कितनी नासमझी भरी है.
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में कुपोषण की समस्या पर बात करते हुए श्रोताओं से कहा कि क्या वे जानते हैं कि भजन, गीत और संगीत के माध्यम से कुपोषण कम किया जा सकता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारा समय दुर्भाग्य से ऐसा हो गया है कि राजनेता किसी को कुछ भी कह सकते हैं, अभद्रता और अज्ञान से. उनके अनुयायियों की भावनाएं इस अभद्रता से आहत नहीं होतीं.
जगह-जगह क़ब्रिस्तान, ईदगाह की ज़मीन पर कभी पीपल लगा कर, कभी कोई मूर्ति रखकर भजन आरती शुरू करके क़ब्ज़ा करने की तरकीबें जमाने से इस्तेमाल की जाती रही हैं. अब सरकारें भी इसमें जुट गई हैं. मज़ा यह है कि अगर मुसलमान इसका विरोध करें तो उन्हें असहिष्णु कहा जाता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अच्छा साहित्य हमें हमेशा वहां ले जाता है जहां भाषा पहले न गई हो: वह हमारी अनुभूति और अभिव्यक्ति के भूगोल को विस्तृत करता है. साहित्य हमें अधिकार और शक्ति के सभी प्रतिष्ठानों से, फिर वे राज्यपरक हों या धर्म, प्रश्न पूछने की हिम्मत देता है.
बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर साल 2000 में अलग झारखंड राज्य बना था. हालांकि अपने गठन के बाद से ही इस राज्य को राजनीतिक स्थिरता नहीं मिल सकी है. मात्र 15 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे हैं और तीन बार यहां राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची में एक पत्थर खदान की लीज़ को लेकर विवादों के केंद्र में आ गए हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धूमिल ने दशकों पहले ‘दूसरे प्रजातंत्र’ की बात की थी, हमें अब अपना पुराना, भले अपर्याप्त, लोकतंत्र चाहिए. वह हमें पूरी तरह से मुक्त नहीं करेगा पर उस ओर बढ़ने की ऊर्जा, अवसर और साहस तो देगा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मध्य प्रदेश के मंडला में चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की स्मृति में ज़िला प्रशासन द्वारा बनाई गई कला वीथिका क्षेत्र के एकमात्र संस्कृति केंद्र के रूप में उभर रही है.