पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक आलेख में कहा कि विभाजनकारी राजनीति तात्कालिक फ़ायदा भले पहुंचाए लेकिन यह देश की प्रगति में बाधा खड़ी करती है.
जग्गी वासुदेव की ईशा फाउंडेशन द्वारा ढाई करोड़ रुपये से अधिक के टेलीफोन बिल का भुगतान नहीं किया गया है. फाउंडेशन का कहना है कि आश्रम से इतनी बड़ी संख्या में कॉल्स नहीं हुई है और वहां स्थित निजी एक्सचेंज को नींव से हैक करने से इतना बिल आया है. बीएसएनएल इसके ख़िलाफ़ मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा है.
शोपियां ज़िले में आतंकवादियों ने दो कश्मीरी पंडित भाइयों पर हमला किया, जिसमें एक की मौत हो गई और एक घायल हैं. वहीं, स्वतंत्रता दिवस की कड़ी सुरक्षा के बावजूद कश्मीर में रविवार और सोमवार को चार हमले हुए, जिनमें दो पुलिसकर्मी मारे गए और दो अन्य लोग घायल हो गए.
शिवमोगा ज़िले में स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर एक समूह द्वारा एक चौराहे पर हिंदुत्व नेता वीडी सावरकर का फ्लेक्स लगाने पर दूसरे समूह ने आपत्ति जताई. ये समूह टीपू सुल्तान का फ्लेक्स लगाना चाहता था, जिसे लेकर दोनों गुटों में झड़प हुई. पुलिस ने बताया कि क्षेत्र में अतिरिक्त बल तैनात है और शहर में निषेधाज्ञा लगाई गई है.
आज़ादी ने हमें लोकतंत्र दिया, जबकि नस्लीय राष्ट्रवाद का परिणाम बंटवारा था, जिसने अपने पीछे खून से लथपथ सांप्रदायिक हिंसा के निशान छोड़े. बेशक राष्ट्रवाद अच्छा है- लेकिन इसने नस्लीय अल्पसंख्यकों, कमज़ोरों और जिन्हें यह अपने यहां का नहीं मानता है, के लिए ख़तरे खड़े किए हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम निस्संदेह अधिकता के समय में जी रहे हैं. चीज़ें बहुत अधिक हो गई हैं और उनके दाम भी. महंगाई बढ़ रही है, विषमता भी. हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि में बढ़ोतरी हुई है. पुलिस द्वारा जेल में डाले गए और सुनवाई न होने के मामले भी बढ़े हैं. न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के प्रति भक्ति और आसक्ति बढ़ी है.
असम के दरांग ज़िले के एक गांव की घटना. 65 वर्षीय अतुल शर्मा की बीते 9 अगस्त को मौत हो गई थी, लेकिन ग्रामीणों के कथित असहयोग के कारण परिवार को उनका शव जलाने के बजाय दफ़नाने के लिए मजबूर होना पड़ा. 27 साल पहले अंतरजातीय विवाह करने की वजह से ग्रामीणों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया था.
उत्तर प्रदेश में कन्नौज ज़िले के तालग्राम थाना क्षेत्र के गांव रसूलाबाद स्थित शिव मंदिर में बीते 16 जुलाई की सुबह कथित रूप से मांस मिलने के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. पुलिस ने बताया कि मुख्य आरोपी चंचल सिंह की थानाध्यक्ष हरिश्याम सिंह से अनबन थी, जिस कारण वह उन्हें हटवाना चाहता था. घटना के बाद ज़िलाधिकारी, एसपी और थानाध्यक्ष का तबादला कर दिया गया था.
पुस्तक समीक्षा: हिंदी कविता और नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर रहे अज्ञेय की अक्षय मुकुल द्वारा लिखी जीवनी ‘राइटर, रेबेल, सोल्जर, लवर: द मैनी लाइव्ज़ ऑफ अज्ञेय’ उनके जीवन के अनगिनत पहलुओं को तो उभारती ही है, साथ ही 1925 से 1980 के भारत के राजनीतिक-सामाजिक इतिहास का भी दस्तावेज़ बन जाती है.
कट्टर हिंदुत्ववादी नेता यति नरसिंहानंद सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो में सत्तारूढ़ भाजपा के ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पर सवाल उठाते हुए और हिंदुओं से भाजपा के इस अभियान का बहिष्कार करने की अपील करते हुए नज़र आ रहे हैं. पुलिस ने कहा कि वीडियो की छानबीन कर क़ानून की उपयुक्त धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी.
आज़ादी के 75 साल: देश की आज़ादी के 75 साल बाद भी आदिवासी समुदाय अपने जल, जंगल, ज़मीन, भाषा-संस्कृति, पहचान पर हो रहे अतिक्रमणों के ख़िलाफ़ लगातार संघर्षरत है.
मैन बुकर से सम्मानित अंग्रेज़ी के प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा संस्थान में एक कार्यक्रम में अपना व्याख्यान शुरू करने वाले थे जब एक व्यक्ति ने मंच पर जाकर चाकू से उन पर हमला किया. उनके एजेंट के अनुसार, वे वेंटिलेटर पर हैं और उनकी स्थिति ठीक नहीं है. अपनी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़’ लिखने के बाद वर्षों तक उन्हें इस्लामी चरमपंथियों से मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा है.
तमिल फिल्म ‘जय भीम’ पर कथित तौर पर वन्नियार समुदाय को ग़लत तरीके से दिखाकर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था. फिल्म साल 1995 में तमिलनाडु में हिरासत में यातना और एक ‘कोरवार’ आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की मौत की सच्ची घटना पर आधारित कहानी है.
दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश प्रतिभा एम. सिंह ने एक कार्यक्रम में महिलाओं को सम्मान देने की बात कहते हुए मनुस्मृति की प्रशंसा की थी. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने जिन ग्रंथों का हवाला दिया है वे सीधे तौर पर संविधान और भारत की महिलाओं, विशेष रूप से दलित और आदिवासी महिलाओं को मिले अधिकारों के घोर विरोधी हैं.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने ग्रामीणों की हत्या पर एफआईआर तब दर्ज की थी, जब उनके परिजनों ने याचिका दायर की, फिर उसने विसंगतियों से भरी जानकारियां दीं, याचिकाकर्ताओं को गवाही दर्ज होने से पहले हिरासत में लिया गया, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर विश्वास करते हुए न्याय के लिए उस तक पहुंचे लोगों को दंडित करने का फैसला दिया.