क्यों अलग है उत्तर और दक्षिण भारत का राजनीतिक मिजाज़?

बीते दिनों आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों और उनके प्रतिनिधि चुनने की प्राथमिकताओं पर लंबी बहस चली, तमाम सवाल उठाए गए. क्या वजह है कि इन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मिजाज़ में इतना अंतर है?

कौन हैं कारोबारी सज्जन जिंदल, जिन पर बलात्कार का केस दर्ज हुआ है

एक महिला की शिकायत पर जेएसडब्ल्यू समूह के प्रमुख सज्जन जिंदल के ख़िलाफ़ बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है. महिला के वकीलों के मुताबिक, मुंबई पुलिस ने महिला की शिकायत को क़रीब सालभर लटकाया, जिसके बाद उन्हें हाईकोर्ट का जाना पड़ा. कोर्ट जाने के बाद ही उनकी एफआईआर दर्ज हुई.

हमारे देश ने अपनी नैतिक दिशा खो दी है

सारी दुनिया में लाखों यहूदी, मुसलमान, ईसाई, हिंदू, कम्युनिस्ट, एग्नॉस्टिक लोग सड़कों पर उतरकर गाज़ा पर हमला फ़ौरन बंद करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, वही मुल्क जो कभी फिलिस्तीन का सच्चा दोस्त था, जिन पर कभी लाखों लोगों के जुलूस निकले हुए होते, वही सड़कें आज ख़ामोश हैं.

बड़े लेखक अपने साहित्य के लिए पढ़े-सराहे जाते हैं, अपनी विचारधारा के कारण नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विचारधारा से प्रतिबद्ध वही लेखक बड़े या महान हुए जिन्होंने अपने साहित्य में अपनी ही विचारधारा का अतिक्रमण करने का दुस्साहस किया, कह सकते हैं, अपने साहित्य-विचार के पक्ष में. यह अतिक्रमण न विरोध होता है, न ही विचलन. शमशेर और मुक्तिबोध ऐसे अतिक्रमण के उजले उदाहरण हैं.

अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे समझा जाए?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के तरीके को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराए जाने के फैसले की बारीकियां समझने के लिए ज़रूरी है कि यह समझा जाए कि अनुच्छेद 370 था क्या और इसे हटाया कैसे गया.

उम्मीद एक सामूहिक प्रोजेक्ट है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यह अभी कुछ बरस पहले अकल्पनीय था कि उदार और सम्यक दृष्टि और शक्तियां इतनी तेज़ी से हाशिये पर चली जाएंगी. यह क्यों-कैसे हुआ यह अलग से विचार की मांग करता है. इसके बावजूद अगर उम्मीद बची हुई है तो वह ज़्यादातर साहित्य और कलाओं जैसे सर्जनात्मक-बौद्धिक क्षेत्रों में ही.

विश्वविद्यालयों को ‘सेल्फी पॉइंट’ बनाने के बजाय ‘सेल्फ पॉइंट’ बनने की कोशिश करनी चाहिए

यूजीसी के 'सेल्फी पॉइंट' के आदेश समेत उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए जारी होते विभिन्न निर्देशों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लगता है कि ‘आज्ञापालक नागरिक’ तैयार करने का प्रयास ज़ोर-शोर से चल रहा है और इसके लिए विश्वविद्यालयों को प्रयोगशाला बनाया जा रहा है.

कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व धर्मनिरपेक्षता के लिए हिंदुत्व जितना ही घातक है

हिंदुत्व की पूरी पिच भाजपा की तैयार की हुई है. इस पर हाथ-पांव मारने की बेचैन कोशिश में तात्कालिक लाभ होता दिख सकता है, पर दूरगामी परिणाम देखा जाए तो इसके फायदे के बजाय नुक़सान ही ज़्यादा नज़र आते हैं.

कांग्रेस के पास 2024 के लिए उत्तर भारत में फिर उठ खड़े होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ इस विपक्षी गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला है.

आंकड़ों की रोशनी में फीका है नरेंद्र मोदी का लोकसभा चुनाव में ‘हैट्रिक’ का दावा

विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों की जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने 'हैट्रिक' शब्द कहते हुए आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार की ज़मीन तैयार कर दी है. हालांकि, आंकड़ों के साथ इस दावे की पड़ताल भाजपा के लिए उतनी आश्वस्तकारी नहीं है, जितनी समझी जा रही है.

युद्धरत रहना मनुष्य का स्थायी भाव ही बन गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारतीय समाज की लगभग स्वाभाविक हिंसा को संयमित करने के प्रयत्न अधिकतर विफल ही साबित हुए हैं. कहा जा सकता है कि महाभारत सदियों पहले हुए का मिथक या काव्य भर नहीं है: आज भी हम भारत और महाभारत में एक साथ हैं.

क्या यूपी सरकार द्वारा हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर बैन दुर्भावना से प्रेरित है?

बीते महीने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जन स्वास्थ्य का हवाला देते हुए हलाल सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाने वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. हालांकि, ऐसे उत्पाद में क्या ग़लत है, स्वास्थ्य की दृष्टि से क्या नुकसान हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है.

सार्वजनिक पुस्तकालयों का अंत: क्या मोदी सत्ता असफल नाज़ी प्रयोग के अमल की फ़िराक़ में है?

विगत कुछ सालों से कोशिश चल रही है कि ऐसे नैरेटिव को वैधता मिले जो हिंदुत्व के नज़रिये के अनुकूल हो, लेकिन जगह-जगह उसे चुनौती भी मिल रही है. शायद इस पृष्ठभूमि में संघ-भाजपा को मुफ़ीद लग रहा है कि वे सार्वजनिक पुस्तकालयों पर क़ब्ज़ा क़ायम करें और अपनी एकांगी समझदारी के पक्ष में जनमत तैयार करें.

दिल्ली के धुएं और घुटन में हिस्सेदारी का सवाल

पर्यावरण क्षरण और जलवायु आपदाओं को ग्लोबल कहने से यह राय बनती है कि वे सभी को समान रूप से प्रभावित करती हैं, पर सच्चाई ये है कि जलवायु आपदाओं का सार्वभौमिक चरित्र है कि वे उसके दोषी पक्ष को अक्सर कम तथा निर्दोष सामान्यजन को अधिक प्रभावित करती हैं.

हिंसा अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी हेकड़ी दिखा रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बर्बर और अमानवीय इजरायल गाज़ा में जो कर रहा है और जिस तरह से अनेक देश उसे चुप रहकर ऐसा करने दे रहे हैं, वे मनुष्यता और सभ्यता की विफलता के ताज़ा उदाहरण हैं.

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