लश्कर-ए-तैयबा के कथित ब्लॉग पर प्रकाशित एक धमकी भरे पत्र, जिसके स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर साझा किए गए हैं, में 21 मालिकों, संपादकों और पत्रकारों का नाम लिया गया है, जिनमें से ज़्यादातर श्रीनगर के तीन मीडिया संस्थानों से जुड़े हैं.
17 जनवरी 2018 आठ साल की बच्ची का शव जम्मू कश्मीर के कठुआ ज़िले में मिला था. मेडिकल रिपोर्ट में पता चला था कि हत्या से पहले लड़की के साथ कई बार सामूहिक बलात्कार किया गया था. जून 2019 में मामले के मुख्य आरोपी सांजी राम समेत पांच पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था.
जम्मू कश्मीर के गांदरबल ज़िला मजिस्ट्रेट ने शनिवार को सीआरपीसी की धारा 144 के तहत एक आदेश जारी करते हुए कहा था कि बिजली सप्लाई की लाइनों को किसी भी नुकसान से बचाने, अनिर्धारित बिजली कटौती रोकने और निर्बाध बिजली आपूर्ति करने के लिए ब्लोअर, हीटर और रेडिएटर जैसे बिजली के उपकरणों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाती है.
‘द इंडियन जर्नल ऑफ ऑफ्थैलमोलॉजी’ में प्रकाशित एक शोध पत्र में तीन डॉक्टरों द्वारा जुलाई-नवंबर 2016 के बीच श्रीनगर में पैलेट गन के शिकार व्यक्तियों के 777 आंखों के ऑपरेशन को आधार बनाकर कहा गया है कि इनमें से करीब 80 फीसदी लोगों की दृष्टि केवल उंगुलियां गिनने तक सीमित रह गई थी.
आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बीच दक्षिण कश्मीर के चौधरीगुंड गांव से जम्मू पहुंचे 13 परिवारों ने प्रशासन से उन्हें ‘प्रवासी’ के रूप में पंजीकृत करने की मांग की है. उनका कहना है कि असुरक्षा के चलते उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उनका पंजीकरण करे.
जम्मू कश्मीर के भारत में विलय की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर भाजपा नेताओं द्वारा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को निशाना बनाने पर कांग्रेस ने कहा कि ‘वॉट्सऐप नर्सरी’ वाले भाजपा नेता फिर से इतिहास पढ़ें और पूर्व प्रधानमंत्रियों पर आरोप लगाने के बजाय अपने शासनकाल का हिसाब दें.
इससे पहले भारत ने कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर से संबंधित मामले पूरी तरह से देश के आंतरिक मामले हैं. चीन सहित अन्य देशों को इस पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है.
स्वतंत्रता के बाद भारत की पहली सैन्य जीत के मौके पर श्रीनगर में आयोजित ‘शौर्य दिवस’ समारोह को संबोधित कर रहे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान अपने क़ब्ज़े वाले कश्मीर में लोगों के ख़िलाफ़ ‘अत्याचार’ कर रहा है और उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे.
आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले के 10 कश्मीरी पंडित परिवार डर के कारण अपने घर छोड़कर जम्मू पहुंचे हैं. उनका आरोप है कि सुरक्षा मुहैया कराने की निरंतर गुहार के बावजूद उनके गांव से बहुत दूर एक पुलिस चौकी बनाई गई है.
जम्मू कश्मीर के बडगाम ज़िले के शालिगंगा नाले के तीन ब्लॉक में खनन की मंज़ूरी जम्मू-कश्मीर पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा दी गई थी, जिसके ख़िलाफ़ पर्यावरण कार्यकर्ता राजा मुज़फ़्फ़र भट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में अपील दायर की थी.
कश्मीरी फोटो पत्रकार सना इरशाद मट्टू को 18 अक्टूबर को दिल्ली हवाई अड्डे पर वैध वीज़ा और टिकट होने के बावजूद न्यूयॉर्क जाने से रोक दिया गया था. वे पुलित्ज़र पुरस्कार समारोह में शामिल होने जा रही थीं. वे समाचार एजेंसी ‘रॉयटर्स’ की एक टीम का हिस्सा थीं, जिसे भारत में कोविड-19 महामारी की कवरेज के लिए ‘फीचर फोटोग्राफी’ श्रेणी में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
बीते 15 अक्टूबर को दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले में पूरण कृष्ण भट्ट की उनके पैतृक आवास के बाहर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस हत्या के विरोध में हुए प्रदर्शनों में लोगों ने कहा कि जम्मू कश्मीर में सुरक्षा हालात गंभीर हैं, लेकिन सरकार इससे बेपरवाह है और केवल एक ही काम कर रही है जो है ‘सामान्य हालात’ का झूठ बोलना.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बारामूला सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के एक प्रबंधक, ग्रामीण विकास विभाग में ग्रामीण स्तर के कार्यकर्ता सैयद इफ़्तिख़ार अंद्राबी, पुलिस की सहायक शाखा के एक आरक्षक तनवीर सलीम डार, जल शक्ति विभाग के एक अर्दली इरशाद अहमद ख़ान और बिजली विकास विभाग में सहायक लाइनमैन एबी मोमिन पीर को बर्ख़ास्त करने के आदेश जारी किए हैं.
कश्मीर ज़ोन पुलिस के मुताबिक, आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट पर तब गोली चलाई, जब वह शोपियां में बगीचे की तरफ जा रहे थे. उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. हत्या के विरोध में कश्मीरी पंडित कर्मचारियों में राजमार्ग को अवरुद्ध करके प्रदर्शन किया.
जम्मू प्रशासन ने मंगलवार को अधिकृत तहसीलदारों को एक वर्ष से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रहने वाले लोगों को आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर ख़ुद को मतदाता के तौर पर रजिस्टर कराने का अधिकार दिया था. भाजपा को छोड़कर सूबे के सभी दलों ने इसका विरोध किया था.