क्या हम असल में हत्या की संस्कृति के विरुद्ध हैं या सिर्फ़ अपने लिए हत्या का अधिकार चाहते हैं

उदयपुर की हत्या की वीभत्सता, नृशंसता को हम इतना भी अजनबी न मानें. यह हमारे समाज का स्वभाव है. पर क्या इस हत्या पर हमारा ध्यान इसलिए टिका हुआ है कि मारा जाने वाला कौन है और उसे मारा किसने है?

उदयपुर हत्या के बहाने समाज बांटने की कोशिश करने वालों से सावधान रहना ज़रूरी है

उदयपुर में हुई नृशंसता के बावजूद इस प्रचार को क़बूल नहीं किया जा सकता कि हिंदू ख़तरे में हैं. इस हत्या के बहाने जो लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार कर रहे हैं, वे हत्या और हिंसा के पैरोकार हैं. यह समझना होगा कि एक सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है कि किसी घटना पर हिंदू, मुसलमान एक साथ एक स्वर में न बोल पाएं. 

महाराष्ट्रीय अस्मिता से अधिक बलशाली अब हिंदुत्व की पुकार है

भाजपा की फूहड़, हिंसक, बेहिस विभाजनकारी शासन नीति से अलग सभ्य, शालीन, ज़िम्मेदार शासन नीति और आचरण के लिए उद्धव ठाकरे की सरकार को याद किया जाएगा. कम से कम इस प्रयास के लिए कि एक अतीत के बावजूद सभ्यता का प्रयास किया जा सकता है.

क्या सरकार ही देश में अराजकता फैला रही है?

वीडियो: अग्निपथ से लेकर सीएए, कृषि क़ानून और नोटबंदी के कारण देश में विरोध की लहर को लेकर नरेंद्र मोदी के शासन के बारे में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद की बातचीत.

भाजपा समर्थकों की नज़र में अपदस्थ किए गए पार्टी नेता दोषी नहीं पीड़ित हैं

भाजपा के आठ सालों के शासन ने एक बड़ी जनसंख्या ऐसी पैदा की है जो मानती है कि पार्टी नेताओं के दुर्वचन को लेकर हुई अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी के लिए पार्टी के ‘ओजस्वी वक्ता’ नहीं बल्कि वे लोग ज़िम्मेदार हैं जो उस पर इतनी देर तक चर्चा करते रहे कि बात भारत से बाहर पहुंच गई.

जिस सांप्रदायिकता के बीच नेहरू ख़ुद को अकेला पाते थे, क्या उसे अब सच्चा प्रतिनिधि मिल गया है

गांधी के बारे में जाता है कि वे अपने आख़िरी सालों में अकेले पड़ गए थे. वह अकेलापन, अगर था भी तो गांधी को बहुत कम समय झेलना पड़ा. असली अकेलापन नेहरू का था. वे प्रधानमंत्री थे और गांधी की तरह ही समझौताविहीन धर्मनिरपेक्ष. लेकिन उनकी सरकार हो या पार्टी, उनकी इस धर्मनिरपेक्षता के साथ शायद ही कोई उतनी दृढ़ता से खड़ा था.

मस्जिदों से निकलते ‘भगवान’ अथवा क़ब्ज़े का ‘धार्मिक’ तरीका?

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग के प्रकट हो जाने से जो चमत्कृत हैं, वे जानते हैं कि यह झूठ है. 'बाबा प्रकट हुए मस्जिद में', ऐसा कहने वाले धार्मिक हो या न हों, अतिक्रमणकारी अवश्य हैं.

अतिक्रमण हटाने के बहाने मुसलमानों के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ा जा रहा है

यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात और अब दिल्ली में बुलडोज़र का इस्तेमाल रोज़ाना की उत्तेजना बनाए रखने के लिए किया जा रहा है. हिंदुओं में मुसलमानों को उजड़ते देख, रोते, बदहवास देखने की हिंसक कामना जगाई जा रही है. अब भाजपा, मीडिया, पुलिस और प्रशासन में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है. एक रास्ता दिखा रहा है, एक बुलडोज़र का क़ानून बता रहा है, एक हथियार के साथ उसे घेरा देकर चल रहा है, तो एक ललकार रहा है.

क्या एक धर्म के त्योहार पर अपने धर्म की छाप छोड़ने की उतावली किसी हीनता के चलते है

ईद मुबारक के जवाब में अक्षय तृतीया या परशुराम जयंती की बधाई देना कैलेंडरवादी धार्मिकता का प्रतीक है. हम हर जगह अपना क़ब्ज़ा चाहते हैं. ध्वनिभूमि पर, ध्वनि तरंगों पर भी, दूसरों के उपासना स्थलों पर और समाज के मनोलोक पर.

क्या भारत सांप्रदायिक हिंसा की खाई में गिर चुका है?

वीडियो: बीते कुछ हफ्तों में पूरे भारत में विशेष रूप से मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में सांप्रदायिक हिंसा के बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में ही ऐसी ही घटना हुई. इन घटनाओं पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का नज़रिया.

जहांगीरपुरी की घटनाओं से सीखना चाहिए कि हम निकृष्ट क्रूरता से कैसे लड़ सकते हैं

बीते चार-पांच दिनों में जहांगीरपुरी में जो कुछ भी घटित हुआ, उसने इस देश की निकृष्टतम और श्रेष्ठतम, दोनों तस्वीरों को साफ़ कर दिया है. इस छोटी-सी अवधि में ही हम जान गए हैं कि भारत को पूरी तरह से तबाह कैसे किया जा सकता है. साथ ही यह भी कि अगर उसे बचाना है तो क्या करना होगा.

क्या ​हिंदू पर्व मुसलमान विरोधी घृणा के बिना संभव नहीं?

वीडियो: कर्नाटक में हलाल मीट पर जारी विवाद के बीच राजस्थान के करौली में हिंदू नव वर्ष के दौरान हिंसा और कई अन्य घटनाक्रमों पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का नज़रिया.

उमर ख़ालिद की ज़मानत बार-बार ख़ारिज होने की क्या वजह है

उमर ख़ालिद की ज़मानत ख़ारिज करने के फ़ैसले में अदालत यह कबूल कर रही है कि बचाव पक्ष के वकील पुलिस के बयान में जो असंगतियां या विसंगतियां दिखा रहे हैं, वह ठीक है. लेकिन फिर वह कहती है कि भले ही असंगति हो, उस पर वह अभी विचार नहीं करेगी. यानी अभियुक्त बिना सज़ा के सज़ा काटने को अभिशप्त है!

हिंसा पूरे भारत में है, लेकिन बंगाल का राजनीतिक स्वभाव ही हिंसक है

पश्चिम बंगाल में पहले वाम हिंसा का बोलबाला था, वही संस्कृति तृणमूल ने अपनाई. तृणमूल ने वाम हिंसा का सामना किया था, पर उसकी जगह अब उसने तृणमूल हिंसा स्थापित कर दी. दल भले बदल गए, लेकिन हिंसा बनी हुई है.

द कश्मीर फाइल्स का मक़सद पंडितों के प्रति हमदर्दी है या एक वर्ग के प्रति नफ़रत उपजाना

कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा ऐसी त्रासदी है जिस पर बात करते समय सिर्फ उसी पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए. किसी त्रासदी को तुलनीय बनाना उसका अपमान है. 'कश्मीर फ़ाइल्स' के निर्माताओं को यह सवाल करना चाहिए कि क्या वास्तव में कश्मीरी पंडितों की पीड़ा ने उन्हें फिल्म बनाने को प्रेरित किया या उसकी आड़ में वे अपनी मुसलमान विरोधी हिंसा को ज़ाहिर करना चाहते थे?

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