झारखंड: किन वजहों से जेलों में बंद रहने को मजबूर हैं आदिवासी और हाशिये से आने वाले लोग

बीते दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने छोटे-मोटे अपराधों में जेल की सज़ा काट रहे आदिवासियों की दुर्दशा का ज़िक्र किया था, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया था. झारखंड की जेलों में भी कई ऐसे विचाराधीन क़ैदी हैं, जिन्हें यह जानकारी तक नहीं है कि उन्हें किस अपराध में गिरफ़्तार किया गया था.

झारखंड के मुख्यमंत्री ने मोदी को लिखा पत्र, नए वन नियमों पर जताई आपत्ति

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्र के वन संरक्षण नियम 2022 स्थानीय ग्रामसभा की शक्तियों को कमज़ोर करते हैं और वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को छीनते हैं. पत्र में रेखांकित किया गया है कि नियमों ने ग़ैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्रामसभा की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है.

जेल में बंद आदिवासियों पर राष्ट्रपति के बयान के बाद कोर्ट ने ऐसे क़ैदियों पर रिपोर्ट तलब की

बीते 26 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के अलावा अपने गृह राज्य ओडिशा के ग़रीब आदिवासियों को लेकर कहा था कि ज़मानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे बेल मिलने के बावजूद जेल में हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के जेल अधिकारियों को ऐसे क़ैदियों का ब्योरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.

झारखंड: सरना धर्म संहिता की मांग को लेकर आदिवासियों का प्रदर्शन

‘आदिवासी सेंगेल अभियान’ ने सरना धर्म संहिता और जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम की मांग को लेकर कहा कि यदि केंद्र 20 नवंबर तक ऐसा न करने की वजह बताने में विफल रहा तो ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के पचास ज़िलों में आदिवासियों को 30 नवंबर से ‘चक्का जाम’ करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

झारखंड के एक गांव में दुर्गा की प्रतिमा की तस्वीर खींचने पर आदिवासियों की पिटाई: पुलिस

पुलिस ने बताया कि घटना झारखंड के गढ़वा ज़िले के पाल्हे गांव में बीते छह अक्टूबर को हुई थी. गांव के प्रधान और उसके लोगों ने दुर्गा की मूर्ति की तस्वीर खींचने पर कथित तौर पर पांच आदिवासियों को पीटा और दुर्व्यवहार किया था.

छत्तीसगढ़: वन संरक्षण क़ानून के संशोधन रद्द करने की मांग को लेकर आदिवासियों ने मार्च निकाला

छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों के हज़ारों आदिवासी केंद्र द्वारा लाए गए वन संरक्षण नियमों के साथ ही राज्य सरकार के पेसा नियमों को वापस लेने और राज्य में 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं.  

आज़ाद भारत के 75 सालों में आदिवासी समुदाय को क्या हासिल हुआ

आज़ादी के 75 साल: देश की आज़ादी के 75 साल बाद भी आदिवासी समुदाय अपने जल, जंगल, ज़मीन, भाषा-संस्कृति, पहचान पर हो रहे अतिक्रमणों के ख़िलाफ़ लगातार संघर्षरत है.

क्या वन संरक्षण नियम, 2022 देश के आदिवासियों और वनाधिकार क़ानूनों के लिए ख़तरा है

आदिवासियों ने कई दशकों तक अपने वन अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी, जिसके फलस्वरूप वन अधिकार क़ानून, 2006 आया था. अब सालों के उस संघर्ष और वनाधिकारों को केंद्र सरकार के नए वन संरक्षण नियम, 2022 एक झटके में ख़त्म कर देंगे.

द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने द्रौपदी मुर्मू को देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. 64 वर्षीय मुर्मू इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं. संथाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली राष्ट्रपति इससे पहले झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं.

आदिवासियों ने प्रदर्शन कर कहा, ‘सरना’ को आदिवासियों के धर्म के तौर पर मान्यता दे केंद्र

झारखंड, ओडिशा और असम सहित पांच राज्यों के विभिन्न आदिवासी समुदायों के लोगों ने दिल्ली के जंतर मंतर में प्रदर्शन कर केंद्र से उनके धर्म को ‘सरना’ के रूप में मान्यता देने और आगामी जनगणना के दौरान इस श्रेणी के तहत उनकी गणना सुनिश्चित करने की मांग की. उनका कहना है कि देश में आदिवासियों का अपना धर्म, धार्मिक प्रथाएं और रीति-रिवाज हैं, लेकिन इसे अभी तक सरकार द्वारा मान्यता नहीं मिली है.

‘आदिवासियों को जितना अंग्रेज़ों ने नहीं मारा, आज़ादी के बाद इस सिस्टम ने मारा है’

वीडियो: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के एटापल्ली तालुका के सुरजागढ़ में लौह अयस्क खनन परियोजना को रद्द करने की मांग को लेकर आदिवासी कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. आदिवासी अधिकारों पर काम करने वाले कार्यकर्ता और वकील लालसू नगोटी का कहना है कि इस ज़िले में कई और ऐसी खनन परियोजनाएं प्रस्तावित हैं, जिससे जल-जंगल-भूमि का विनाश होगा.

छत्तीसगढ़: ‘जातिगत’ टिप्पणी व मारपीट करने वाले कोच के ख़िलाफ़ महीने भर बाद भी कार्रवाई नहीं

बस्तर संभाग के बीजापुर ज़िले की स्पोर्ट्स अकादमी के पांच युवा आदिवासी जूडो-कराटे खिलाड़ियों ने सवर्ण जाति के दो कोच पर आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग को लेकर ढुलमुल रवैये की बात कहने पर दोनों ने खिलाड़ियों को बुरी तरह पीटा और उसके बाद सभी बच्चों की ट्रेनिंग बंद करवा दी गई. 

हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार क़ानून का हाल बेहाल क्यों है

दिसंबर, 2021 में वन अधिकार क़ानून को पारित हुए 15 साल पूरे हुए हैं, हालांकि अब भी वन निवासियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. आज जहां पूरे भारत में 20 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मंज़ूर किए गए, उनमें हिमाचल प्रदेश का योगदान केवल 169 है, जो प्रदेश को इस क़ानून के क्रियान्वयन में सबसे पिछड़ा राज्य बनाता है.

छत्तीसगढ़: बेचापाल में महीने भर से क्यों आंदोलनरत हैं हज़ारों ग्रामीण

बीजापुर ज़िले के धुर नक्सल प्रभावित बेचापाल में 30 नवंबर से ग्रामीण पुलिस कैंप के विरोध में धरने पर बैठे हैं. उनका कहना है कि उन्हें स्कूल, अस्पताल तो चाहिए लेकिन कैंप और पक्की सड़क नहीं. उनका दावा है कि यदि रोड बनती है तो फोर्स गांवों में घुसेगी, लोगों को परेशान किया जाएगा. झूठे नक्सल प्रकरण में जेल में डाला जाएगा.

आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण से मौतों को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार योजना तैयार करे: अदालत

बॉम्बे हाईकोर्ट 2007 में दायर की गईं कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अमरावती ज़िले के मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण के कारण बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की मौतों की अधिक संख्या को उजागर किया गया है.

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