क्या सपा का धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में मज़बूती से खड़े रहने का साहस जवाब दे गया है?

जो समाजवादी पार्टी 1993 के दौर से भी पहले से धर्म और राजनीति के घालमेल के पूरी तरह ख़िलाफ़ रही और धर्म की राजनीति के मुखर विरोध का कोई भी मौका छोड़ना गवारा नहीं करती रही है, अब उसके लिए धर्म अनालोच्य हो गया है.

प्रधानमंत्री की अयोध्या यात्रा और यहां की चमक-धमक से वंचित आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन

प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन से महज़ पांच किलोमीटर दूर स्थित इसी शहर में आने वाला आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन बदहाल है. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले जगमग कर रही अयोध्या की चमक इस स्टेशन तक नहीं पहुंच पाई है, जो सामान्य यात्री सुविधाओं, साफ-सफाई और रंग-रोगन से भी वंचित है.

उदय शंकर भारतीय नृत्य के पारंपरिक रूपाकारों के साथ साहसिक शास्त्रीयता विकसित करना चाहते थे

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: उदय शंकर का नृत्य कम से कम तीन विश्वासों से प्रेरित नृत्य था: शास्त्रीयता में विश्वास, आधुनिकता में विश्वास और आत्मविश्वास. जिन कलाकारों ने भारतीय नृत्य में पश्चिमी रुचि जगाई उनमें उदय शंकर का नाम पहली पंक्ति में आता है.

कांग्रेस की भीरुता के बिना राम मंदिर नहीं बन सकता था…

कांग्रेस के लोग यह सही कहते हैं कि उनके बिना राम मंदिर नहीं बन पाता. लेकिन यह गर्व की नहीं, लज्जा की बात होनी चाहिए. कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि 1949 में बाबरी मस्जिद में सेंधमारी नहीं हुई थी, सेंधमारी धर्मनिरपेक्ष भारतीय गणतंत्र में हुई थी.

हम अधकचरी परंपरा और अधकचरी आधुनिकता के बीच फंसा भारत होते जा रहे हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेहरू युग में संस्कृति और राजनीति, सारे तनावों और मोहभंग के बावजूद, सहचर थे जबकि आज संस्कृति को राजनीति रौंदने, अपदस्थ करने में व्यस्त है. बहुलता, असहमति आदि के बारे में सांस्कृतिक निरक्षरता का प्रसार हो रहा है. व्यंग्य-विनोद-कटूक्ति-कॉमेडी पर लगातार आपत्ति की जा रही है.

उपराष्ट्रपति जी! आप किसानों के आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन के वक़्त भी जाट ही थे…

मिमिक्री की घटना को लेकर अपनी जाट पहचान का हवाला देने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जाट समुदाय की भागीदारी वाले दो हालिया आंदोलनों- किसानों के कृषि क़ानूनों के विरोध और पहलवानों के प्रदर्शन के दौरान ख़ामोश थे. अपने समुदाय का ज़िक्र उन्होंने वहीं किया है, जहां यह सत्तारूढ़ दल के लिए सुविधाजनक है.

ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला क्या न्यायसंगत कहा जा सकता है?

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की मस्जिद परिसर में मंदिर बहाली की याचिकाएं उपासना स्थल क़ानून के आधार पर ख़ारिज नहीं की जा सकतीं. हालांकि, एक सच यह है कि उपासना स्थल अधिनियम इसी तरह के मामलों से बचने के लिए लाया गया था.

क्यों अलग है उत्तर और दक्षिण भारत का राजनीतिक मिजाज़?

बीते दिनों आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों और उनके प्रतिनिधि चुनने की प्राथमिकताओं पर लंबी बहस चली, तमाम सवाल उठाए गए. क्या वजह है कि इन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मिजाज़ में इतना अंतर है?

कौन हैं कारोबारी सज्जन जिंदल, जिन पर बलात्कार का केस दर्ज हुआ है

एक महिला की शिकायत पर जेएसडब्ल्यू समूह के प्रमुख सज्जन जिंदल के ख़िलाफ़ बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है. महिला के वकीलों के मुताबिक, मुंबई पुलिस ने महिला की शिकायत को क़रीब सालभर लटकाया, जिसके बाद उन्हें हाईकोर्ट का जाना पड़ा. कोर्ट जाने के बाद ही उनकी एफआईआर दर्ज हुई.

हमारे देश ने अपनी नैतिक दिशा खो दी है

सारी दुनिया में लाखों यहूदी, मुसलमान, ईसाई, हिंदू, कम्युनिस्ट, एग्नॉस्टिक लोग सड़कों पर उतरकर गाज़ा पर हमला फ़ौरन बंद करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, वही मुल्क जो कभी फिलिस्तीन का सच्चा दोस्त था, जिन पर कभी लाखों लोगों के जुलूस निकले हुए होते, वही सड़कें आज ख़ामोश हैं.

बड़े लेखक अपने साहित्य के लिए पढ़े-सराहे जाते हैं, अपनी विचारधारा के कारण नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विचारधारा से प्रतिबद्ध वही लेखक बड़े या महान हुए जिन्होंने अपने साहित्य में अपनी ही विचारधारा का अतिक्रमण करने का दुस्साहस किया, कह सकते हैं, अपने साहित्य-विचार के पक्ष में. यह अतिक्रमण न विरोध होता है, न ही विचलन. शमशेर और मुक्तिबोध ऐसे अतिक्रमण के उजले उदाहरण हैं.

अनुच्छेद 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे समझा जाए?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के तरीके को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराए जाने के फैसले की बारीकियां समझने के लिए ज़रूरी है कि यह समझा जाए कि अनुच्छेद 370 था क्या और इसे हटाया कैसे गया.

उम्मीद एक सामूहिक प्रोजेक्ट है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यह अभी कुछ बरस पहले अकल्पनीय था कि उदार और सम्यक दृष्टि और शक्तियां इतनी तेज़ी से हाशिये पर चली जाएंगी. यह क्यों-कैसे हुआ यह अलग से विचार की मांग करता है. इसके बावजूद अगर उम्मीद बची हुई है तो वह ज़्यादातर साहित्य और कलाओं जैसे सर्जनात्मक-बौद्धिक क्षेत्रों में ही.

विश्वविद्यालयों को ‘सेल्फी पॉइंट’ बनाने के बजाय ‘सेल्फ पॉइंट’ बनने की कोशिश करनी चाहिए

यूजीसी के 'सेल्फी पॉइंट' के आदेश समेत उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए जारी होते विभिन्न निर्देशों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लगता है कि ‘आज्ञापालक नागरिक’ तैयार करने का प्रयास ज़ोर-शोर से चल रहा है और इसके लिए विश्वविद्यालयों को प्रयोगशाला बनाया जा रहा है.

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