ज़मानत नीति में सुधार के एक मामले को सुनते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों द्वारा हर प्रयास किया जाना चाहिए कि जब वे ज़मानत दें, तो इसका कोई अर्थ होना चाहिए क्योंकि ऐसी ज़मानत शर्तें, जो क़ैदी की आर्थिक स्थिति से परे हों, लगाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है.
शीर्ष अदालत ने मई 2022 में इसके द्वारा यूपी के कुछ क़ैदियों की सज़ा माफ़ी याचिकाओं पर दिए निर्देश पर कार्रवाई न करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक परामर्श जारी करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि हाल के वर्षों में भारत की जेलों में बड़ी संख्या में हुई मौतें आत्महत्या के चलते हुईं. बताया गया है कि जेलों में होने वाली अप्राकृतिक मौतों में से 80 प्रतिशत की वजह आत्महत्या थी.
एक आरोपी को ज़मानत पर रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में अत्यधिक भीड़ है और क़ैदियों के रहने की स्थिति भयावह है. ऐसे में अगर मुक़दमे समय पर समाप्त नहीं होते हैं, तो व्यक्ति के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा.
गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि 2021 तक उत्तर प्रदेश में 90,606 विचाराधीन क़ैदी थे, जिनमें से 21,942 अनुसूचित जाति, 4,657 अनुसूचित जनजाति और 41,678 ओबीसी वर्ग के थे. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मंत्रालय ने यह भी बताया कि सज़ा पूरी होने के बाद जुर्माना राशि का भुगतान न करने के कारण 1,410 अपराधी देश की जेलों में बंद हैं.
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के ‘प्रोजेक्ट 39ए’ के तहत जारी वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक मौत की सज़ा उत्तर प्रदेश में (100 दोषियों को) सुनाई गई. वहीं, गुजरात में 61, झारखंड में 46, महाराष्ट्र में 39 और मध्य प्रदेश में 31 दोषियों को मौत की सज़ा दी गई है.
शीर्ष अदालत ने एक याचिका का निपटारा करने में अधिकारियों द्वारा देरी किए जाने पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि समय-पूर्व रिहाई का आवेदन सितंबर 2019 से लंबित है और फतेहगढ़ केंद्रीय कारागार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा इस साल पांच जनवरी को जारी किए गए हिरासत प्रमाण-पत्र के अनुसार, दोषी बिना किसी छूट के कुल 15 साल और 14 दिन की सज़ा काट चुका है.
शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के संबंध में अदालत के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने पिछले साल राज्य सरकार से 2018 की अपनी नीति में निर्धारित मानदंडों का पालन करने के लिए चार महीने के भीतर 512 क़ैदियों की समय से पहले रिहाई के मुद्दे पर विचार करने के लिए कहा था.
बीते दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने छोटे-मोटे अपराधों में जेल की सज़ा काट रहे आदिवासियों की दुर्दशा का ज़िक्र किया था, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया था. झारखंड की जेलों में भी कई ऐसे विचाराधीन क़ैदी हैं, जिन्हें यह जानकारी तक नहीं है कि उन्हें किस अपराध में गिरफ़्तार किया गया था.
बीते 26 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के अलावा अपने गृह राज्य ओडिशा के ग़रीब आदिवासियों को लेकर कहा था कि ज़मानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे बेल मिलने के बावजूद जेल में हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के जेल अधिकारियों को ऐसे क़ैदियों का ब्योरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने संक्रामक रोग से ग्रस्त एक क़ैदी को अंतरिम ज़मानत देते हुए कहा कि संक्रामक बीमारी से जूझ रहे किसी व्यक्ति को पृथकवास की व्यवस्था के बगैर जेल में रहने की अनुमति दिया जाना चिंता का विषय है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि भारत 1965 और 1971 के 62 युद्ध बंदियों सहित 83 लापता सैन्यकर्मियों की राजनयिक एवं अन्य उपलब्ध माध्यमों के जरिये रिहाई और उन्हें स्वदेश वापस भेजने की पाकिस्तान से मांग कर रहा है. सरकार ने यह जानकारी थल सेना के अधिकारी कैप्टन संजीत भट्टाचार्य की मां द्वारा दायर याचिका पर दी है. उनका बेटा 24 साल से अधिक समय से पाकिस्तान की जेल में क़ैद है.
उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद कुल क़ैदियों की संख्या 1,07,395 है, जबकि बिहार की जेलों में कुल 51,934 क़ैदी और मध्य प्रदेश की जेलों में कुल 45,484 क़ैदी बंद हैं. राज्यसभा को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.
23 नवंबर को अजमेर ज़िले की हाई सिक्योरिटी जेल में अधिकारियों द्वारा बिना किसी सूचना के बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई. इस क़दम के विरोध में क़ैदी भूख हड़ताल पर चले गए, लेकिन कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर उन्होंने हार मान ली.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में बताया कि गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम क़ानून (यूएपीए) के तहत 80 लोगों को दोषी ठहराया गया, जबकि 2019 में 34 लोगों को दोषी ठहराया गया था. यूएपीए के तहत ज़मानत पाना बहुत ही मुश्किल होता है और जांच एजेंसी के पास चार्जशीट दाख़िल करने के लिए 180 दिन का समय होता है.