पूर्व नौकरशाहों ने कहा- यूएपीए का मौजूदा स्वरूप नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए गंभीर ख़तरा

‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.

जम्मू कश्मीर: 2019 से यूएपीए के तहत 2,300 से अधिक लोगों पर केस, लगभग आधे अभी भी जेल में

इस बीच केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि 2019 में ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम क़ानून यूएपीए के तहत 1,948 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 34 आरोपियों को दोषी ठहराया गया. एक अन्य सवाल के जवाब में बताया गया कि 31 दिसंबर 2019 तक देश की विभिन्न जेलों में 4,78,600 कै़दी बंद थे, जिनमें 1,44,125 दोषी ठहराए गए थे जबकि 3,30,487 विचाराधीन व 19,913 महिलाएं थीं.

2019 में बेरोज़गारी की वजह से 24 फीसदी बढ़े आत्महत्या के मामले: एनसीआरबी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ये आंकड़े देश में कोविड-19 के प्रसार चलते बड़ी संख्या में नौकरियां जाने के पहले के हैं. इनके अनुसार, साल 2019 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या के सर्वाधिक 553 मामले कर्नाटक में दर्ज हुए. दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र और तीसरे स्थान पर तमिलनाडु रहा.

2017-2019 तक 24,000 से अधिक बच्चों ने आत्महत्या की: एनसीआरबी

बच्चों की आत्महत्या संंबधी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को हाल ही में संसद में पेश किया गया. 2017-2019 के बीच 24,568 बच्चों ने आत्महत्या की, जिनमें 13,325 लड़कियां शामिल हैं. 4,046 बच्चों ने परीक्षा में असफल रहने और 639 बच्चों ने विवाह से जुड़े मुद्दों को लेकर आत्महत्या की है.

राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से सहमत वकील, कहा- असंतोष दबाने के लिए थोपे जाते हैं केस

वकील वृंदा ग्रोवर ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2019 में राजद्रोह के 30 मामलों में फ़ैसला आया, जहां 29 में आरोपी बरी हुए और महज़ एक में दोषसिद्धि हुई. ग्रोवर ने बताया कि 2016 से 2019 के बीच ऐसे मामलों की संख्या 160 प्रतिशत तक बढ़ी है.

गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति

जहां देश में एक तरफ ट्रांसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के लिए क़ानूनी अधिकारों की बात होना शुरू हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जेलों में बंद ऐसे लोग ज़रूरी हक़ों और सुविधाओं से भी महरूम हैं.

भारत की जेलों में महिला क़ैदियों की ज़िंदगी केवल शोक के लिए अभिशप्त है…

जेलें क़ैदियों को उनके अपराध के आधार पर वर्गीकृत कर सकती हैं, लेकिन जेलों, ख़ासतौर पर महिला जेलों में वर्गीकरण सिर्फ अपराधों से तय नहीं होता है. यह सदियों की परंपराओं और अक्सर धर्म द्वारा स्थापित नैतिक लक्ष्मण रेखा लांघने से जुड़ा है. ऐसे में भारतीय महिलाएं जब जेल जाती हैं, तब वे अक्सर जेल के भीतर एक और जेल में दाख़िल होती हैं.

साल 2015 से 2019 के बीच यूएपीए के तहत गिरफ़्तारियों में 72 फीसदी की बढ़ोतरी

लोकसभा में केंद्र सरकार ने एक हालिया जवाब में बताया था कि साल 2016-2019 के बीच यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में से केवल 2.2 फीसदी में सज़ा हुई है.

‘देश ख़तरे में है’ का हौवा स्वतंत्र विचारधारा वालों को प्रताड़ित करने का बहाना है

देश में 2017 से 2019 के बीच राष्ट्र विरुद्ध अपराधों के आरोप में प्रति वर्ष औसतन 8,533 मामले दर्ज किए गए. दुनिया का कोई देश अपने ही नागरिकों पर उसे नुकसान पहुंचाने के इतने केस दर्ज नहीं करता. अगर ये सब केस सच हैं तो दो बातें हो सकती हैं- या तो देश में असल में इतने गद्दार हैं, या देश के निर्माण में ही कोई मूलभूत गड़बड़ी है.

अपर्याप्त सबूतों के कारण प्रतिदिन बाल यौन उत्पीड़न के चार पीड़ित न्याय से वंचित: अध्ययन

कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन द्वारा के अध्ययन के अनुसार हर साल बाल यौन उत्पीड़न के क़रीब तीन हज़ार मामले सुनवाई के लिए अदालत नहीं पहुंच पाते क्योंकि पुलिस पर्याप्‍त सबूत न होने के कारण आरोपपत्र दायर करने से पहले ही जांच बंद कर देती है. इसमें 99 फीसदी मामले बच्चियों के यौन शोषण के ही होते हैं.

वर्ष 2016-2019 के दौरान यूएपीए के तहत 5,922 लोगों को गिरफ्तार किया गया: सरकार

राज्यसभा में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की कुल संख्या 1,948 है. उन्होंने बताया कि 2016 से 2019 के दौरान दोषी साबित हुए व्यक्तियों की संख्या 132 है.

तीन साल में यौन उत्पीड़न, घृणा से जुड़े साइबर अपराध के 93 हज़ार से अधिक मामले आए: गृह राज्य मंत्री

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में बताया कि इंटरनेट का उपयोग बढ़ने के साथ ही साइबर अपराध की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. उन्होंने कहा कि देश में होने वाले साइबर अपराध के पीछे जो मंशा रही है, उनमें व्यक्तिगत शत्रुता, धोखाधड़ी, यौन उत्पीड़न, घृणा फैलाना, पायरेसी का विस्तार, सूचनाओं की चोरी आदि शामिल हैं.

भारत में पिछले साल विदेशियों के ख़िलाफ़ सर्वाधिक अपराध दिल्ली में दर्ज किए गए: एनसीआरबी

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के बाद महाराष्ट्र और फिर कर्नाटक में विदेशियों के ख़िलाफ़ सबसे अधिक अपराध दर्ज किए गए. इस सूची में तमिलनाडु चौथे और गोवा पांचवें स्थान पर रहा.

साल 2019 में महिलाओं और दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे अधिक केस उत्तर प्रदेश में दर्ज

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में भारत में महिलाओं एवं दलितों के खिलाफ अपराध में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है. इस दौरान बलात्कार के प्रतिदिन कम से कम 87 मामले सामने आए हैं. उत्तर प्रदेश में साल दर साल महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं.

2019 में जितने लोगों ने आत्महत्या की, उनमें से लगभग एक चौथाई दिहाड़ी मज़दूर थे: एनसीआरबी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में कुल 139,123 लोगों ने आत्महत्या की है, जिसमें दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या लगभग एक चौथाई यानी 32,563 है. इसके बाद गृहिणियों द्वारा आत्महत्या के सर्वाधिक मामले आए हैं. 2019 में 14,019 बेरोज़गारों ने आत्महत्या की थी, जो 2018 की तुलना में 8.37 प्रतिशत अधिक है.

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