पेगासस जासूसी: हम जनतंत्र का भ्रम जी रहे हैं…

जनता जागरूक तभी हो सकती है जब वह बाख़बर हो. पिछले 7 सालों से भारत की जनता के बड़े हिस्से तक पहुंच रखने वाले समाचार-समूहों ने जैसे तय कर लिया है कि वह उसे वो ख़बर नहीं देंगे जो उसके जनतांत्रिक नागरिक के दर्जे पर असर डालने वाली होगी. इतना ही नहीं वे सूचना को विकृत करके जनता तक पहुंचाते हैं.

हमारा संविधान: अनुच्छेद-19 एकत्र होने और संगठन बनाने का अधिकार

वीडियो: क्या भारत के नागरिक शांतिपूर्वक मिलकर बिना हथियारों के मीटिंग या धरना कर सकते है? यदि हां, तो सरकार किन आधारों पर इस अधिकार पर अंकुश लगा सकती है? इसी प्रकार क्या भारत के नागरिक यूनियन या संगठन बना सकते है? क्या सरकार इन संगठनों पर रोक लगा सकती है? इस पर भारत का संविधान क्या कहता है बता रहीं हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार ज़िले में बूचड़खानों पर लगी रोक पर उठाया सवाल

इस साल मार्च में उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार ज़िले को बूचड़खानों से मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था और बूचड़खानों के लिए जारी अनापत्ति पत्रों को भी रद्द कर दिया था. अदालत ने कहा कि सभ्यता का आकलन केवल इस बात से किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और हरिद्वार में इस पाबंदी से सवाल उठता है कि राज्य किस हद तक नागरिकों के विकल्पों को तय कर सकता है.

अमेरिकी सांसदों ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर चिंता जताई, भारत ने ख़ारिज किया

अमेरिका में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के तीन सांसदों ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए आरोप लगाया कि सरकार सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही और बोलने की आज़ादी के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है. अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ धार्मिक आधार पर भेदभाव को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि बढ़ता राष्ट्रवाद लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के लिए ख़तरा है. हालांकि भारत सरकार और अनेक भारतीय संगठनों ने इन

हमारा संविधान: अनुच्छेद-19 (2) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध

वीडियो: क्या सरकार हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा सकती है? क्या सरकार हमसे अपने भाषण का अधिकार, लिखने का अधिकार, छीन सकती है? इस वीडियो में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल समझा रही हैं कि अनुच्छेद 19 2 में वो कौन से कारण हैं, जिसके आधार पर सरकार अभिव्यक्ति के अधिकार को सीमित कर सकती है.

पूर्व नौकरशाहों का खुला पत्र, कहा- यूपी में क़ानून व्यवस्था ध्वस्त, अंकुश न लगा तो लोकतंत्र का नाश तय

पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विरोध के अधिकार को दबाने के लिए हिरासत, आपराधिक आरोप और वसूली का आदेश आम तरीके बन गए हैं. उन्होंने पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की गिरफ़्तारी का भी उल्लेख करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट और पुलिस सहित यूपी में प्रशासन की सभी शाखाएं ‘ध्वस्त’ हो गई हैं.

क्या भारत में धार्मिक सहिष्णुता और घृणा साथ-साथ हैं?

वीडियो: हाल ही में प्यू रिसर्च सेंटर ने 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत के बीच 17 भाषाओं में लगभग 30,000 वयस्कों के साक्षात्कार पर आधारित एक अध्ययन जारी किया है. ‘भारत में धर्मः सहिष्णुता और अलगाव’ नाम के अध्ययन ने भारतीय समाज में धर्म की गतिशीलता में व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान की है. इस विषय पर प्रो. अपूर्वानंद ने शिक्षाविद प्रताप भानु मेहता के साथ बातचीत की.

डिजिटल मंच कई बार पूरी तरह अनियंत्रित होते हैं, ध्यान रहे कि ग़लत सूचनाओं को जगह न मिले: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द्र समिति की ओर से जारी समन के ख़िलाफ़ फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक अजित मोहन की याचिका ख़ारिज करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि दिल्ली फरवरी 2020 जैसे दंगे दोबारा नहीं झेल सकती. फेसबुक ने जहां लोगों को आवाज़ दी है, वहीं हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यह विध्वंसकारी संदेशों और विचारधाराओं का मंच भी बन गया है.

​हमारा संविधान: अनुच्छेद 19; प्रेस की स्वतंत्रता और असहमति का अधिकार

वीडियो: हमारा संविधान की इस कड़ी में अधिवक्ता अवनि बंसल संविधान के अनुच्छेद 19 में शामिल प्रेस की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार के बारे में जानकारी दे रही हैं. असहमति का अधिकार भी अभिव्यक्ति के अधिकार का अभिन्न अंग है. इसलिए सभी नागरिकों को ये अधिकार है कि वो सरकार की नीतियों पर अपनी बात खुलकर कह सके और उसे लोगों तक पहुंचा सके.

आपातकाल के स्याह दिन बनाम अच्छे दिन

जनतंत्र को अपने ठेंगे पर रखे घूम रहे लठैतों के इस दौर में 46 साल पहले के आपातकाल के 633 दिनों पर खूब हायतौबा मचाइए, मगर पिछले 2,555 दिनों से भारतमाता की छाती पर चलाई जा रही अघोषित आपातकाल की चक्की के पाटों को नज़रअंदाज़ मत करिए.

देश में ‘तानाशाह’, विदेश में लोकतांत्रिक मसीहा; असली मोदी कौन?

वीडियो: जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों की बात की, लेकिन देश के अंदर की स्थिति कुछ और ही है. इस विषय पर द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.

जी-7: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारत सहमत, बयान में कहा- इंटरनेट पाबंदी लोकतंत्र के लिए ख़तरा

जी-7 के शिखर सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता भारत के सभ्यागत लोकाचार का हिस्सा हैं. यह बयान ऐसे समय आया है जब नए आईटी नियमों को लेकर भारत सरकार और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनी आमने-सामने हैं. ट्विटर ने पिछले महीने भारत स्थित अपने कार्यालयों पर पुलिस की छापेमारी को अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए संभावित ख़तरा माना है.

भारत सरकार के कुछ कदम लोकतांत्रिक मूल्यों के परस्पर विरोधी: शीर्ष अमेरिकी अधिकारी

दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिका के कार्यवाहक सहायक विदेश मंत्री डीन थॉम्पसन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते प्रतिबंध और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की नज़रबंदी पर चिंता जताई है.

धीरूभाई शेठ ने एक पूरी पीढ़ी को भारतीय राजनीति और इसकी अंतर्धाराओं से परिचित करवाया…

स्मृति शेष: सीएसडीएस के संस्थापकों में से एक समाजविज्ञानी धीरूभाई शेठ ने कभी अपनी चिंतन प्रक्रिया में अप्रिय तथ्यों को कलम से बचकर निकलने नहीं दिया. उन्होंने आज़ाद भारत में घट र​हीं घटनाओं का कथा वाचक बनने के बजाय उनकी चालक शक्तियों तथा सामाजिक-आर्थिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया.

हमारा संविधान: अनुच्छेद 15 (5) और 15 (6); मराठा आरक्षण, ईडब्ल्यूएस और संस्थानों में आरक्षण

वीडियो: संविधान में संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 15(5) और 15(6) को जोड़ा गया है, जिनमें सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए ग़ैर सहायता प्राप्त स्कूल और कॉलेजों में और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्ग के लिए आरक्षण की बात कही गई है.

1 15 16 17 18 19 26