असम: वरिष्ठ पत्रकार पर कथित हमले, हिरासत में लिए जाने के विरोध में उतरे मीडियाकर्मी

'असमिया प्रतिदिन' में काम करने वाले बनजीत ठाकुरिया 7 सितंबर को एक रेस्तरां में लगी आग की घटना को कवर करने गए थे, जहां उनके साथ कुछ लोगों ने मारपीट की. जब वे इसकी शिकायत दर्ज करवाने पुलिस थाने गए, तब उन्हें ही हिरासत में ले लिया गया.

श्रीकांत वर्मा: तुम जाओ अपने बहिश्त में, मैं जाता हूं अपने जहन्नुम में

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.

एनडीटीवी में बहुलांश हिस्सेदारी खरीदेगा अडानी समूह, चैनल ने कहा- घटनाक्रम अप्रत्याशित

अडानी समूह ने पूर्व में उद्योगपति मुकेश अंबानी से जुड़ी एक कंपनी का अधिग्रहण किया था, जिसने 2008-09 में एनडीटीवी को 250 करोड़ रुपये का ऋण दिया था. अब अडानी समूह की कंपनी ने इस ऋण को समाचार चैनल में 29.18 प्रतिशत हिस्सेदारी में बदलने के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया है.

मुक्ति की अनथक आकांक्षा

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धूमिल ने दशकों पहले ‘दूसरे प्रजातंत्र’ की बात की थी, हमें अब अपना पुराना, भले अपर्याप्त, लोकतंत्र चाहिए. वह हमें पूरी तरह से मुक्त नहीं करेगा पर उस ओर बढ़ने की ऊर्जा, अवसर और साहस तो देगा.

एल्गार परिषद: अदालत ने वरवरा राव को मुंबई में ही रहने और मीडिया को बयान न देने का निर्देश दिया

एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले के आरोपियों में से एक 83 वर्षीय वरवरा राव को बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सा आधार पर ज़मानत दी थी. अब एनआईए से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही एक विशेष अदालत ने उनकी ज़मानत शर्तें तय की हैं, जिनमें उन्हें अदालत की अनुमति के बिना शहर नहीं छोड़ने के लिए कहा गया है.

नीति आयोग का अधिकारियों को निर्देश- मीडिया में किसी लेख के प्रकाशन से पहले अनुमति लें

नीति आयोग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि आयोग के किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी मीडिया आउटलेट में प्रकाशन के लिए लेख या ऑप-एड भेजने से पहले वरिष्ठ अधिकारियों के मामले में सीईओ, कनिष्ठ अधिकारियों के मामले में उनके संबंधित सलाहकारों से मंज़ूरी लेनी होगी.

पत्रकार यूनियन ने केंद्र सरकार से अफ़ग़ानी पत्रकारों को शरण देने का अनुरोध किया

विदेश मंत्री एस. जयशंकर को लिखे पत्र में इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने कहा है कि तालिबानी शासन में अफ़ग़ान पत्रकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाइयों और हमलों में खासी बढ़ोतरी हुई है.

यूपी: हाईकोर्ट ने कलेक्टर की मानहानि के मामले में पत्रकारों की दोषसिद्धि को बरक़रार रखा

मामला 1994 का है. मुज़फ़्फ़रनगर के तत्कालीन कलेक्टर अनंत कुमार सिंह का एक साक्षात्कार ‘द पायनियर’ और ‘स्वतंत्र भारत’ अख़बार में प्रकाशित हुआ था, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के संबंध में उनके हवाले से एक आपत्तिजनक टिप्पणी छापी गई थी. अदालत ने फैसला सुनाने के बाद आरोपियों को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट के तहत रिहा कर दिया.

पैगंबर टिप्पणी: सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स नाउ एंकर नविका कुमार को गिरफ़्तारी से संरक्षण दिया

भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ टिप्पणी ‘टाइम्स नाउ’ के प्राइम टाइम शो में की थी, जिसे नविका कुमार होस्ट कर रही थीं. इसे लेकर नविका के ख़िलाफ़ कई एफआईआर दर्ज हुई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भविष्य में दर्ज हो सकने वाली एफआईआर के संबंध में भी दंडात्मक कार्रवाई से राहत दी है.

जनता की आवाज़ उठाने वालों को धमकाया जा रहा है: इप्सा शताक्षी

वीडियो: झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को बीते 17 जुलाई को माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ़्तार किया है. उनकी पत्नी इप्सा शताक्षी ने बताया कि उन्हें जेल में संक्रामक रोगियों के वॉर्ड में रखा गया है और वहां की स्थिति अच्छी नहीं है. उनसे सुमेधा पाल की बातचीत.

देश के मौजूदा माहौल में मूर्खता और दुष्टता के बीच की महीन रेखा मिट चुकी है

आज की तारीख़ में संघियों और नेताओं के बेतुके बयानों को हंसी में नहीं उड़ाया जा सकता क्योंकि किसी भी दिन ये सरकारी नीति की शक्ल में सामने आ सकते हैं.

किसी मुस्लिम का जवाबदेही मांगना और बतौर पत्रकार काम करना जुर्म नहीं है: मोहम्मद ज़ुबैर

साक्षात्कार: चार साल पुराने एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने क़रीब तीन हफ्ते जेल में बिताए. इस बीच यूपी पुलिस द्वारा उन पर कई मामले दर्ज किए गए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत देते हुए कहा कि उनकी लगातार हिरासत का कोई औचित्य नहीं है. उनसे बातचीत.

आज भी ‘ज़ह्हाक’ की सल्तनत में सवाल जुर्म हैं…

मोहम्मद हसन के नाटक ‘ज़ह्हाक’ में सत्ता के उस स्वरूप का खुला विरोध है जिसमें सेना, कलाकार, लेखक, पत्रकार, अदालतें और तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं सरकार की हिमायती हो जाया करती हैं. नाटक का सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुल्क की मौजूदा सत्ता में ‘ज़ह्हाक’ कौन है? क्या हमें आज भी जवाब मालूम है?

अन्य व्यावसायिक हितों वाले मीडिया घराने बाहरी दबाव में आ जाते हैं: सीजेआई रमना

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जब किसी मीडिया संस्थान के अन्य व्यावसायिक हित होते हैं तो वह बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है. अक्सर व्यावसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं. नतीजतन, लोकतंत्र से समझौता होता है.

जीवन के ज़रूरी मुद्दों को लेकर अप्रासंगिक होती बहसें

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, शिक्षा का लगातार गिरता स्तर, बढ़ती विषमता, रोज़-ब-रोज़ बढ़ाई जा रही हिंसा-घृणा, असह्य हो रही महंगाई आदि मुद्दों पर बहस ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे जुमले का खोखलापन उजागर कर देगी, इसलिए उन्हें बहस से बाहर रखना सत्ता की सुनियोजित रणनीति है.

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