जो समाज स्वतंत्र नहीं है क्या वहां का साहित्य स्वतंत्र बना रह सकता है?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: स्वतंत्रता-संघर्ष का एक ऐसा उपक्रम है जो कभी समाप्त नहीं होता. सामान्य रूप से देखें, तो इस समय हमारी राजनीतिक स्वतंत्रता को कोई गंभीर ख़तरा नहीं है. ख़तरा बौद्धिक-सर्जनात्मक-वैचारिक और नागरिक स्वतंत्रता को है और हर दिन बढ़ता ही जा रहा है.

सावरकर पर हमारी चर्चाओं को अतीत में अटके न रहकर वर्तमान में आगे बढ़ना होगा

'माफ़ीवीर' कहकर सावरकर की खिल्ली उड़ाने की जगह सावरकरवाद के आशय पर बात करना हमारे लिए आवश्यक है. अगर वह कामयाब हुआ तो हम सब चुनाव के ज़रिये राजा चुनते रहेंगे और आज्ञाकारी प्रजा की तरह उसका हर आदेश मानना होगा.

अशोक गहलोत के ‘गद्दार’ कहने पर पायलट बोले- कीचड़ उछालने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होने वाला

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक चैनल से बातचीत में कहा था कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकते, वह गद्दार हैं. सचिन पायलट ने इसके जवाब में कहा कि इतने अनुभवी व्यक्ति को निराधार आरोप लगाना शोभा नहीं देता. भाजपा को हराने के लिए एकजुट होकर लड़ना प्राथमिकता होनी चाहिए.

कलाएं हमें अधिक मानवीय, संवेदनशील और सहिष्णु बनाती हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिन्दी अंचल की बढ़ती धर्मांधता, सांप्रदायिकता और हिंसा की मानसिकता आदि का एक कारण इस अंचल की मातृभाषा और कलाओं से ख़ुद को वंचित रहने की वृत्ति है. स्वयं को कला से दूर कर हम असभ्य राजनीति, असभ्य माहौल और असभ्य सार्वजनिक जीवन में रहने को अभिशप्त हैं.

महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा को रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

राष्ट्रीय राजधानी में श्रद्धा वाकर की उनके लिव-इन पार्टनर आफ़ताब पूनावाला द्वारा की गई निर्मम हत्या ने बहुत दर्द और गुस्सा पैदा किया है. पुलिस का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि आफ़ताब को इस नृशंस हत्या की सज़ा मिले. लेकिन आगे महिलाओं के प्रति हिंसा न हो, उसके लिए बतौर समाज हमें क्या करना चाहिए?  

मुक्तिबोध: ज़माने के चेहरे पर… ग़रीबों की छातियों की ख़ाक है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मुक्तिबोध ने आज से लगभग छह दशक पहले जो भारतीय यथार्थ अपनी कविता में विन्यस्त किया था, वह अपने ब्यौरों तक में आज का यथार्थ लगता है.

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: जिन लोगों को ‘वो’ साथ बैठाना नहीं चाहते, उनसे दाख़िलों, नौकरी में बराबरी क्यों

प्रतिभा के कारण अवसर मिलते हैं. यह वाक्य ग़लत है. यह कहना सही है कि अवसर मिलने से प्रतिभा उभरती है. सदियों से जिन्होंने सारे अवसर अपने लिए सुरक्षित रखे, अपनी प्रतिभा को नैसर्गिक मानने लगे हैं. वे नई-नई तिकड़में ईजाद करते हैं कि जनतंत्र के चलते जो उनसे कुछ अवसर ले लिए गए, वापस उनके पास चले जाएं.

उत्तर प्रदेश: समाजवादी पार्टी अपनी लगातार हार से कोई सबक क्यों नहीं सीख रही है

अखिलेश यादव का कहना सही है कि अब भाजपा हर हाल में जीतने के लिए चुनावों में लोकतंत्र को ही हराने पर उतर आती है. लेकिन इसी के साथ बेहतर होगा कि वे समझें कि उनकी व पार्टी की अपील का विस्तार किए बिना वे उसे यह सब करने से कतई नहीं रोक सकते.

ईडब्ल्यूएस आरक्षण निर्णय बराबरी के सिद्धांत पर वार है और भेदभाव को संवैधानिक मान्यता देता है

संविधान की मूल संरचना का आधार समानता है. आज तक जितने संवैधानिक संशोधन किए गए हैं, वे समाज में किसी न किसी कारण से व्याप्त असमानता और विभेद को दूर करने वाले हैं. पहली बार ऐसा संशोधन लाया गया है जो पहले से असमानता के शिकार लोगों को किसी राजकीय योजना से बाहर रखता है.

अल्लामा इक़बाल: आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं…

जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...

यह दौर पत्रकारिता के राजनीतिकरण और राजनीति के पत्रकारिताकरण का है

गोदी मीडिया भाजपा का महासचिव-सा बन गया है. पूरा गोदी मीडिया पार्टी में बदल चुका है. गोदी मीडिया के बाहर मीडिया बहुत कम बचा है. इसलिए कई लोग पत्रकारिता छोड़कर पार्टियों का काम कर रहे हैं. आईटी सेल और सर्वे में करिअर बना रहे हैं.

नेपाल के स्वाभिमान व स्वतंत्रता का एहतराम किए बिना हमारे संबंध सशक्त नहीं हो सकते

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेपाल में हमारी अपनी सभ्यता के कुछ सुंदर रूप अब भी बचे हैं और हमें इस जीवित संरक्षण के लिए उसका कृतज्ञ होना चाहिए.

वे नेताओं की दुश्मनी के नहीं, सहयोग के परस्पर लेन-देन के दिन थे

उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.

इतिहास की रणभूमि

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत में इस समय विज्ञान की लगातार उपेक्षा और अवज्ञा हो रही है. इस क़दर कि वैज्ञानिक-बोध को दबाया जा रहा है. यह ज्ञान मात्र की अवमानना का समय है: बुद्धि, तर्क, तथ्य, संवाद, असहमति आदि सभी हाशिये पर फेंके जा रहे हैं.

भाजपा से ज़्यादा हिंदुत्ववादी होकर क्या पाएगी आम आदमी पार्टी

कई जानकार कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के नोट-राग ने ज़रूरी मुद्दों व जवाबदेहियों से देशवासियों का ध्यान भटकाकर लाभ उठाने में भाजपा की बड़ी मदद की है. ये जानकार सही सिद्ध हुए तो केजरीवाल की पार्टी की हालत ‘माया मिली न राम’ वाली भी हो सकती है.

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