सुप्रीम कोर्ट उन छात्रों द्वारा दायर विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है, जो विदेशी मेडिकल विश्वविद्यालयों में पहले से चौथे वर्ष के छात्र हैं और भारत के मेडिकल कॉलेजों में स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं. अदालत में दायर हलफ़नामे में केंद्र ने कहा कि राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने इसके लिए अनुमति नहीं दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में भीड़भाड़ कम करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन दोषियों के संदर्भ में ऐसा किए जाने की ज़रूरत है, जिनकी दोषसिद्धि के ख़िलाफ़ अपील वर्षों से लंबित है और उच्च न्यायालयों द्वारा निकट भविष्य में इसकी सुनवाई की कोई संभावना नहीं है.
2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफ़ारिशों को लागू किया गया था, जिनके तहत एक पदाधिकारी के 3 साल के कार्यकाल के बाद 3 साल का ब्रेक लेने का प्रावधान था. 2018 में इसे संशोधित कर छह साल के बाद ब्रेक लेने की बात कही गई. अब कहा गया है कि एक पदाधिकारी राज्य संघ और बीसीसीआई में कुल 12 साल बिता सकता है.
एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, नौ आईआईएम के पीएचडी दाखिले के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच सालों में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के तहत आए छात्रों का अनुपात औसतन पांच फीसदी से कम रहा है. वहीं, सभी आईआईएम में ओबीसी और एससी फैकल्टी के लिए आरक्षित 60 फीसदी और एसटी फैकल्टी के 80 फीसदी से अधिक पद ख़ाली रहते हैं.
घटना बीते रविवार की है. पश्चिम बंगाल के कुछ लोगों का समूह राजस्थान के अजमेर शरीफ जा रहा था. रास्ते में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने उन्हें कथित तौर पर सड़क पर नमाज़ पढ़ते पाया तो उनसे कान पकड़कर माफ़ी मंगवाई. इस संबंध में एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दायर करते हुए कहा है कि अगर कोई दल या इसका सदस्य नफ़रती भाषण (हेट स्पीच) देने में संलिप्त पाया जाता है तो आयोग के पास उस राजनीतिक दल की मान्यता रद्द करने या उसके सदस्य को अयोग्य ठहराने संबंधी क़ानूनी शक्ति नहीं है.
स्वास्थ्य मामलों से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने कहा कि पहली लहर के बाद जब देश में कोविड-19 के मामलों में गिरावट दर्ज की गई, तब सरकार को देश में महामारी के दोबारा ज़ोर पकड़ने के ख़तरे और इसके संभावित प्रकोप पर नज़र रखने के अपने प्रयास जारी रखने चाहिए थे.
बीते सप्ताह गणेशोत्सव के बाद प्रतिमा विसर्जन के दौरान विभिन्न राज्यों में तीस से अधिक मौतें हुईं. अफ़सोस की बात यह है कि इन मौतों को अचानक हो गए हादसों का परिणाम नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह मानने के एक नहीं, अनेक कारण हैं कि बचाव के पर्याप्त उपाय करके ऐसी अप्रिय घटनाओं को रोका जा सकता था.
ट्विटर के पूर्व सुरक्षा प्रमुख ह्विसिलब्लोअर पीटर ज़ैटको ने बीते माह आरोप लगाया था कि भारत सरकार ने ट्विटर को ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए मज़बूर किया जो सरकार के एजेंट थे और जिनकी ट्विटर के वृहद संवेदनशील डेटा तक पहुंच थी. पीटर ने अमेरिकी सीनेट में इन्हीं आरोपों को दोहराया है.
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने आरोप लगाया कि भाजपा के ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत आम आदमी पार्टी के सात से दस विधायकों को पैसे और मंत्री पद का प्रस्ताव देते हुए संपर्क साधा गया है.
जालंधर में सेना के ज़ोनल भर्ती अधिकारी ने अधिकारियों को पत्र लिखकर चेताया है कि स्थानीय प्रशासन राज्य सरकार के निर्देशों या धन की कमी का हवाला देकर भर्ती रैलियों के आयोजन में पर्याप्त सहयोग नहीं दे रहा, जिसके चलते रैलियों को स्थगित किया जा सकता है या किसी पड़ोसी राज्य में स्थानांतरित कर सकते हैं.
किसानों को बाज़ार स्थलों से जोड़ने के मक़सद से अगस्त 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान 'किसान रेल सेवा' शुरु की गई थी. खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने इसमें 50 करोड़ रुपये की सब्सिडी आवंटित की थी, लेकिन कुल सब्सिडी 121.86 करोड़ रुपये होने पर उसने शेष राशि का भुगतान करने से मना कर दिया.
अक्टूबर 2020 में हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय गिरफ़्तार किए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को बीते हफ्ते उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली है. जेल अधिकारियों ने उनकी रिहाई से इनकार करते हुए कहा है कि उनके ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा एक मामला लंबित है.
नवंबर 2021 में श्रीनगर के हैदरपोरा में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में से एक आमिर लतीफ़ माग्रे भी थे. मुठभेड़ की प्रमाणिकता को लेकर जनाक्रोश के कुछ दिन बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दो मृतकों के शव उनके परिजनों को सौंपे थे, जिसके बाद माग्रे के परिवार ने भी उनका शव सौंपे जाने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मामला तीन सदस्यीय पीठ को सौंपने की भी बात कही है. नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह संविधान के मूल ढांचे के विपरीत है और इसका उद्देश्य मुसलमानों से स्पष्ट रूप से भेदभाव करना है.