देश के विश्वविद्यालय ख़ासकर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक प्रकार से केंद्र सरकार के ‘विस्तारित कार्यालय’ में तब्दील कर दिए गए हैं. कोई भी अकादमिक विभाग बिना प्रशासन की ‘छन्नी’ से गुजरे किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं कर सकता.
दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में जेएनयू की संपत्ति को निजी संस्था या किराए पर देने की योजना पर कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित का कहना है कि शिक्षा मंत्रालय पूरी तरह से जेएनयू को सब्सिडी देता है, पर यूनिवर्सिटी की अपनी कोई आय नहीं है. जेएनयू को अपने ख़ुद के फंड कमाने की ज़रूरत है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी ने कहा है कि विश्वविद्यालय वर्तमान में गंभीर वित्तीय दवाब में है. हम अपनी संपत्तियों को नए उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं. 35 फिरोजशाह रोड की संपत्ति का हम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से पुनर्विकास करना चाहते हैं. गोमती गेस्ट हाउस को हम निजी संस्था को किराए पर देने का विचार कर रहे हैं.
गलगोटिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर जो सवाल उठा, वह किसी एक कैंपस का मामला नहीं है. तमाम सरकारी विश्वविद्यालयों का भी गलगोटियाकरण हो रहा है. इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन, छात्रसंघ और गलगोटियातुर छात्रों की भूमिका अहम है.
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लद्दाख के नागरिक रविवार को लेह से चांगथंग तक के लिए एक मार्च निकालने वाले थे, जिसे 'पश्मीना मार्च' नाम दिया गया था. हालांकि, इसे मोदी सरकार द्वारा धारा 144 लगाने समेत अन्य कड़े कदम उठाए जाने के चलते रद्द कर दिया गया.
जेएनयू के नौजवानों ने छात्रसंघ चुनाव के नतीजों में दिखा दिया है कि सत्ता प्रतिष्ठान और हिंदुत्व के आक्रमण के बावजूद वह वैचारिक मज़बूती के साथ खड़ा हुआ है.
बीते दिनों ओडिशा के संबलपुर के गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन को कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों की नारेबाज़ी के बीच अपना लेक्चर अधूरा छोड़ना पड़ा था. जेएनयू शिक्षक संघ ने इसकी निंदा करते हुए इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर गंभीर हमला बताया है.
बीते महीने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने नए नियमों में कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के पास धरना देने, विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल पर 20,000 रुपये के जुर्माने, कैंपस से निष्कासन की बात कही थी. 23 दिसंबर को इसके विरोध में छात्रों ने परिसर में मशाल मार्च निकाला.
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अपने कैंपस के किसी भी शैक्षणिक या प्रशासनिक भवन के पास धरना देने, भूख-हड़ताल करने या किसी अन्य प्रकार के विरोध पर रोक लगाने के लिए नए नियम जारी किए हैं. इसके अलावा फ्रेशर्स की स्वागत पार्टियों, विदाई या डीजे कार्यक्रम जैसे आयोजन करने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है.
विगत कुछ सालों से कोशिश चल रही है कि ऐसे नैरेटिव को वैधता मिले जो हिंदुत्व के नज़रिये के अनुकूल हो, लेकिन जगह-जगह उसे चुनौती भी मिल रही है. शायद इस पृष्ठभूमि में संघ-भाजपा को मुफ़ीद लग रहा है कि वे सार्वजनिक पुस्तकालयों पर क़ब्ज़ा क़ायम करें और अपनी एकांगी समझदारी के पक्ष में जनमत तैयार करें.
वीडियो: दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कुछ दिन पहले आरएसएस ने पथ संचलन का कार्यक्रम किया था. इस आयोजन पर कई विद्यार्थी संगठनों ने नाराज़गी जताते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से कार्रवाई की मांग की थी. जेएनयू के बाद अब दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में भी आरएसएस ने मार्च निकाला है.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा लागू किए जा रहे ‘गुणवत्ता अंक’ (क्वालिटी स्कोर) का प्रावधान कहता है कि किसी अभ्यर्थी की गुणवत्ता इस बात से तय होगी कि उसने स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की पढ़ाई किस संस्थान से की है.
जेएनयूटीए ने एक नई रिपोर्ट में विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों को उठाया है. शिक्षक इस बिगड़ती स्थिति की वजह प्रशासनिक उदासीनता को मानते हैं.
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