मीडिया बोल की 48वीं कड़ी में उर्मिलेश अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर हुए विवाद और उसकी मीडिया कवरेज पर वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी और प्रोफेसर सलिल मिश्रा से चर्चा कर रहे हैं.
भारतीय राजनीति में जिन्ना के बरक्स अगर किसी दूसरे व्यक्तित्व को खड़ा किया जा सकता है तो वो हैं वीर सावरकर. संयोग नहीं है कि अपनी ज़िंदगी के पहले हिस्से की उपलब्धियों को अपनी बाद की ज़िंदगी में धो डालने वाले यह दोनों नेता विभाजन के द्विराष्ट्र सिद्धांत के पैरोकार थे.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर हुए विवाद को देखते हुए प्रशासन ने उठाया क़दम. ज़िले में धारा 144 भी लागू.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद का कहना है कि सरकार की तरह एएमयू इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने में विश्वास नहीं रखता.
पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.
आदिवासी तो दुनिया बनने से लेकर आज़ाद ही हैं. बस्तर के इन जंगलों में तो अंग्रेेज़ भी नहीं आए. इसलिए इन आदिवासियों ने अपनी ज़िंदगी में न ग़ुलामी देखी है, न ग़ुलामी के बारे में सुना है.
भीड़-मानसिकता को जब कोई सांप्रदायिक विचारधारा नियंत्रित करती है तो निश्चित रूप से नारे भले ही अखंड भारत के लगें, भीतर ही भीतर विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार की जा रही होती है.
निदा किरमानी मूल रूप से हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों देशों से हैं. वे सोचती थीं कि क्यों कभी उन्हें इनमें से किसी एक को चुनना होगा? पर बीते दिनों उन्हें एक देश चुनने पर मजबूर होना पड़ा.
साल 1913 में आज ही के दिन (03 मई) भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित की गई थी. इस मूक फिल्म को दादा साहेब फाल्के ने बनाया था.
अगर बेग़म जान या पाकिस्तान के बाहर विभाजन पर बनी कोई भी फिल्म सरकार को इतना डरा देती है कि उसे बैन करने से पहले देखना तक ज़रूरी नहीं समझा जाता, तो यह दिखाता है कि ये मुल्क किस कदर असुरक्षा और डर में जी रहा है.
इतिहासकार सुधीर चंद्र ने अपनी किताब ‘गांधी: एक असंभव संभावना ‘में गांधी के विचारों पर विस्तार से प्रकाश डाला है.
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की सालगिरह पर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ से कृष्णकांत ने बातचीत की
फ़ैज़ ऐसे शायर हैं जो सीमाओं का अतिक्रमण करके न सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया के काव्य-प्रेमियों को जोड़ते हैं. वे प्रेम, इंसानियत, संघर्ष, पीड़ा और क्रांति को एक सूत्र में पिरोने वाले अनूठे शायर हैं.