क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया कि एक फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार देश भर के उच्च न्यायालयों में 59,87,477 मामले लंबित हैं. इनमें से 10.30 लाख मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित हैं. सिक्किम हाईकोर्ट में सबसे कम 171 मामले हैं.
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में वकालत करने वालीं लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी के नाम को जज के तौर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने हरी झंडी दी है. सोशल मीडिया पर उपलब्ध उनसे संबंधित भाषणों के अनुसार, वे भाजपा के महिला मोर्चा की महासचिव हैं. मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और कॉलेजियम को लिखे पत्र में कहा है कि गौरी की पदोन्नति ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित’ करती है.
क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में बताया कि देशभर की विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले है, जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार उच्च न्यायालय और ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय से लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू की कॉलेजियम पर सार्वजनिक टिप्पणियों को निंदनीय बताते हुए कहा कि अदालत के फैसले स्वीकार करना उनका कर्तव्य है. उन्होंने जोड़ा कि अगर यह गढ़ (न्यायपालिका) भी गिर जाता है तो हम अंधकार युग के गर्त में चले जाएंगे.
संस्कृत भारती द्वारा आयोजित अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन में देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने अदालतों में संस्कृत इस्तेमाल करने की बात करते हुए कहा कि संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि संविधान की अनदेखी की जा रही है, संवैधानिक निकायों को कमज़ोर किया जा रहा है और न्यायपालिका को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि आज हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को सुरक्षित करने की है क्योंकि कुछ लोग हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान पर कभी यक़ीन नहीं किया, कभी इसका सम्मान नहीं किया. आज वही लोग हर एक संवैधानिक संस्थान को कमज़ोर करने में जुटे हुए हैं.
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल की यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले कर रहे हों और उनके बीच ‘महाभारत’ चल रहा हो.
केंद्र और न्यायापालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि देश की सभी स्वतंत्र संस्थाओं पर ग़ैर-क़ानूनी रूप से क़ब्ज़ा करने के बाद अब ये लोग न्यायपालिका पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. जनता ऐसा कभी नहीं होने देगी.
क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ‘महाभारत’ हो रही है. वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस आरएस सोढ़ी ने क़ानून मंत्री द्वारा कॉलेजियम पर उनके बयान के समर्थन के बाद कहा कि उनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की बजाय सरकार और न्यायपालिका को इस मुद्दे पर परिपक्व बहस करनी चाहिए.
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़े बताते हैं कि देश की निचली अदालतों में लंबित चार करोड़ से अधिक मामलों में से लगभग 63 लाख मामले इस लिए लंबित हैं क्योंकि वकील ही उपलब्ध नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में इस कारण सबसे अधिक मामले लंबित हैं.
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के विचारों का समर्थन किया है. जस्टिस सोढ़ी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान का अपहरण कर लिया. इसके बाद कहा कि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति ख़ुद करेगा और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी.
बीते कुछ समय में देश के कई राज्यों में कथित तौर पर मुस्लिम पुरुषों के हिंदू महिलाओं से शादी करने की बढ़ती घटनाओं के आधार पर 'लव जिहाद' से जुड़े क़ानून को जायज़ ठहराया गया है. लेकिन क्या इन दावों का समर्थन करने के लिए कोई वास्तविक सबूत मौजूद है?
भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब आगे का रास्ता जटिल होता है तो भारतीय संविधान की मूल संरचना अपने व्याख्याताओं और कार्यान्वयन करने वालों को मार्गदर्शन और निश्चित दिशा दिखाती है. बीते दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मूलभूत ढांचे में संसद द्वारा बदलाव न किए जाने की ग़लत परंपरा रखी थी.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केशवानंद भारती फैसले की वैधता पर सवाल उठाया है, जिसका आशय है कि संसद को संविधान में संशोधन करने का संप्रभु अधिकार होना चाहिए, चाहे वह संविधान के बुनियादी ढांचे का अतिक्रमण ही क्यों न करता हो.